सामान्य ज्ञान
क्लोरीन पानी के कोलीफार्म बैक्टीरिया को नष्ट करता है इसीलिए पानी को शुद्ध करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन उसका अधिक इस्तेमाल सेहत के लिए नुकसानदेह भी है।
भारत में सबसे ज्यादा लोग जलजनित बीमारियों के शिकार होते हैं। जलजनित रोगों की मुख्य वजह उसमें पाए जाने वाले कोलीफार्म बैक्टीरिया होता है। इसको नष्ट करने के लिए पानी में क्लोरीन मिलाया जाता है। पानी में क्लोरीन की स्थिति की जांच टेल पर पहुंचने वाले पानी के जरिए की जाती है। टेल पर ओटी टेस्ट पॉजिटिव मिलने पर ही माना जाता है कि सही मात्रा में क्लोरीन मिली है। टेल तक क्लोरीनयुक्त पानी पहुंचाने के लिए जल संस्थान ने जगह-जगह क्लोरीन मिलाने वाले डोजर लगा रखे हैं। सबसे पहले निर्धारित मात्रा में क्लोरीन जल संस्थान में मिल जाती है। उसके बाद हर मुहल्ले में जलापूर्ति करने वाले पंपों से भी क्लोरीन मिलाकर आगे भेजा जाता है। पाइपलाइन पुरानी होने के कारण जगह-जगह उसमें गंदगी मिलती है। इसके लिए निर्धारित मात्रा में कईं गुना ज्यादा क्लोरीन पानी में मिलाई जा रही है।
पानी में कैल्शियम हाइपो क्लोराइड मिलाई जाती है जो नुकसानदेह साबित होता है। यह शरीर के ऑक्सीजन के फ्री रेडिकल को समाप्त करता है। पानी में कैल्शियम हाइपो क्लोराइड की वजह से पानी रखने वाले बर्तनों में कैल्शियम की सफेद पर्त जमा हो जाती है। इसकी वजह से जलापूर्ति के पाइपों में कैल्शियम के कण जमा हो जाते हैं। कैल्शियम हाइपो क्लोराइड एक साल्ट है और उसका साइड इफेक्ट होता है। उसकी अधिक मात्रा गैस्ट्रिक म्युकोसा (पेट की लाइनों) को एरिटेट करता है। इससे एसिड का स्राव बढ़ जाता है। एसिड के बढऩे से गैस बनने, अल्सर, बालों के झडऩे, त्वचा के बेरौनक होने के मामले सामने आ रहे हैं।