विचार / लेख

जी हुजूर सरकार की मुसीबत
18-Jun-2022 12:00 PM
जी हुजूर सरकार की मुसीबत

बेबाक विचार : डॉ. वेदप्रताप वैदिक

मोदी सरकार ने जो नई अग्निपथ योजना घोषित की है, उसके खिलाफ सारे देश में जन-आंदोलन शुरु हो गया है। यह आंदोलन रोजगार के अभिलाषी नौजवानों का है। यह किसानों और मुसलमानों के आंदोलन से अलग है। वे आंदोलन देश की जनता के कुछ वर्गो तक ही सीमित थे। यह जाति, धर्म, भाषा और व्यवसाय से ऊपर उठकर है। इसमें सभी जातियों, धर्मों, भाषाओं, क्षेत्रों और व्यवसायों के नौजवान सम्मिलित है। इसके कोई सुनिश्चित नेता भी नहीं हैं, जिन्हें समझा-बुझाकर चुप करवाया जा सके।

यह आंदोलन स्वत: स्फूर्त है। जाहिर है कि इस स्वत:स्फूर्त आंदोलन के भडक़ने का मूल कारण यह है कि नौजवानों केा इसके बारे में गलतफहमी हो गई है। वे समझ रहे हैं कि 75 प्रतिशत भर्तीशुदा जवानों को यदि 4 साल बाद हटा दिया गया तो कहीं के नहीं रहेंगे। न तो नई नौकरी उन्हें आसानी से मिलेगी और न ही उन्हें पेंशन आदि मिलने वाली है। इस आशंका का जिक्र मैंने परसों अपने लेख में किया था।

इसे लेकर ही सारे देश में आंदोलन भडक़ उठा है। रेले रूक गई हैं, सडक़े बंद हो गई हैं और आगजनियां भी हो रही हैं। बहुत से नौजवान घायल और गिरफ्तार भी हो गए हैं। एक जवान ने आत्महत्या भी कर ली है। यह आंदोलन पिछले सभी आंदोलनों से ज्यादा खतरनाक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि ज्यादातर आंदोलनकारी वे ही नौजवान हैं, जिनके रिश्तेदार, मित्र या पड़ौसी पहले से भारतीय फौज में है। इस आंदोलन से वे फौजी भी अछूते नहीं रह सकते।

सरकार ने इस अग्निपथ योजना को थोड़ा ठंडा करने के लिए भर्ती की उम्र को साढ़े सतरह साल से 21 साल तक जो रखी थी, उसे अब 23 तक बढ़ा दिया है। यह राहत जरुर है लेकिन इसका एक दुष्परिणाम यह भी है कि चार साल बाद याने 27 साल की उम्र में बेरोजगार होना पहले से भी ज्यादा हानिकर सिद्ध हो सकता है। यह ठीक है कि सेना से 4 साल बाद हटनेवाले 75 प्रतिशत नौजवानों को सरकार लगभग 12-12 लाख रु. देगी तथा सरकारी नौकरियों में उन्हें प्राथमिकता भी मिलेगी।

लेकिन असली सवाल यह है कि मोदी सरकार ने इस मामले में भी क्या वही गलती नहीं कर दी, जो वह पिछले आठ साल में एक के बाद एक करती जा रही है? 2014 में सरकार बनते ही उसने भूमि-ग्रहण अध्यादेश जारी किया, अचानक नोटबंदी घोषित कर दी, कृषि कानून बना दिए और पड़ौसी देशों के मामले में कई बार गच्चा खा गई।

इससे यही साबित होता है कि वह नौकरशाहों के मार्गदर्शन पर एक अनेक देशहितकारी कदम उठाने का सत्साहस तो करती है लेकिन उनके कदमों का जिन पर असली असर होना है, उन्हें वह बिल्कुल भी घांस नहीं डालती है। वह यह भूल रही है कि वह लोकतंत्र की सरकार है। वह किसी बादशाह की सल्तनत नहीं है कि उसने जो भी हांक लगाई तो सारे दरबारियों ने कह दिया ‘जी हुजूर’! (नया इंडिया की अनुमति से)

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