विचार / लेख
-आशुतोष भारद्वाज
मैं अरसे से ऐसी किताब की तलाश में था जो दो इंसानों की जीवनी लिखती थी।
कुछ बरस पहले एक वरिष्ठ मित्र ने एक किताब सुझाई थी, रुद्रांग्शु मुखर्जी की ‘नेहरु एंड बोस: पैरलल लाइव्ज’। यह हालाँकि नेहरू और बोस की सम्पूर्ण जीवनी नहीं थी, लेकिन दोनों के जीवन की उन महत्वपूर्ण घटनाओं और अध्यायों का उत्कृष्ट विश्लेषण करती थी, जहाँ उनके रास्ते मिलते और कभी बिछुड़ते थे।
इन दिनों मैं यह गजब किताब पढ़ रहा हूँ, जो पिछली सदी के महानतम वैज्ञानिक और कलाकार का जीवन लिखती है जब वे दोनों, अलग भूगोल लेकिन एक ही अवधि में, अपने समय को रच रहे थे। 1905 की गर्मियों में एक युवक भौतिकी के अद्भुत सिद्धांत देता है, कुछ समय बाद दूसरा युवक आविन्यों की स्त्रियों की तस्वीर बनाता है, और आधुनिक विज्ञान व कला नया रूप ले लेते हैं।
इनके वैज्ञानिक और कलात्मक सिद्धांत सिर्फ इनके अद्भुत मस्तिष्क की उपज नहीं थे, अपने समय के प्रतिबिम्ब थे। तकनीक, उद्योग और वैचारिकी में हो रहे नये प्रयोगों ने मनुष्य के अनुभव-जगत को बदल दिया था, समय और दृश्य की अवधारणा प्रश्नांकित हो गई थी— आइन्स्टाइन समयालेख बदल रहे थे, पिकासो दृश्यालेख।
इस किताब तक मैं किस रास्ते से पहुँचा? हाल ही एक विलक्षण उपन्यास पढ़ा, ‘द आइन्स्टाइन्स ड्रीम्ज’। सवा सौ पन्ने का यह उपन्यास 1905 की उन गर्मियों की कथा है जब एक युवक अकेला बैठा समय की अनेक स्तरों पर परिकल्पना कर रहा था-क्या समय सिर्फ एकरेखीय है? अगर हमारे अनंत भविष्य हों और हमें किसी भी विकल्प को चुनने की आज़ादी हो, अगर समय आगे के बजाय पीछे चलता हो, अगर प्रत्येक क्षण सदी जितना लम्बा और मुकम्मल हो, इत्यादि।
इस उपन्यास को पढ़ आइन्स्टाइन के बारे में जानने की इच्छा हुई, और फिर उन पर लिखा टटोलते हुए इस जीवनी तक आया।
(आज सुबह इस जीवनी की तस्वीर जब ट्वीट की, उन्हीं वरिष्ठ मित्र का, जिन्होंने साढ़े चार बरस पहले नेहरू और बोस की किताब सुझाई थी, मेसिज आया-‘तुम्हें डेविड काउट की Isaac and Isaiah: The Covert Punishment of a Cold War Heretic पढऩी चाहिये। जिस संयुक्त जीवनी की तुम तलाश में हो, वह इस किताब से पूरी हो जायेगी।’)