सामान्य ज्ञान

पंचाग
01-Jan-2022 11:58 AM
पंचाग

पंचांग  ऐसी तालिका को कहते हैं जो विभिन्न समयों या तिथियों पर आकाश में खगोलीय वस्तुओं की दशा या स्थिति का ब्यौरा दे। खगोलशास्त्र और ज्योतिषी में विभिन्न पंचांगों का प्रयोग होता है। इतिहास में कई संस्कृतियों ने पंचांग बनाई हैं क्योंकि सूरज, चन्द्रमा, तारों, नक्षत्रों और तारामंडलों की दशाओं का उनके धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन में गहरा महत्व होता था। सप्ताहों, महीनों और वर्षों का क्रम भी इन्हीं पंचांगों पर आधारित होता था।  
पंचांगों का इतिहास
*2000 ईपू - ज्योतिष पर आधारित वैदिक काल के भारतीय खगोलशास्त्र की पंचांग तालिकाएं।
*1000 ईपू - बैबिलोनियाई खगोलशास्त्र के पंचांग।
* दूसरी सदी ईसवी - टॉलमी की अल्मागेस्ट और आसान तालिकाएं।
*8वीं सदी ईसवी - इब्राहीम अल-फज़़ारी की ज़ीज ('ज़ीज' का अर्थ तारों की तालिका होता है)।
*9वीं सदी ईसवी - मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी की ज़ीज
* 12वीं सदी ईसवी - क्रेमोना के जेरार्ड द्वारा अरबी ज़ीज पर आधारित  तोलेदो की तालिकाएं, जो यूरोप के प्रचलित पंचांग बन गए।
*13वीं सदी ईसवी - मराग़ेह वेधशाला (ऑब्जऱवेटरी) की ज़ीज-ए-इलख़ानी
*13वीं सदी ईसवी -  तोलेदो की तालिकाओ  में कुछ ख़ामियां ठीक करने वाली  अल्फ़ोंसीन तालिकाएं, जो यूरोप का नया प्रमुख पंचांग बन गया
*1408 ई - चीनी पंचांग अस्तित्व में आया।
* 1496 ई - पुर्तगाल के अब्राऊं बेन सामुएल ज़ाकुतो का  अल्मनाक पेरपेतू।
*1508 ई - यूरोपीय खोजयात्री क्रिस्टोफऱ कोलम्बस द्वारा जर्मन खगोलशास्त्री रेजियोमोंतानस के पंचांग का प्रयोग करके जमैका के आदिवासियों के लिए चांद ग्रहण की भविष्यवाणी, जिस से वे अचम्भित रह गए।
*1551 ई - कोपरनिकस की अवधारणाओं पर आधारित एराज़मस राइनहोल्ड की प्रूटेनिक तालिकाएं, जो यूरोप का नया मानक पंचांग बन गई।
*1554 ई - योहानेस स्टाडियस ने अपनी कृति में ग्रहों की स्थितियों की भविष्यवाणियां की, लेकिन उनमें कई ग़लतियां थीं।

शक संवत
शक संवत भारत का प्राचीन संवत है जो 78 ई. से आरम्भ होता है। शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। शक संवत के विषय में बुदुआ का मत है कि इसे उज्जयिनी के क्षत्रप चेष्टन ने प्रचलित किया। शक राज्यों को चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने समाप्त कर दिया पर उनका स्मारक शक संवत अभी तक भारतवर्ष में चल रहा है।
 कुछ अन्य संवत हैं- प्राचीन सप्तर्षि 6676 ईपू,  कलियुग संवत 3102 ईपू, सप्तर्षि संवत 3076 ईपू, विक्रमी संवत 57 ईपू।

कालदर्शक
कालदर्शक एक प्रणाली है जो समय को व्यवस्थित करने के लिये प्रयोग की जाती है। कालदर्शक का प्रयोग सामाजिक, धार्मिक, वाणिज्यिक, प्रशासनिक या अन्य कार्यों के लिये किया जा सकता है। यह कार्य दिन, सप्ताह, मास, या वर्ष आदि समयावधियों को कुछ नाम देकर की जाती है। प्रत्येक दिन को जो नाम दिया जाता है वह  तिथि कहलाती है। प्राय: मास और वर्ष किसी खगोलीय घटना से सम्बन्धित होते हैं (जैसे चन्द्रमा या सूर्य का चक्र से) किन्तु यह सभी कैलेण्डरों के लिये जरूरी नहीं है। अनेक सभ्यताओं और समाजों ने अपने प्रयोग के लिये कोई न कोई कालदर्शक निर्मित किए थे जो प्राय: किसी दूसरे कालदर्शक से उत्पन्न थे ।
 कालदर्शक एक भौतिक वस्तु (प्राय: कागज से निर्मित) भी है। कालदर्शक शब्द बहुधा इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है।

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