सामान्य ज्ञान

महाबोधि मंदिर
09-Jul-2022 10:41 AM
महाबोधि मंदिर

बिहार राज्य के बोधगया में स्थित है महाबोधि मंदिर।  इस मंदिर की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तूप के समान है। इस मंदिर में बुद्ध की एक बहुत बड़ी मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति पद्मासन की मुद्रा में है। यहां यह अनुश्रुति प्रचलित है कि यह मूर्ति  उसी जगह स्थापित है जहां बुद्ध को ज्ञान निर्वाण (ज्ञान) प्राप्त हुआ था। मंदिर के चारों ओर पत्थर की नक्काशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही बोधगया में प्राप्त सबसे पुराना अवशेष है। इस मंदिर परिसर के दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राकृतिक दृश्यों से समृद्ध एक पार्क है जहां बौद्ध भिक्षु ध्यान साधना करते हैं। आम लोग इस पार्क में मंदिर प्रशासन की अनुमति लेकर ही प्रवेश कर सकते हैं।

इस मंदिर परिसर में उन सात स्थानों को भी चिन्हित किया गया है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सात सप्ताह व्यतीत किया था। जातक कथाओं में उल्लेखित बोधि वृक्ष भी यहां है। यह एक विशाल पीपल का वृक्ष है जो मुख्य मंदिर के पीछे स्थित है। कहा जाता बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। वर्तमान में जो बोधि वृक्ष वह उस बोधि वृक्ष की पांचवीं पीढ़ी है।

मुख्य मंदिर के पीछे बुद्ध की लाल बलुए पत्थर की 7 फीट ऊंची एक मूर्ति है। यह मूर्ति विजरासन मुद्रा में है। इस मूर्ति के चारों ओर विभिन्न रंगों के पताके लगे हुए हैं जो इस मूर्ति को एक विशिष्ट आकर्षण प्रदान करते हैं। कहा जाता है कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इसी स्थान पर सम्राट अशोक ने हीरों से बना राजसिंहासन लगवाया था और इसे पृथ्वी का नाभि केंद्र कहा था। इस मूर्ति  की आगे भूरे बलुए पत्थर पर बुद्ध के विशाल पदचिन्ह बने हुए हैं। बुद्ध के इन पदचिन्हों को धर्मचक्र प्रर्वतन का प्रतीक माना जाता है।

 महाबोधि मंदिर के उत्तर पश्चिम भाग में एक छतविहीन भग्नावशेष है जो रत्नाघारा के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद चौथा सप्ताह व्यतीत किया था। दंतकथाओं के अनुसार बुद्ध यहां गहन ध्यान में लीन थे कि उनके शरीर से प्रकाश की एक किरण निकली। प्रकाश की इन्हीं रंगों का उपयोग विभिन्न देशों द्वारा यहां लगे अपने पताके में किया है।

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