सामान्य ज्ञान
जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र हादसे के दो साल हो गए हैं। जापान में 11 मार्च 2011 को आए भूकंप के बाद उठी विनाशकारी सुनामी लहरों की चपेट में फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र आ गया था। इस संयंत्र को भारी नुकसान हुआ था। संयंत्र से हुए विकिरण रिसाव के चलते आस-पास के इलाके को खाली करवाना पड़ा था। इस घटना ने परमाणु ऊर्जा की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े किए थे।
11 मार्च 2011 के हुए तीन हादसों ने 19 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली। ताजा आंकड़ों के अनुसार फुकुशिमा के हादसे में जापान का नुकसान अब तक के अनुमान से ज्यादा है। परमाणु संयंत्र चलाने वाली कंपनी टेपको के अनुसार हर्जाने की रकम 97 अरब यूरो को पार कर सकती है। परमाणु दुर्घटना वाले रिएक्टर में दो साल बाद भी रेडियोधर्मिता काफी ऊंची है। यहां रोबोट से काम लिया जाता है। दुर्घटनाग्रस्त रिएक्टर में साफ सफाई के लिए एक नए प्रकार के रोबोट का इस्तेमाल हो रहा है। उसका नाम सुपर जिराफ है। 2.25 मीटर लंबा और 80 सेंटीमीटर चौड़ा रोबोट 150 किलोग्राम का वजन उठा सकता है।
इस दुर्घटना के बाद सरकार के संकट प्रंबधन की बड़ी आलोचना हुई थी। रिएक्टर चलाने वाली कंपनी टेपको ने बाद में माना कि वह प्राकृतिक विपदा का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुर्घटना के इलाके में कैंसर का खतरा थोड़ा ही बढ़ा है। चिकित्सकों के एक अंतरराष्ट्रीय संगठन को 80 हजार लोगों के कैंसर होने का खतरा है। अभी भी बहुत से इलाके प्रदूषित हैं। ग्रीनपीस ने फरवरी में फुकुशिमा की कुछ जगहों पर 10 मिलिसीवर्ट प्रति घंटे से ज्यादा का परमाणु प्रदूषण मापा।