सामान्य ज्ञान
पृथ्वी की भूआकृतियों बहुत लंबे समय तक एक सी नहीं रहती हैं. इनमें धीरे ही सही लगातार बदलाव होते रहते हैं. यही वजह है कि आज का भूगोल हजारों लाखों साल पुराने भूगोल से बहुत ही अलग हो जाता है. एक समय सभी महाद्वीप एक विशाल महाद्वीप का हिस्सा हुआ करते थे तो वहीं आज का हिमालय कभी समुद्र के नीचे का हिस्सा था. लेकिन आज यह दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत शृंखला है. एक शोध में बताया गया है कि अब से 20 करोड़ साल बाद नई पर्वत शृंखला हिमालय से ऊंची हो जाएगी. शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि आज के सुमालिया से पर्वत शृंखला बनेगी वह बिलकुल वैसी ही होगी जैसी हिमालय पर्वत माला है.
उसी तरह से हो रहा है निर्माण
पृथ्वी की भूआकृतियों के निर्माण और बदलाव के पीछे टेक्टोनिक गतिविधियों की भूमिका होती है. इनमें टेक्टोनिक प्लेट्स के आपस में टकराव से ही हिमालय जैसी पर्वत शृंखला का निर्माण होता है. भूगर्भविज्ञान डॉ डाउ वैन हिन्सबेर्फन की अगुआई में उट्रेच यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि जिस तरह हिमालय पर्वत शृंखला बनकर ऊंची उठी थी, उसी तरह से सोमालिया की पर्वत माला भी बन जाएगी.
पुरातन भूगोल का पुनर्निर्माण
इस बदलाव के बारे में कंवरशेसन में प्रकाशित लेख विस्तार से बताया गया है. इस तरह के पुराभौगोलिक पुनर्निर्माण में टेक्टोनिक प्लेट्स, ज्वालामुखियों और पर्वत निर्माण की अन्य प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है और उनकी महासागरों, सूर्य और वायुमंडल से अंतरक्रियाओं को भी समझा जाता है.
सॉफ्टवेयर के जरिए
पिछले 10 सालों से ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित किया जा रहा है जो इस तरह का पुनर्निर्माण करने में सक्षम है जिससे पुराने समय की भौगोलिक गतिविधियों को समझा जा सके और भविष्य में आने वाली उनकी स्थितियों का अनुमान लगाया जा सके. जैसे इसके जरिए पता चलता है कि बड़ी महासागरीय धाराओं में तब बड़ा बदलाव आता है जब महासागरों के बीच बहुत पतले रास्ते खोले जाते हैं जैसे दोनों अमेरिकी महाद्वीपों के बीच खोला गया था.
भूगर्भीय रिकॉर्ड की मदद से
आज पृथ्वी की पर्पटी की 70 प्रतिशत हिस्सा वैसा ही है जैसा 15-20 करोड़ साल पहले था. उस समय डायनासोर पहले से ही पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे, जिनके अवशेष आज पृथ्वी की मैंटल तक पहुंच चुके हैं. लेकिन इस दौरान सभी तरह की भूगर्भीय गतिविधियों के जानकारी भी दफन हो गई. इसी जानकारी के जरिए शोधकर्ताओं ने पुरातन काल की भौगोलिक जानकारी जुटाने का प्रयास किया.
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कैसे जुटाई जा सकती है जानकारी
बहुत से पर्वत जो हिमालय की तरह मशहूर नहीं हैं, टूटी हुई टेक्टोनिक प्लेट से निकलीं चट्टानों के जमा होने और मुड़ने से बने हैं. उनके खनिज और उनमें जमा जीवाश्म से पता चल सकता है कि ये चट्टानें कैसे बनी थीं. भूगर्भ शास्त्री इन संकेतों को जमा कर यह पता लगा सकते हैं कि कैसे महाद्वीप और ज्वालामुखियों में आपस में किसी तरह का कोई नाता था.
अफ्रीका से अलग हो जाएगा सोमालिया
शोधकर्ताओं ने एक नियमावली बनाई जिसमें पर्वत मालाओं में पाए जाने वाली विशेषताओं के आधार पर पर्वतों की भूसंरचना का पता लगाया जा सकता है और यह भी अगले 20 करोड़ साल बाद उन पर्वतों की क्या स्थिति हो जाएगी. इसी से उन्होंने पता चला कि उस समय सोमालिया का भूभाग अफ्रीका अलग होकर भारत से टकराएगा.
20 करोड़ साल बाद के समय इससे जो पर्वत शृंखला बनेगी वह सोमालिया पर्वतमाला होगी और वह उस दौर की हिमालय पर्वत शृंखला होगी. शोधकर्ताओं ने बताया कि मैडागास्कर और अफ्रीका के बीच की खाड़ी से पर्वतों की पट्टी बन सकती है जो पूर्वी यूरोप के कार्पैथियन या फिर इंडोनेशिया और तिमोर के बांडा द्वीपों की तरह बहुत ज्यादा वक्री होगी, वहीं उत्तर पश्चिम भारत सोमालिया के 50 किलोमीटर नीचे दफन हो जाएगा. इससे भारत मुड़ कर पश्चिमी नॉर्वे की तरह दिखने लगेगा.