विचार / लेख

छात्रों के सामने घुटने टेक माफी मांगने मजबूर
22-Oct-2021 12:43 PM
छात्रों के सामने घुटने टेक माफी मांगने मजबूर

-सनियारा खान

लोकतंत्र में कोई भी जायज मांगों को लेकर आंदोलन कर सकता है और करना भी चाहिए, क्योंकि विरोध को लोकतंत्र का एक मजबूत अंग माना जाता है। लेकिन ऐसी किसी आंदोलन में अगर कोई वरिष्ठ शिक्षिका को सबके सामने बुरी तरह अपमानित किया जाए, वह भी उन्हीं छात्रों द्वारा जिन्हें वह शिक्षिका अब तक शिक्षा देती आ रही है। फिर तो ये बात पूरे देश के लिए सोचने वाली है। ऐसी घटना शिक्षा जगत में एक कलंक है।

 

अभी-अभी 5 सितम्बर को ही हम लोगों ने शिक्षक दिवस मनाकर सभी गुरुजनों को भरपूर सम्मान दिया और इसी 11 अक्टूबर को असम में फिलोबारी नामक जगह पर एक सीनियर सेकेंडरी स्कूल के छात्रवर्ग फीस वृद्धि के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे। शिक्षकों ने प्रदर्शन छोडक़र कक्षा में जाने को कहा। वरिष्ठ शिक्षिका निरदा बोरा आगे बढक़र उन्हें कठोर शब्द में विरोध बंद कर कक्षा में जाने को कहा। इसके तुरंत बाद सभी छात्र उक्त शिक्षिका का नाम लेकर भौंडे तरीके से नारेबाजी करने लगे। साथ ही उन्हें छात्रों के सामने घुटने टेककर माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया। गलती चाहे जिस किसी की हो, एक वयोवृद्ध शिक्षिका को इस तरह अपमानित होते देखना यही दर्शाता है कि देश सच में बदल रहा है। जिन छात्र और छात्र नेताओं ने एक शिक्षिका को इस तरह अपमानित किया, उन्हें कुछ संगठनों से संरक्षण प्राप्त था।

 ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) का जिला स्तर का  एक नेता भी इस घटना शामिल था। इस घटना के तुरंत बाद पार्टी ने उस नेता को निष्कासित कर दिया। न सिर्फ घुटने टेककर, बल्कि जमीन पर लेटकर छात्रों से माफी मांगने वाली एक शिक्षिका को देखकर सभी लोग हैरान रह गए थे। इतना ही नहीं, इस घटना का  वीडियो बनाकर वायरल भी किया गया है।

 समाज को गढऩे का काम करने वाली किसी शिक्षिका के साथ कोई ऐसा कैसे कर सकता है? शिक्षिका निरदा बरा पिछले 25 सालों से बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रही हैं। रिटायरमेंट के लिए मुश्किल से शायद 7-8 साल ही बचे हैं। ये घटना बदलते समाजिक मानसिकता को दिखाकर हमें डरा रही है। लोगों को आक्रोशित होते देखकर बाद में बहुत से संगठनों के नेता और छात्र उस शिक्षिका के आवास पर जाकर उनसे माफी मांगी। लेकिन अब माफी मांगने से भी उस शिक्षिका के लिए सब कुछ सामान्य नहीं हो सकता है। कानून भी उन्हें सहायता करेगा तो भी क्या वह भूल पाएगी कि उन्होंने जिन छात्रों को सम्मान से जीने के लिए शिक्षा दी, उन्हीं छात्रों ने उन्हें सभी के सामने अपमानित किया। लगता तो यही है कि कुछ छात्र और छात्र नेता राजनीति करने वाले नेताओं से यही सीख रहे हैं कि मान से ज्यादा अपमान करने वाले ही आज प्रचार में रहते हैं।

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