सामान्य ज्ञान
सरोगेसी सहायक प्रजनन की एक प्रणाली है। आईवीएफ/गर्भावधि सरोगेसी इसका अधिक सामान्य रूप है जिसमें सरोगेट संतान पूर्ण रूप से सामाजिक अभिभावकों से संबंधित होती है। इसका अन्य तरीक़ा है गर्वावधि सरोगेसी जिसमें सरोगेट संतान आनुवांशिक तौर पर पिता और सरोगेट मां से संबंधित होता है।
भारत में 23 जून 1994 में प्रथम सरोगेट शिशु के साथ सरोगेसी की शुरूआत हुई, लेकिन विश्व का ध्यान इस ओर आकर्षित करने में और आठ वर्ष लग गए । जब 2004 में एक महिला ने अपनी ब्रिटेन में रहने वाली बेटी के लिए एक सरोगेट शिशु को जन्म दिया। एक चिकित्सीय प्रक्रिया के रूप में सरोगेसी पद्धति में वर्षों के अंतराल में परिपक्वता आई है। धीरे-धीरे भारत प्रजनन बाज़ार का एक मुख्य केन्द्र बन गया है और आज देश भर में कृत्रिम गर्भाधान, आईवीएफ और सरोगेसी मुहैया कराने वाले अनुमानत: 2 लाख क्लिनिक हैं। वे इसे सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) कहते हैं।
भारत में सरोगेसी को नियंत्रित करने के लिए फिलहाल कोई कानून नहीं है और किराए पर कोख देने (व्यावसायिक सरोगेसी) को तर्क संगत माना जाता है। किसी कानून की अनुपस्थिति में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) ने भारत में एआरटी क्लिनिकों के प्रमाणन, निरीक्षण और नियंत्रण के लिए 2005 में दिशानिर्देशों को जारी किया। लेकिन आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के उल्लंघन और कथित तौर पर बड़े पैमाने पर सरोगेट माताओं के शोषण और जबरन वसूली के मामलों के कारण इसके लिए कानून की ज़रुरत महसूस की जा रही है।
सरोगेसी को कानूनी बनाने के लिए भारत सरकार के कहने पर एक विशेषज्ञ समिति ने सहायक प्रजनन तकनीक (नियंत्रण) कानून, 2010 का मसौदा तैयार किया।