विचार / लेख
-पुष्यमित्र
बिहार डायलॉग के छठे अंक में कल शराबबन्दी से जुड़े विषय पर अच्छी बातचीत हुई। हम सभी लोगों के लिये सबसे अच्छी जानकारी हमें राखी शर्मा जी से मिली, जो दिशा नशामुक्ति केन्द्र की सीईओ हैं। उनके निर्देशन में राज्य में चार नशामुक्ति केन्द्र चलते हैं। उन्होंने बताया कि कैसे शराबबन्दी के पहले दो महीने के सकारात्मक नतीजों के बाद इसका असर घटने लगा था और अभी तो चरम स्थिति आ गयी है। इन दिनों उनके सभी नशामुक्ति केन्द्र फुल रहते हैं। इनमें 70 फीसदी से अधिक ड्रग एडिक्ट हैं। सबसे बड़ी संख्या ब्राउन सुगर लेने वालों की है। उनका कहना है कि शराबबन्दी की वजह से युवा पहले गांजा और फिर ब्राउन
शुगर की तरफ शिफ्ट हो रहे हैं। यह बहुत खतरनाक ट्रेंड है।
उनका कहना था कि चूंकि सरकार ने शराबबन्दी के वक़्त नशामुक्ति पर ज्यादा फोकस नहीं किया इसलिये इसका फायदा बहुत कम हुआ और आज बिहार का युवा नशे के गम्भीर गिरफ्त में है।
इस पूरे मसले पर सटीक टिप्पणी करते हुए लेखक एवं इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार सन्तोष सिंह ने कहा- दरअसल नीतीश का शराबबन्दी का पूरा फैसला मुख्यतः राजनीतिक था। उन्होने महिलाओं का वोट बैंक गढ़ने की कोशिश में आनन फानन में यह फैसला लिया। उनका फोकस शराबबन्दी को तार्किक तरीके से लागू करने में कम, इसका राजनीतिक लाभ लेने में अधिक था। इसलिये यह जैसे-तैसे लागू हुआ और बुरी तरह फेल साबित हुआ। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार आज भले शराबबन्दी लागू करके नैतिकतावादी बन रहे हैं, मगर इस राज्य को नशे की गिरफ्त में उन्होंने ही पहुँचाया। गांव गांव में शराब की दुकान उन्होंने ही खुलवायी।
इसके बाद मेरी बारी थी। मैने उन महिलाओं को याद किया जिनके आन्दोलन की वजह से शराबबन्दी कानून लागू हुआ था। फिर यह भी कहा कि इस कानून को लागू कराते वक़्त उन महिलाओं की मदद नहीं ली गयी। इसे पुलिस-प्रशासन के दम पर लागू कराने की कोशिश की गयी, सामाजिक अभियान का रूप नहीं दिया गया। जिस बड़े पैमाने पर नशामुक्ति अभियान चलना चाहिये था, वह नहीं चला। ऐसे में यह फ्लॉप होना ही था।
इस बीच पटना वूमन्स कॉलेज की सहायक प्राध्यापक दिव्यललिता गौतम ने इस बात पर आपत्ति की कि बिहार सरकार हर काम का जिम्मा जीविका की महिलाओं पर डाल देती है, मगर उनकी सुरक्षा के इंतजाम नहीं करती।
आखिर में पटना साइंस कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डॉ अखिलेश ने कहा कि जब तक परिवार, समाज और शिक्षण संस्थान अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करेंगे, ऐसे अभियान सफल नहीं होंगे। उन्होने कहा कि यह सरकार शराबबन्दी को वन मैन शो की तरह लागू करना चाहती है। इसलिये कोई जिम्मेदारी लेने के लिये तैयार नहीं है। अखिलेश ने कहा कि सिर्फ पुलिस को दोष देने से नहीं होगा। पुलिस की अपनी भी सीमाएं हैं।