विचार / लेख

दुनिया में गांधी-जैसा कोई और नहीं
03-Oct-2021 12:15 PM
दुनिया में गांधी-जैसा कोई और नहीं

 बेबाक विचार : डॉ. वेदप्रताप वैदिक

गांधीजी को हम कम से कम उनके जन्मदिन पर याद कर लेते हैं, यह भी बड़ी बात है। हम ही याद नहीं करते। सारी दुनिया उन्हें याद करती है। दुनिया में बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी हुए हैं लेकिन उन्हें कौन याद करता है? भारत में ही दर्जनों राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री हो गए हैं लेकिन युवा-पीढ़ी से पूछें तो उन्हें उनके नाम तक याद नहीं हैं। इसका अर्थ क्या यह नहीं निकला कि आपके पद का उतना महत्व नहीं है, जितना कि आपके अपने व्यक्तित्व का है। गांधीजी का व्यक्तित्व इतना निराला था कि महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंटस्टीन के शब्दों में ही उसकी सही व्याख्या हो सकी है। उन्होंने कहा था कि आनेवाली पीढिय़ों को विश्वास ही नहीं होगा कि गांधी-जैसा कोई हाड़-मांस का महापुरुष पृथ्वी पर हुआ भी होगा।

यों तो राम और कृष्ण, बुद्ध और महावीर, ईसा और मुहम्मद, नानक और कबीर जैसे महापुरुषों की कथाएं हम सुनते रहे हैं लेकिन हम लोग कितने भाग्यशाली हैं कि हमने गांधी-जैसे महापुरुष को अपनी आंखों से देखा है या उन लोगों के सानिध्य में रहे हैं, जो गांधीजी के साथी थे। गांधी के नाम पर कोई धर्म और संप्रदाय नहीं बना है। बन भी नहीं सकता, क्योंकि गांधी कोरे सिद्धांत नहीं हैं। गांधी व्यवहार हैं। गांधी की तुलना प्लेटो, अरस्तू, हीगल और मार्क्स से नहीं की जा सकती, क्योंकि गांधी ने किसी दार्शनिक या विचारक की तरह कोरे सिद्धांत नहीं गढ़े हैं लेकिन उन्होंने कुछ सिद्धांतों का अपने जीवन में पालन इस तरह से किया है कि दुनिया में गांधी बेमिसाल हो गए हैं। उनके जैसा कोई और नहीं दिखता। उनका व्यवहार ही सिद्धांत बन गया है। जैसे इस सिद्धांत को सभी धर्म मानते हैं कि 'ब्रह्म सत्यम्Ó याने ब्रह्म ही सत्य है लेकिन गांधी ने कहा कि सत्य ही ब्रह्म है। सत्य का पालन ही सच्ची ईश्वर भक्ति है। उन्होंने सभी धर्मों की इस परंपरागत धारणा को उलटकर देखा, परखा और उसे करके दिखाया।

उन्होंने सत्य और अहिंसा का पालन अपने व्यक्तिगत जीवन में ही नहीं करके दिखाया, बल्कि उसे संपूर्ण स्वाधीनता संग्राम की प्राणवायु बना दिया। कई बार मैं महसूस करता हूं कि बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट में जो यह कहा गया है कि ''ईश्वर मनुष्य का पिता हैÓÓ, इसका उल्टा सत्य है याने मनुष्य ही ईश्वर का पिता है। मुनष्यों ने अपने-अपने मनपसंद ईश्वर गढ़ लिये हैं। इसीलिए ईश्वर, यहोवा, अल्लाह, अहुरमज्द में कोई बुनियादी फर्क नहीं है। यह धारणा ही सर्वधर्म समभाव को जन्म देती है। देश-काल के कारण धर्मों की कई धारणा में फर्क हो सकता है लेकिन धार्मिकों में तो परस्पर सद्भाव ही होना चाहिए। गांधी की इस धारणा ने ही उन्हें 1947 में भारत-विभाजन के समय विवादास्पद बना दिया था। जिस कारण सकुरात को अपने प्राण-विसर्जन करने पड़े, गांधी-वध का भी कारण वही बना लेकिन यदि हम अब गांधी के सपनों का भारत बना हुआ देखना चाहते हैं तो हमें सिर्फ भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के ही नहीं, अराकान (म्यांमार) से खुरासान (ईरान) और उसमें मध्य एशिया को भी जोड़कर एक महासंघ का निर्माण करना होगा, जो गांधी के साथ-साथ महावीर, बुद्ध और दयानंद के सपनों का आर्यावर्त्त होगा।
(नया इंडिया की अनुमति से)

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