विचार / लेख
-बादल सरोज
कोलम्बिया नाम के देश की राजधानी बोगोटा हमसे 8246 मील यानी 13271 किलोमीटर की दूरी पर है। इसे तय करने में बिना स्टॉपेज के लगातार हवाई यात्रा से 20 घंटे लगते हैं। भारत की प्रचलित लोक भाषा में कहें तो भारत के लिए पाताल लोक है-तकरीबन ठीक हमारे नीचे। इतनी दूरी पर बसे देश के बारे में इन पंक्तियों को लिखते हुये और इससे कुछ अधिक दूरी पर बैठे आपके द्वारा पढ़ते हुए पहला सवाल यही कौंधा कि इत्ती दूर हुए राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों पर हमें क्यों खुश होना चाहिए? कहने की जरूरत नहीं कि अंतरराष्ट्रीयतावाद की वैचारिक परवरिश और वसुधैव कुटुम्बकम मानने वाले देश भारत में पैदाइश इस प्रश्न को निरर्थक बनाती है। फिर भी सवाल उठा है टी इसकी वजहें ढूंढने चाहिए।
इसकी अनेक वजहें हैं -
हालांकि हमारे लिए तो इसकी एक ही वजह काफी है कि यह हमारे सर्वकालिक प्रिय लेखक गैब्रिएल गार्सिया मार्कवेज का देश है। अपनी जादुई यथार्थवादी शैली के लिए विख्यात मार्केज(6 मार्च 1927-17 अप्रैल 2014) -इन्हें मार्खेज भी उच्चारित करते हैं-स्पेनिश भाषा के उपन्यास लेखक और कथाकार थे। 70-80 के दशक से उनकी अंगरेजी और हिंदी में अनूदित लगभग हर किताब ढूंढकर और उस जमाने में खरीद कर पढ़ी है जब पॉकेट मनी के नाम पर मात्र अठन्नी मिला करती थी! उनकी नोबल सम्मानित हन्ड्रेड इयर्स ऑफ सॉलिट्यूड (एकांत के सौ बरस) कृति एक असाधारण उपन्यास है। इसे पढ़ा जाना चाहिए।
यूं तो उनका लिखा हर शब्द पठनीय है मगर फिर भी जिन्हे बिना इतिहास पढ़े, लैटिन अमेरिका और उसके मिजाज के बारे में जानना है उन्हें उनकी एक किताब और पढऩी चाहिए; दि जनरल इन हिज लैब्रिंथ। इसी के साथ फिदेल कास्त्रो के 17 घंटे लंबे इंटरव्यू के साथ लिखी उनकी भूमिका ‘पर्सनल पोर्टेट ऑफ फिदेल’ तथा ‘फिदेल कास्त्रो; माय अर्ली इयर्स’ निबंध भी पढ़े जा सकते हैं।
(टेंशन नहीं लेने का; धीरज से खंगालेंगे तो सब कुछ इंटरनेट पर मिल जाएगा। छपे रूप में बहुत कुछ लेफ्टवर्ड और वाम प्रकाशन पर भी है।)
बहरहाल इस निजी कारण को छोड़ दें तब भी हमे इसलिए खुश होना चाहिए ;
कि कोलंबिया ने अपने 212 वर्षों के इतिहास में पहली बार कोई वामपंथी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुना है। दूसरे दौर तक गए मुकाबले में गुजरे रविवार 19 फरवरी को वामपंथी गठबंधन के उम्मीदवार गुस्ताव पेट्रो ने 50.48 फीसदी वोट पाकर निर्णायक जीत हासिल की। दक्षिणपंथी प्रत्याशी को 47.26 फीसदी वोट मिले। उपराष्ट्रपति के लिए दूसरों के घरों में काम करने वाली मेड वामपंथी उम्मीदवार मिस फ्राँसिया मार्केज जीती; वे मजदूरिन के साथ साथ पहली काली महिला है जो इस पद पर पहुंची हैं।
