विचार / लेख

भारत को एक सभ्य और नैतिक धर्म की जरूरत...
21-Jan-2022 3:52 PM
 भारत को एक सभ्य और नैतिक धर्म की जरूरत...

-संजय श्रमण

कोलकाता के एक मित्र ने भयानक किस्सा सुनाया।
उन्होंने बताया कि वे अक्सर सब्जियां खरीदने जाते हैं अपने छोटे बच्चों को भी साथ लिए जाते हैं, सैर भी हो जाती है और बच्चों को दीन दुनिया की कुछ समझ भी मिल जाती है।
सब्जी बाजार में रोजाना एक ही आदमी से सब्जी खरीदने के कारण उससे मित्रता हो गई थी। एक दिन चटख हरी भिन्डी खरीदते हुए उन्हें सब्जीवाले ने सलाह दी कि बाबूजी आज ये भिन्डी मत खरीदो आपके छोटे-छोटे बच्चे हैं। मित्र ने कारण पूछा तो सब्जीवाले भाई ने कहा कि आज इसमें जहरीला हरा रंग कुछ ज्यादा ही मिलाया गया है जो बच्चों को बीमार कर सकता है, आप आज न खरीदो ये भिन्डियाँ।

तब मित्र ने पूछा कि तुम लोग मिलाते ही क्यों हो ये जहर इन सब्जियों में?
इसपर उत्तर मिला कि बाबूजी हम जिन मंडियों से ये सब खरीदकर लाते हैं वहां हरी दिखने वाली सब्जियों के अच्छे दाम मिलते हैं, खरीददार भी ये ही सब खरीदते हैं। अब हम गरीब अनपढ़ किसानों को क्या पता ये रंग पेट में पहुंचकर क्या करेंगे? इसलिए सभी गरीब अनपढ़ किसान ज्यादा फायदे के लिए तरह तरह के रंग, जहरीली दवाइयां और न जाने क्या क्या मिलाते रहते हैं।

मित्र ने उस सब्जीवाले भाई को कहा कि मुझसे दस पचास रुपये ज्यादा ले लिया करो लेकिन मेरे बच्चों को इस जहर से बचा लो, मुझे सिर्फ अच्छी और बिना जहर वाली सब्जियां ही दिया करो।
इसके बाद मित्र ने बताया कि अक्सर मेरा सब्जीवाला कहता है कि बाबूजी आज पूरे बाजार में आपके लिए कोई सब्जी-तरकारी नहीं है आज कुछ मत खरीदो, दाल चावल ही खा लो।
ये हकीकत है इस समाज की। अब इसका मतलब ध्यान से समझिये।
अगर आपका समाज एक बड़े श्रमशील वर्ग को अछूत और नीच बनाकर उसे तिरस्कार देगा तो वो वर्ग एक दुसरे ढंग से आपसे बदला लेगा। ये श्रमजीवी जातियां जो कि अपमानित हैं, जिन्हें शिक्षा से और ज्ञान से वंचित रखा गया है इन्हें जब कीटनाशकों का उपयोग करना नहीं आयेगा, इन्हें जब फसलों का सही दाम नहीं मिलेगा तब ये मिलावट करेंगे, तब ये जाने अनजाने आपकी थालियों में जहर घोलेंगे।

इस सब की जिम्मेदारी किसकी है?

निश्चित ही वे गरीब और अनपढ़ शूद्र या दलित खुद इसके लिए कम जिम्मेदार हैं। उन्हें शिक्षा से किसने वंचित किया? उनके कामों को अपमानित किसने किया? जिस धर्म और संस्कृति ने श्रम को अपमानित करके श्रमशील जातियों को शूद्र और दलित बनाया और उन्हें विपन्न और अनपढ़ बनाये रखा उसी धर्म पर इस प्रदुषण की जिम्मेदारी है।
इस देश के धर्म ने और संस्कृति ने कभी भी यह नहीं समझा कि ये जीवन एक परस्पर निर्भरता है। यहाँ किसी एक समुदाय के लिए आप कोई जहर बोयेंगे तो वो जहर छिपे हुए रास्तों से आपके किचन में आपकी थालियों तक आ ही पहुंचेगा। आप गरीब और फटेहाल किसानों की समस्या के लिए आवाज नहीं उठाएंगे, उन्हें सब्जियों फसलों का सही दाम नहीं देंगे तो वे ऐसे शॉर्टकट अपनाकर आपके बच्चों से बदला लेंगे।
आपको उनके बच्चों की फिक्र नहीं तो वे भी आपके बच्चों की फिक्र क्यों करेंगे भला? वे गरीब और अशिक्षित लोग अक्सर यह जानते भी नहीं कि वे जो कर रहे हैं उसका असर क्या होने वाला है।
प्रदूषण और मिलावट असल में धर्म, संस्कृति और नैतिकता का मुद्दा है, अगर आपका धर्म और संस्कृति असभ्य और अनैतिक हैं तो ये मिलावट और प्रदूषण जारी रहेगा।
भारत को एक सभ्य और नैतिक धर्म की जरूरत है।

 

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