विचार / लेख
-शुमायला खान
पाकिस्तान की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो जरदारी ने बुधवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्री के रूप में शपथ ली।
पाकिस्तान के सभी राजनीतिक हलकों और राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि बिलावल भुट्टो के मंत्रिमंडल में शामिल होने से हाल ही में बनी पाकिस्तान मुस्लिम लीग के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार मजबूत होगी।
लेकिन अब सभी की निगाहें उनकी विदेश नीति पर होंगी, ख़ासकर भारत के साथ रिश्ते पर। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की पूर्ववर्ती सरकारों के रिश्ते भारत से बहुत खराब नहीं रहे हैं। हालांकि पिछले सात सालों में हालात बहुत बदल गए हैं। पाकिस्तान के विश्लेषक इन खराब हुए रिश्तो के लिए भारत की नरेंद्र मोदी सरकार को जिम्मेदार मानते हैं।
अब सवाल यह है कि क्या बिलावल भुट्टो जरदारी भारत को लेकर पाकिस्तान की विदेश नीति में कोई बदलाव ला सकेंगे, खासकर कश्मीर के मुद्दे पर। भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त शाहिद मलिक कहते हैं, ‘पाकिस्तान के सभी पक्ष यह चाहते हैं कि भारत के साथ रिश्ते फिर से सामान्य हो और कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा हो। पाकिस्तान में पिछले 5-7 सालों में जो भी सरकार सत्ता में आई है, उसने भारत के साथ रिश्तों को सामान्य करने की कोशिश की है। बातचीत शुरू होनी चाहिए लेकिन भारत ने इस दिशा में कोई प्रगति नहीं की है।’ यहाँ यह गौर करने वाली बात है कि शाहिद मलिक पाकिस्तान में पीपल्स पार्टी की सरकार के दौरान भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त थे। यह वह दौर था जब पाकिस्तान की सबसे युवा विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने भारत की कामयाब यात्रा की थी।
शाहिद मलिक कहते हैं, ‘जब भारत में मनमोहन सिंह सत्ता में थे तब दोनों देशों के बीच नियमित बात होती थी। दूसरे मुद्दों के साथ-साथ कश्मीर के मुद्दे पर भी वार्ता की प्रक्रिया चल रही थी। दोनों देशों के बीच व्यापार, कई मुद्दों पर बैठकर हो रही थी और एक दूसरे की खेल टीमें इधर-उधर जा रही थीं।’ वहीं कराची विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों की प्रोफेसर डॉक्टर हुमा बक़ाई मानती हैं कि अगले साल होने वाले चुनावों की वजह से बिलावल भुट्टो ऐसी स्थिति में नहीं है कि वह भारत को लेकर पाकिस्तान की विदेश नीति में कोई निर्णायक बदलाव कर सकें।
‘पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय में इस बात को लेकर आम सहमति है कि जब तक भारत में नरेंद्र मोदी सत्ता में हैं भारत और पाकिस्तान के रिश्तो में कुछ नहीं हो सकता। इस मामले में विदेश नीति में बदलाव पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है क्योंकि उसकी सहयोगी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज इस मुद्दे पर अपने आपको विदेश मंत्री से अलग करके देखेगी।’
पाकिस्तान में सत्ताधारी गठबंधन की दोनों ही अहम पार्टियां पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ भारत के साथ अच्छे रिश्ते चाहती हैं। पीपीपी एक उदारवादी लोकतांत्रिक विचारों वाली पार्टी है जो सुरक्षा को लेकर तो समझौता नहीं करेगी लेकिन वह मानती है की बातचीत की प्रक्रिया और राजनीतिक स्तर पर वार्ता से ही समस्याओं का समाधान निकलना चाहिए। पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज व्यापारिक हितों का ध्यान रखने वाली पार्टी है और वह चाहती है किस संकट का समाधान हो ताकि कारोबारी हितों का ध्यान रखा जा सके। वहीं इस्लामाबाद की कायद-ए-आजम यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर जफर नवाज सपाल मानते हैं कि दोनों ही पार्टियां लंबे समय तक कश्मीर को अपना फौरी एजेंडा नहीं बनाएंगी।
भारत के कश्मीर के विशेष संवैधानिक दर्जे को समाप्त करने के संदर्भ में डॉ जसपाल कहते हैं कि भारत पाकिस्तान को किसी भी तरह की राहत नहीं देना चाहेगा, ऐसे में गठबंधन सरकार इस मुद्दे को नजरअंदाज ही करना चाहेगी। वह इस मुद्दे पर अपनी सैद्धांतिक स्थिति को तो बरकरार रखेंगे लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की तरह आक्रामक नहीं होंगे। जिस तरह इमरान ख़ान ने इस मुद्दे को उछाला, बिलावल शायद ही ऐसा करें।
डॉक्टर जसपाल भारत पाकिस्तान की विदेश नीति में किसी सकारात्मक बदलाव की उम्मीद नहीं रख रहे हैं। वह कहते हैं कि पाकिस्तान में साल 2023 और भारत में साल 2024 में आम चुनाव होने हैं। मोदी साहब पाकिस्तान से बात नहीं करना चाहते क्योंकि इससे उनके वोट बैंक प्रभावित होते हैं। ऐसे में अगर बिलावल वार्ता की शुरुआत भी करना चाहे तो उन्हें भारत से बहुत उत्साहवर्धक जवाब नहीं मिलेगा।
पाकिस्तान की सेना और विदेश नीति
पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार के पतन से पहले सेना ने स्पष्ट किया था कि वह गैर राजनीतिक है और अपने आप को राजनीतिक मामलों से अलग रखती है। लेकिन पाकिस्तान में आम राय यह है कि पाकिस्तान के विदेश नीति के मामलों से सेना अपने आपको अलग नहीं रख सकती। भारत को लेकर पाकिस्तान की विदेश नीति उनके लिए बेहद अहम है।
डॉ. हुमा इस मान्यता से इत्तेफाक रखती हैं। वह कहती हैं कि विदेश नीति में, खासकर भारत के मामले में कुछ नया करना बिलावल का आखिरी पत्ता होगा। अंत में सेना ही भारत को लेकर पाकिस्तान की विदेश नीति तय करेगी। पाकिस्तान के इस ताजा राजनीतिक संकट की वजह से जनरल वाजवा की स्थिति कमज़ोर हुई है, ऐसे में अगर बिलावल भारत समर्थक स्टैंड लेना चाहेंगे भी तो नहीं ले पाएंगे। यथास्थिति बनी रहेगी और वह भारत को लेकर बहुत सक्रियता से काम नहीं कर पाएंगे।
भारत को लेकर विदेश नीति में बदलाव को सेना संवेदनशील क्यों मानती है?
डॉक्टर हुमा इसे समझाते हुए कहती हैं, ‘पाकिस्तान के सुरक्षा बलों के लिए यह एक मुश्किल साल रहा है और कराची यूनिवर्सिटी पर बलूच लिबरेशन आर्मी के ताजा हमले के बाद मुझे नहीं लगता कि बिलावल पाकिस्तान की नीति में बड़ा बदलाव करने की स्थिति में है।’
डॉक्टर हुमा कहती हैं कि ‘सेना प्रमुख जनरल जावेद क़मर बाजवा इस समय पहले से हुए नुकसान की भरपाई में लगे होंगे। ऐसे में मैं यह देखती हूं कि अमेरिका और यूरोप के साथ पाकिस्तान के रिश्तो में सुधार संभव है लेकिन अफगानिस्तान या भारत को लेकर पाकिस्तान की विदेश नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखता।’ (bbc.com/hindi)