विचार / लेख

कनक तिवारी लिखते हैं- निन्दा रस : आज माधवराव सिंधिया
13-Apr-2022 4:45 PM
कनक तिवारी लिखते हैं- निन्दा रस : आज माधवराव सिंधिया

जीवन तो नवरस का सम्मेलन है। हर वक्त गम्भीरता ओढऩे से आदमी मनहूस होता चलता है। आज हल्की फुल्की पोस्ट है। मेरे मन में किसी के लिए कलुष ठहरता नहीं है। नौ नगद, न तेरह उधार करता चलता हूं। सिर्फ मनोरंजन इस पोस्ट का मकसद है।

कवि, लेखक, प्राध्यापक और वरिष्ठ मित्र रहे डॉ. प्रमोद वर्मा की याद आ रही है। जो मेरे जेहन में छितरा गए, उनमें प्रमोद जी हैं ही। मैं साइंस कॉलेज रायपुर में उनका जूनियर सहकर्मी था। अध्यापकों में कई ठूंठ, ठर्र और कूपमंडूक किस्म के साथी रहते ही हैं। कुछ बागी किस्म, मुहफट, वाचाल और खुद को मौलिकता का तमगा पहनाते साथी भी हुये। हम जी भरकर लोगों की खुल्लमखुल्ला बुराई करते, ठहाके लगाते, चाय या कॉफी पीते, कुछ साथी सिगरेट के छल्ले उड़ाते। एक दिन प्रमोद जी के घर के सामने देर शाम हम लोग खड़ेे होकर प्राचार्य और प्राध्यापकों की बुराई कर रहे थे। मानो उससे हमारी पाचन शक्ति को जुलाब जैसा फायदा मिल जाएगा और अंदर की गंदगी निकल पड़ेगी। अचानक प्रमोद जी ने गंभीर चेहरा बनाते कहा ‘‘आओ यार अंदर बैठते हैं। पकौड़ेे बनवाता हूं और चाय। जी भरकर पकौड़ेे खाएंगे। चाय पिएंगे और पेट भर बुराई करेंगे।’’


अभी अचानक माधवराव सिंधिया का चेहरा उभर रहा है। साफ है मैं राजनीतिक, सामाजिक समझ की जिस शुरुआती पाठशाला में 1957 में स्कूल में पढ़ा, उसके मेरे प्रेरक तो राममनोहर लोहिया थे। 1959 में नेहरू उसमें आए। 1969 में गांधी मशहूर समाजवादी कृष्णनाथ के कारण जुड़ गए। ये सब मुझे छोड़ते ही नहीं हैं। फक्कड़ लोहिया ने राजशाही के खिलाफ मन में ऐसी बातें भर दी थीं कि मुझे सामंतों की देह से एक तरह की गैस निकलती महसूस होती रहती है। सुनील दत्त और नूतन के अभिनय वाली फिल्म सुजाता का एक किरदार भी यही तो कहता है कि अछूतों के शरीर से एक गैस निकलती है। हीरो खंडन करते हुए पूछता है आपने कभी देखी है। घाघ किरदार जवाबी सवाल करता है। टमाटर में विटामिन होता है तुमने कभी देखा है।

1989 में कांग्रेस की केन्द्र में हार के बाद पहली बार राजीव गांधी से मिला था। उन्हें मेरे बात करने का सलीका इतना पसंद आया और मुझे उनका व्यक्तित्व कि मैं लगातार चार दिन तक उनसे मिलता रहा। दूसरे ही दिन उनके घर एक ऑडियो टेप रिकार्डर लेकर राजीव गांधी को सुनाया। उसमें अपने नाम का उल्लेख और जोशीले नारे सुनकर राजीव ने वह कैसेट ले लिया और कहा इसे इत्मीनान से सुनूंगा।

अगले बरस राजीव ने मुझे खुद होकर मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी का महामंत्री नियुक्त किया। मैंने उनसे मुलाकातों में मध्यप्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष अर्जुन सिंह केे काफी बीमार हो जाने के कारण मित्र, आदिवासी लोकसभा सदस्य अरविंद नेताम को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाने की प्रार्थना भी की थी। नेताम कार्यवाहक अध्यक्ष बने और मैं उनके साथ महामंत्री। पदभार के बाद मैं राजीव जी के पास गया। वे चाहते थे मैं दिल्ली में पार्टी संगठन में आ जाऊं। मैंने उनसे कहा था मैं जिला न्यायालय दुर्ग का ठीक ठाक वकील हूं। वकालत करते हुए मैं मध्यप्रदेश में तो काम कर पाऊंगा लेकिन दिल्ली आ गया तो मुझे खर्च की किल्लत होगी। राजीव जी ने सोचा। फिर कहा तुम्हारे ठहरने खाने का पहले इंतजाम करते हैं। बाकी फिर देखते हैं।

राजीव ने माधवराव सिंधिया से बात की और मुझे भेजा। मैंने सिंधिया को अपनी बातचीत का ब्यौरा दिया। अपने कर्मचारी के साथ सिंधिया ने सरकारी कोठी के आउटहाउस में मुझे भेजा और उसने कहा कि यहां आप रह सकते हैं। आसपास कुछ और स्टाफ भी रहता है। उन्हीं की तरह खाने पीने का इंतजाम सोचा जा सकता है। मैंने कहा यहां तो लोग मुझसे मिलने आएंगे। कभी घर के लोग भी आ सकते हैं। इसी एक कमरे में मुनासिब ग़ुजारा कैसे होगा। लौटकर सिंधिया से मिला। उन्होंने कहा इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कर सकता। उनकी आवाज में तल्खी थी। उनकी निगाह में ग्वालियर का महाराजा था और मैं एक अकिंचन ब्राह्मण जो रसोइया और ड्राइवर की सामाजिक कैटेगरी का था। मैं तब भी बर्दाश्त कर लेता अगर यथा नाम तथा गुण होने से उनमें द्वापर के माधव की दृष्टि होती। मैं अपनी गरीबी के कारण खुद को सुदामा मान लेता। लेकिन वह नहीं हुआ।

मैंने राजीव जी को जाकर मनाही कर दी। वे मेरी ओर देखते रहे। फिर बोले मुझे भी लगता था कि शायद ऐसा ही होगा, लेकिन फिर भी मैंने सोचा कि शायद कुछ हो जाए। अब आप मध्यप्रदेश में जी लगाकर काम करिए। अगले लोकसभा के चुनाव के बाद फिर सोचेंगे। मैंने राजीव से कहा था कि मैं अब बुराई नहीं करना चाहता लेकिन सामंतवाद में यदि थोड़ी सी धरती की गंध हो जाए तो वे अब भी कुछ सार्थक कर सकते हैं, क्योंकि भारत की जनता अभी भी खुद को उनका रियाया ही समझती है। राजीव मुस्कराए थे। बेहद कड़वा स्वभाव होने के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया की सियासत इसीलिए फलफूल जाती है क्योंकि जनता का एक बड़ा वर्ग उन्हें अपना खैरख्वाह समझता है। भले ही वे उसकी ही छाती पर मूंग दलते रहें।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news