कि पिछली 20-25 वर्षों से दक्षिण अमरीका के 12 संप्रभु देशों में से 11 में वाम या वामोन्मुखी राष्ट्रपति और सरकारें बनी हैं, बनती रही हैं, सिर्फ यही दूसरा बड़ा देश कोलम्बिया इस बदलाव से बचा रहा था- अब वहां भी वामपंथ की जीत एक बड़ी राजनीतिक घटना है। यह सिर्फ दुनिया के स्वयंभू दरोगा-सह-लुटेरे संयुक्त राज्य अमरीका के गाल पर तमाचा भर नहीं है ; यह साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ जनादेश भी है, उनके विरुद्ध वर्गसंघर्ष का उच्चतर स्थिति में पहुंचना है। ध्यान रहे कि नवउदार नीतियों का पहला कसाईखाना इसी दक्षिण अमरीका के देशों को बनाया गया था। यूं साम्राज्यबवादी लूट का भी शुरुआती निशाना यही था; कम्बखत क्रिस्टोफर कोलम्बस अपनी तीसरी यात्रा में इसी के पड़ोस वेनेजुएला में पहुंचा था।
कि इस महाद्वीप को इस कदर रौंदा गया कि बाकी सब तो छोडिय़े इनकी भाषाएँ-जो कई हजार थीं, जी कई हजार-भी मिटा दी गईं। आज इस महाद्वीप में बोली जानेवाली पांचो प्रमुख भाषाएँ स्पेनिश, पुर्तगाली, जर्मन, डच, इटैलियन और अंगरेजी है, जो हजारों किलोमीटर दूर से आये लुटेरों की भाषा हैं, यहां के बाशिंदों की नहीं हैं।
कि इस ‘अँधेरे के महाद्वीप’ में कोलंबिया अमरीकी साम्राज्यवाद का आखिरी विकेट था। क्यूबा में पिछले 6 दशक से भी ज्यादा समय से कम्युनिस्ट हुकूमत है। ह्यूगो शावेज के बाद से अब बस ड्राइवर निकोलस मादुरो तक वेनेजुएला में वामपंथ अडिग है। बोलीविया में इवो मोरालेस से शुरू हुआ वामपंथी दौर लुइस आर्क के राष्ट्रपति बनने तक जारी है। पिछली साल ही चिली, पेरू और होंडुरास नाम के देशों में वामपंथी राष्ट्रपति जीते हैं। ब्राजील भी कुछ महीनों में जुझारू वाम नेता लूला डी सिल्वा को फिर से चुनने जा रहा है।
गरज ये कि संयुक्त राज्य अमरीका-यूएसए-का पिछवाड़ा कहे जाने वाले महाद्वीप ने साम्राज्यवाद के पिछवाड़े पर लात मारकर उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
कि कोलम्बिया सामान्य देश नहीं है। यह मु_ी भर धनपिशाचों-ओलिगार्क-की जकडऩ में जकड़ा यातनागृह है। यह दुनिया की नशे की राजधानी-ड्रग कैपिटल-है, जहाँ बर्बर ड्रग तस्करों की तूती बोलती है। कभी ‘दुनिया का सबसे बड़ा अपराधी’ कहा जाने वाला पाब्लो एस्कोबार, कोकीन का अब तक का सबसे चालबाज सौदागर यहीं का था। आज भी सबसे ज्यादा कोकीन का निर्यात यहीं से होता है। इस ड्रग माफिया का सरकार के हर तंत्र पर कब्जा है।
कि इनके विरोध में जो भी बोलता है उनकी ह्त्या करवा देना आम बात है। पिछले समय में राष्ट्रपति पद के जिन जिन उम्मीदवारों ने इस ओलिगार्की के खिलाफ आवाज उठाई वे दिनदहाड़े मार डाले गए। इनमें जॉन एलीसर गैटन, जैमे पार्दो लील, बरनार्डो जरामीलो, कार्लोस पिजारो, लुइस कार्लोस गलन शामिल हैं।
कि यहां जब जब वामपंथ ने एक राजनीतिक पार्टी के रूप में खुद को संगठित करने की कोशिश की, उनका कत्लेआम जैसा कर दिया गया। पेट्रियोटिक यूनियन इसकी मिसाल है। पिछली 8 वर्षों में इस पार्टी के 1163 नेता मार डाले गए। इनमें राष्ट्रपति पद के 2 उम्मीदवार, 13 सांसद और 11 महापौर शामिल हैं। इस लिहाज से यह जीत निस्संदेह और असाधारण हो जाती है।
