विचार / लेख
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा पंजाब के अधिकारियों के साथ बैठक करने पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष के नेताओं ने इसे केजरीवाल द्वारा पंजाब के सुपर सीएम बनने की कोशिश बताया है।
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय का लिखा-
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 11 अप्रैल को पंजाब सरकार के अधिकारियों के साथ दिल्ली में एक बैठक ली थी। बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान मौजूद नहीं थे, जिससे इस बैठक को केजरीवाल द्वारा पंजाब के अधिकारियों को निर्देश देने की कोशिश के रूप में देखा गया।
बैठक में पंजाब के मुख्य सचिव, ऊर्जा सचिव और राज्य की ऊर्जा कंपनी पीएसपीसीएल के शीर्ष अधिकारी मौजूद थे। मुख्य सचिव राज्य सरकार का सर्वोच्च अधिकारी होता है और वो मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करता है। संवैधानिक रूप से एक राज्य के मुख्यमंत्री की किसी दूसरे राज्य के मुख्य सचिव को कोई निर्देश देने की जरूरत नहीं है।
प्रशासनिक सेवाएं
केजरीवाल आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक भी हैं, इसलिए उनकी पार्टी के प्रवक्ताओं ने कहा है कि पार्टी का उनसे मार्गदर्शन लेना वाजिब है। लेकिन बात पार्टी के या किसी नेता के या खुद मुख्यमंत्री के मार्गदर्शन की नहीं है।
सवाल अधिकारियों का है जो पार्टी के सदस्य नहीं बल्कि प्रशासनिक सेवाओं के सदस्य होते हैं। राज्य के मुख्यमंत्री को सलाह देने और उसके निर्देशों का पालन करने के लिए वो संवैधानिक रूप से बाध्य हैं, लेकिन सिर्फ अपने राज्य के अंदर।
दिल्ली में जो हुआ भारत में हाल के इतिहास में पहली बार हुआ है। कांग्रेस, भाजपा और सीपीएम (लेफ्ट फ्रंट के घटक दल के रूप में) के अलावा कभी किसी पार्टी की सरकार एक साथ दो राज्यों में नहीं रही। तीनों राष्ट्रीय पार्टियां हैं और एक व्यवस्थित राष्ट्रीय नेतृत्व के तहत चलती हैं।
‘रिमोट कंट्रोल सरकार’
लेकिन इन पार्टियों के भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ अलग से बैठक करने का कोई उदाहरण नहीं है। यही वजह है कि पंजाब में विपक्ष के नेता इस बैठक की आलोचना कर रहे हैं और ‘आप’ द्वारा पंजाब को ‘रिमोट कंट्रोल’ से चलाने का आरोप लगा रहे हैं।
इस मामले में संवैधानिक सवालों के साथ साथ राजनीतिक शुचिता के सवाल भी उठ रहे हैं। क्षेत्रीय पार्टियों पर बस एक नेता के इर्द गिर्द घूमने के आरोप लगते रहे हैं। एक ही पार्टी के दो अलग अलग राज्यों में मुख्यमंत्री होना क्षेत्रीय पार्टियों की आंतरिक व्यवस्था के लिए भी एक चुनौती है।
जनता द्वारा चुने हुए मुख्यमंत्री को स्वतंत्र रहने देने और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के आगे विवश न दिखाने में अगर आम आदमी पार्टी सफल हो सके तो यह क्षेत्रीय पार्टियों के लिए एक मील का पत्थर होगा। (dw.com)