सामान्य ज्ञान
विश्व में तम्बाकू के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष इस्तेमाल के कारण प्रति वर्ष करीब 60 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) के अनुसार यदि इस आदत पर अंकुश के लिए तत्काल प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो वर्ष 2030 तक यह संख्या 80 लाख तक पहुंच सकती है। भारत में प्रत्येक 10 में से एक वयस्क व्यक्ति की मृत्यु तम्बाकू से जुड़ी बीमारियों के कारण होती है। तम्बाकू प्रति वर्ष 15 लाख कैंसर, 42 लाख हृदय रोगों और 37 लाख फेफड़ों की बीमारियों का कारण बनता है। मुंह के कैंसर के सर्वाधिक रोगी अपने ही देश में पाये जाते हैं।
अधिकृत आंकड़ों के अनुसार बीड़ी, सिगरेट, गुटका, खाने के तंबाकू और सूंघने के तम्बाकू आदि के रूप में देश में 4300 लाख (टन) तम्बाकू खप जाता है। 14 करोड़ पुरुष और चार करोड़ महिलाएं तम्बाकू सेवन की आदी हैं। 15 से 49 वर्ष के आयु-वर्ग में 57 प्रतिशत पुरुष और 10 प्रतिशत महिलाएं, किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन करती हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय का अनुमान है कि तम्बाकू वर्ष 2020 तक भारत में प्रति वर्ष 13 प्रतिशत व्यक्तियों की मृत्यु का जिम्मेदार बन जाएगा। तम्बाकू सेवन की बढ़ती हुई प्रवृत्ति में यदि कोई हस्तक्षेप न किया गया तो तीन करोड़ 84 लाख बीड़ी और सिगरेट पीने वाले व्यक्तियों में क्रमश: तीन करोड़ 84 लाख और एक करोड़ 32 लाख व्यक्ति समय से पहले काल ग्रास बन जाएंगे। दूसरे दर्जे का धूम्रपान भी एक बड़ी समस्या है। कुछ तम्बाकू उत्पादों को सुरक्षित माना जाता है जो कि गलत विश्वास है, क्योंकि तम्बाकू का सेवन हररूप में नुकसानदेह है।
गुटका, पैकेट जैसे मुद्दों को लेकर 2011 और 2012 में खाद्य सुरक्षा खाद्य मानक कानून में कई संशोधन किये गये। इन संशोधनों के परिणामस्वरूप 24 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारें तम्बाकू वाले गुटके और पान मसाले पर प्रतिबंध लगा चुकी हैं। लेकिन उन प्रतिबंधों के अमल पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। उच्चतम न्यायालय ने जून 2013 में ही संबद्ध राज्यों से प्रतिबंधों पर अमल को लेकर रिपोर्ट मांगी है।