कि इन सब कठिन और जानलेवा हालात में कोलम्बियन कम्युनिस्ट पार्टी, कोलम्बिया ह्यूमाना सहित सारी वामपंथी पार्टियों ने एक जन गठबंधन-मॉस कोलिशन-बनाकर चुनाव लड़ा; पूर्व गुरिल्ला फाइटर पेट्रो को राष्ट्रपति तथा जुझारू आंदोलनकारी सुश्री फ्रांसिया मार्केज को उपराष्ट्रपति के लिए जिताया।
कि यह लंबे समय से कोलम्बिया अशांत है। आंतरिक कलह और टकरावों के कोई ढाई लाख लोग मारे जा चुके हैं, 25 हजार गायब किए हैं, 60 लाख अपने इलाकों से विस्थापित कर शरणार्थी बने हुए हैं। यह चुनाव परिणाम इन नागरिकों के लिए शांति की बहाली की उम्मीद लेकर आया है।
कि यह वह कोलम्बिया है ;
जहाँ 34 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है, 1 करोड़ 27 लाख कोलम्बियन्स मात्र 2 डॉलर प्रति दिन की आमदनी पर गुजारा करने के लिए अभिशप्त हैं।
जहाँ ऊपर के 10 प्रतिशत आबादी की प्रतिव्यक्ति आय नीचे के 10 प्रतिशत की तुलना में 46 गुना ज्यादा है।
जहां आबादी का 17 फीसद से अधिक बेरोजगार है और बेरोजगारी की दर पूरी लैटिन अमरीका में सबसे ज्यादा है।
जहां करीब 30 प्रतिशत नागरिकों के पास समुचित आवास नहीं है-इनके अलावा 662146 परिवार यानी आबादी का कोई 5 प्रतिशत बेघर हैं।
जहाँ गरीब ग्रामीण घरों में 81 प्रतिशत ऐसे हैं जिनके पास नल के पानी की सुविधा नहीं है।
जहाँ करीब 68 प्रतिशत आबादी भीड़-भड़क्के वाले घरों में रहने को मजबूर है।
जहाँ शहरों की आधी और गाँवों की 80 प्रतिशत श्रम शक्ति असंगठित क्षेत्र-इसे अनौपचारिक अर्थव्यवस्था कहा जाता है-में काम करते हैं। इनमें बहुतायत खेत मजदूर, टैक्सी ड्राइवर्स, ठेला-खोमचा लगाने वाले श्रमिक हैं जिन्हें पेंशन या किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं है; 2014 में कुल श्रम शक्ति का दो तिहाई असंगठित क्षेत्र में था, अब यह और बढ़ गया है।
कि यह जीत सिर्फ असंतोष और खीज का नतीजा नहीं है, यह उन शानदार संघर्षों का फल है जो हाल के समय में कोलम्बिया के मेहनतकशों ने किए। अप्रैल, मई और जून 2021 में हर महीने राष्ट्रीय स्तर की हड़तालें हुईं, इन हड़तालों के नतीजों में सरकार को अनेक राहतें देने, सब्सिडी बढ़ाने की घोषणायें करनी पड़ी। यह संघर्ष उस दौर में हुए जब आंदोलनकारियों पर पुलिस ने बेइंतहा जुल्म ढाये, हत्याओं की पूरी श्रृंखला सी चली, बर्खास्तगियों और दमन की सारी सीमाएं लांघ दी गयीं।
वह भी उस समय
जब समझदार और ईमानदार बुद्धिजीवी कहते हैं कि यह समय दुनिया में दक्षिणपंथ के उभार का समय है। फ्रैंकली कहें तो हमे यह अधूरी बात लगती है ।
क्यों ?
इसलिए कि हम जिस विचार को मानते हैं उसका कहना है कि ‘अब तक जितने भी दर्शन हुए हैं उन्होंने बताया है कि ये दुनिया क्या है, मगर सवाल यह है कि इसे बदला कैसे जा सकता है।’
उसी दर्शन ने यह भी कहा है कि ‘परिस्थितियां अपनी इच्छा के मुताबिक नहीं होती हैं । वे ‘होती’ हैं-बदलाव के लिए काम करने वालों को उन्हीं परिस्थितियों में परिवर्तन करने के रास्ते खोजने होते हैं। हमें इसलिए खुश होना चाहिए कि कोलम्बिया ने उस रास्ते की तलाश की है ।