सामान्य ज्ञान
जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड यानी जीएम फूड। जेनेटिकली मॉडिफाइड तकनीक के इस्तेमाल से न केवल फसलों के आकार, पोषक तत्वों में बढ़ोतरी और उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है बल्कि एक ही फसल से उसकी कई प्रजातियों को भी विकसित किया जा सकता है। अब इसी जेनेटिक इंजीनियरिंग का इस्तेमाल अनाज, फल, सब्जियां और ड्रिंक्स में जैसे गेहूं, दाल, चावल, चना, सेब, केला, पपीता, बैंगन, खीरा, आलू, बंदगोभी, टमाटर, कोल्डड्रिंक्स इत्यादि में हो रहा है। इन उत्पादों में न केवल जीन का बल्कि केमिकल्स का भी जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है।
अब भारत सरकार भी इस तकनीक को मंजूरी देने का मन बना रही है लेकिन जानकारों की राय है कि यह जहर परोसने जैसा है।
परजीवी फसलों को तैयार करने में सबसे अधिक बेसिलस थूरिजियेसिंस यानी बीटी नामक बैक्टीरिया के जीन का प्रयोग किया जाता है। यह एक टॉक्सिन प्रोटीन कण होते हैं जिन्हें फसलों में डालकर कीटरोधी बनाया जाता है ताकि कीड़े उन्हें चट न कर सकें। बीटी के इस्तेमाल से जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड बनाने वाले देशों में सबसे आगे अमरीका, दक्षिण अफ्रीका और चीन हैं। हालांकि अमरीका में स्वास्थ्य संबंधी मानदंड काफी कड़े हैं। अब भारत में भी कई जीएम फसलों पर काम चल रहा है। भारत में कपास और बैंगन पहली फसल है जिसे जेनेटिकली मॉडिफाइड तरीके से तैयार किया गया और इसमें बेसिलस थूरिजियेसिंस बीटी जीन भी डाला गया। देश के कई राज्यों में 40 से ज्यादा खाद्य फसलों को भी जेनेटिकली मॉडिफाइड परीक्षण के लिए मंजूरी दी गई है जिसमें अनाज, फल, सब्जियां यहां तक कि चायपत्तियां और मसाले भी शामिल हैं। इन फसलों में बीटी जीन के साथ-साथ पेस्टीसाइड और हर्वीसाइड केमिकल्स का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।