विचार / लेख
-गौरव गुलमोहर
बात ज्यादा नहीं दो साल पुरानी है। गांव के बगल से लखनऊ-बनारस को जोडऩे वाली एक फोर लेन सडक़ गुजर रही थी। फोर लेन सडक़ गुजरने से सरल होने वाले यातायात का उत्साह उतना नहीं था जितना फोर लेन में खेत जाने से मिलने वाले पैसे का था।
दिलचस्प बात यह थी कि सडक़ बनने से पहले रोज सुबह चाय की दुकानों से एक अफवाह उठती, जिसमें गांव का कोई नेता टाइप आदमी पीडब्ल्यूडी में अपने सम्पर्क के माध्यम से बताता कि सडक़ लम्भुआ बाजार से दो किलोमीटर उत्तर दिशा से होकर गुजरेगी। अगले दिन कोई दूसरा नेता मंत्रालय में चल रही वार्ता के मध्यम से बताता कि सडक़ बाजार से तीन किलोमीटर उत्तर दिशा से होकर गुजरेगी।
इसी तरह लम्भुआ बाजार की उत्तर दिशा में बसने वाले लगभग दसियों गांव नोटों की गड्डियों के कल्पना लोक में विचरण करने लगे। गांव के लोगों को चाय की दुकानों से ही पता चला कि सरकार जमीन का दोगुना रेट दे रही है और अगर चार बीघा खेत भी सडक़ में गया तो एक झटके में आदमी करोड़पति बन जाएगा।
गांव में चर्चा तब और गर्म हो गई जब बिजली के तार को ले जाने के लिए ड्रोन कैमरे की मदद से सर्वे होने लगा। गांव में ख़बर पहुंच गई कि हेलीकॉप्टर से सडक़ जाने के लिए खेतों का फोटो खींचा जा रहा है। देखते ही देखते पूरा गांव नहर के किनारे पहुंच गया। जिनके खेतों के ऊपर से हेलीकॉप्टर (ड्रोन) गुजरता वो अंदर ही अंदर खुशी से फुट पड़ते और जिनके खेतों से ड्रोन नहीं गुजर रहा था वो भगवान भोलेनाथ से मन्नत मान रहे थे कि उनके खेत का भी फ़ोटो खींच लिया जाय।
गांव के लोगों के बीच गणित विषय अचानक वार्ता के केंद्र में आ गया। गांव में स्टेशनरी की एक दो दुकानें ही थीं जो टूटी-फूटी हालत में चल रही थीं। दिनभर में दो चार बच्चे पेंसिल, रबर, कटर और एक-दो कॉपियां लेने आ जाएं वही बहुत था। लेकिन सडक़ में खेत जाने की चर्चा के बाद से पूरा गांव कैपिटल कॉपी खरीदने पर टूट पड़ा। दुकानदार सुबह कॉपियों का एक बंडल लाता शाम तक कापियां गायब। गांव की जनता कैपिटल कापियों पर बिस्वा, धुर, बीघा, बाग, तालाब, बैनामा, हिस्सेदारी के हिसाब से जोड़ घटाव करने लगी।
यह सिलसिला लगभग छ: महीने तक चला। कोई मुम्बई से फोन कर खबर लेता कोई दिल्ली से और कोई कलकत्ता से। हर आदमी इस उम्मीद में था कि उसका खेत जाएगा तो वह पहले एक बोलेरो लेगा, फिर एक ट्रैक्टर और दो तल्ला घर बनवायेगा। जो थोड़े पढ़े-लिखे बेरोजगार थे वो सडक़ में खेत जाने के बाद मिलने वाले पैसे से एक स्कूल खोलने का प्लान करते क्योंकि इस समय स्कूल से अच्छा कोई दूसरा धंधा नहीं माना जाता है।
अंतत: हुआ यह कि जिन्होंने जोड़-घटाव, गुणा-भाग करके ज्यादा कैपिटल कापियां भरी थीं उनका खेत नहीं गया बल्कि पहले से तय जगह से फोर लेन सडक़ गुजरी और जिधर से फोर लेन गुजरी उधर के लोगों के हाथ में अचानक दस लाख से लेकर पचास लाख, एक करोड़ तक रुपये मिले। कई परिवार ऐसे थे रुपयों का हिसाब रखना उनके बस के बाहर की बात हो गई थी। कुछ ने बोलेरो निकलवाया, कुछ ने मारुति, कुछ ने ट्रैक्टर और कुछ ने घर बनवाया।
दो साल गुजरते-गुजरते जो दस बीस पचास लाख रुपये वाले लोग थे वो दोबारा वहीं आकर खड़े हो गए जहां पहले खड़े थे। उनके लिए एक मुश्त दस-बीस लाख रुपये बहुत थे लेकिन जब वे उससे अपना जीवन स्तर उठाना चाहे वहीं आकर खड़े हो गए जहां पहले खड़े थे। आज पचास लाख पाने वाले सैकड़ों लोग गांव में माछी मार रहे हैं। लाख रुपये भी खाते में नहीं बचे हैं। घर पर खड़ी बोलेरो बिकने का इंतजार कर रही है।
सरकार जिन नौजवानों को अग्निपथ योजना के तहत चार साल बाद बारह लाख रुपये देने की बात कर रही है वो क्या कर पाएंगे? एक टॉप मॉडल बोलेरो की कीमत आज लगभग बारह लाख रुपये है। एक बोलेरो खरीदते ही बारह लाख पाने वाला नौजवान की हालत फोर लेन सडक़ में गई जमीन के बाद कंगाल हुए किसान की हो जाएगी। रिटायर्ड अग्निवीर अपने परिवार का खर्चा, बच्चों की पढ़ाई, मां-बाप का इलाज, बहन-बेटी की शादी के लिए पैसे कहाँ से लाएगा?