विचार / लेख

मिलावटखोरों को फांसी क्यों नहीं?
23-Oct-2022 1:29 PM
मिलावटखोरों को फांसी क्यों नहीं?

बेबाक विचार : डॉ. वेदप्रताप वैदिक

आज की बड़ी खबरों में कई खबरें हैं। जैसे नफरती भाषणों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय की फटकार, आतंकवाद के खिलाफ प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की गुहार और इमरान खान के चुनाव लडऩे पर पांचवर्षीय प्रतिबंध आदि लेकिन मेरा ध्यान चार खबरों ने सबसे ज्यादा खींचा। वे हैं- नकली प्लेटलेट, नकली जीरा, नकली घी और नकली तेल के बारे में। दिवाली के मौके पर गरीब से गरीब आदमी भी खाने-पीने की चीजें दिल खोलकर खरीदना चाहता है लेकिन जो चीजें बाजार में उसे मिलती हैं, उनमें से कई नकली तो होती ही हैं, वे उसके लिए प्राणलेवा भी सिद्ध हो जाती है।

प्रयागराज के एक निजी अस्पताल में भर्ती मरीज की मौत इसलिए हो गई कि डाक्टरों ने उसकी नसों में प्लाज्मा चढ़ाने की बजाय मौसम्बी का रस चढ़ा दिया। इस नकली प्लाज्मा की कीमत 3 हजार से 5 हजार रु. है। नकली प्लाज्मा ने मरीज की जान ले ली। प्रयागराज की पुलिस ने दस लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। लगभग इसी तरह का काम गोरखपुर में नकली तेल बेचने का, दिल्ली में नकली जीरा खपाने का और कुछ शहरों में नकली घी और दूध भी पकड़ा गया है।
दिवाली के मौके पर पड़े इन छापों से पता चला है कि ये नकली चीजें, असली चीजों के मुकाबले ज्यादा बिकती हैं, क्योंकि उनकी कीमत लगभग आधी होती है और दुकानदारों को मुनाफा भी ज्यादा मिलता है। जो लोग इन चीजों को खरीदते हैं, उन्हें पता ही नहीं चलता है कि वे असली हैं या नकली हैं, क्योंकि उनके डिब्बे इतने चिकने-चुपड़े होते हैं कि उनके सामने असली चीजों के डिब्बे या पेकेट पानी भरते नजर आते हैं।

कई नकली चीजें न कोई फायदा करती हैं न नुकसान करती हैं, लेकिन कुछ नकली चीजें उन्हें सेवन करनेवालों की जान ले लेती हैं और कई चीजें इतने धीरे-धीरे जान का खतरा बन जाती हैं कि उसके उपभोक्ताओं को उसका पता ही नहीं चलता। यह मामूली अपराध नहीं है। यह हत्या से भी भयंकर जुर्म है। यह सामूहिक हत्या है। यह कुकर्म सिर्फ खाने-पीने की चीजों में ही नहीं होता, यह अक्सर दवाइयों में भी बड़ी चालाकी से किया जाता है। इस तरह के मिलावटखोरों को पकडऩे के लिए सरकार ने अलग विभाग बना रखा है और ऐसे अपराधियों के विरुद्ध कानून के कई प्रावधान भी हैं।

2006 के ‘खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम’ के अनुसार ऐसे अपराधियों पर 10 लाख रु. तक जुर्माना और छह माह से लेकर उम्र कैद तक की सजा भी हो सकती है। लेकिन मैं पूछता हूं कि आज तक कितने लोगों को यह कठोरतम दंड मिला है? हमारी सरकारों और अदालतों को अपूर्व सख्ती से पेश आना चाहिए। मेरी राय में यह कठोरतम दंड भी बहुत नरम है। इन सामूहिक हत्या के अपराधियों को सजा-ए-मौत होनी चाहिए। और वह मौत भी ऐसी कि हर भावी अपराधी के वह रोंगटे खड़े कर दे।

ऐसे अपराधियों को तत्काल फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए और फांसी का जीवंत प्रसारण सारे टीवी चैनलों पर अनिवार्य रूप से दिखाया जाना चाहिए। नकली खाद्य पदार्थों के कारखानों के कर्मचारियों और उस माल को बेचनेवाले व्यापारियों को भी कम से कम पांच साल की सजा होनी चाहिए। यह सब लोग हत्या के उस जघन्य अपराध में भागीदार रहे होते हैं। यदि देश में दो-चार मिलावटखोरों को भी फांसी हो जाए तो करोड़ों लोगों की जीवन-रक्षा अपने आप हो जाएगी। (नया इंडिया की अनुमति से)

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