विचार / लेख

भूगोल, इतिहास को समझने की कुंजी है..
02-Nov-2022 4:19 PM
भूगोल, इतिहास को  समझने की कुंजी है..

-  अमिता नीरव
90 की शुरुआत में जब देश में उदारीकरण का दौर शुरू हुआ था, कुछ ऐसी चीजें हमारी जिंदगियों में, हमारी जीवनशैली में शामिल हुईं थी, जो पहले नहीं थी। दरअसल उनकी जरूरत भी नहीं थी। ऐसी बहुत सारी चीजें थीं, उन्हीं में एक था खाने से पहले सूप पीना।

जी हाँ, हमारे यहाँ पार्टियों में, होटलों के खाने में खाना खाने से पहले सूप एकाएक दाखिल हो गया था। जाहिर है पश्चिम में सूप उनके खाने का अहम हिस्सा है। उसके बाद हमने भी उसे बिना कारण जाने अपने खाने में शामिल कर लिया।
हमारे यहाँ सूप का चलन कभी था ही नहीं। पता नहीं आपको ऐसा महसूस हुआ हो या नहीं, यहाँ तो सूप पीने के बाद खाने की इच्छा मर जाती है। पहाड़ों पर जब भी गए तब पाया कि वहाँ भूख कम हो जाती है। तब समझा कि दरअसल ठंडी जगहों पर पाचनतंत्र ठीक तरह से काम नहीं करता है, इसलिए भूख कम लगती है। तो जाहिर है एपेटाइजर की जरूरत होगी ही।

लॉकडाउन के दौरान वेब सीरीज देखी जा रही थीं। उसी दौरान स्कैंडेनेविया की एक हिस्टोरिकल सीरीज वाइकिंग्स देखना शुरू की थी। मेरा तो दो-पाँच एपिसोड्स के बाद ही मन उचट गया था, इसलिए मेरा देखना तो छूट गया था। लेकिन क्रड्डद्भद्गह्यद्ध देखा करते थे तो उसके बारे में पता चलता रहता था।

वह स्कैंडेनेविया के एक योद्धा रैगनर लॉथब्रुक के जीवन की कहानी थी। जिसमें गर्मियों में रैगनर अपने साथियों के साथ अभियान पर निकलता था। यह अभियान दूसरे देशों में जाकर लूटपाट करने का हुआ करता था। एक दिन ऐसे ही राजेश बोले, ‘ये एक लुटेरे की दास्तान है, जिसे ग्लोरिफाय किया जा रहा है।’ लेकिन बाद में स्पष्ट हुआ कि उसकी और उसकी पत्नी लगार्था का सपना खेती लायक जमीन पाने और फिर खेती करने का था। मतलब उनके सारे संघर्षों, लड़ाइयों का लक्ष्य खेती करना था। क्योंकि उत्तरी ध्रुव पर खेती करने लायक मौसम नहीं था।

हमने यह जाना है कि ठंडी जगह रहने वालों की त्वचा का रंग सफेद होता है और गर्म जगह रहने वालों की त्वचा का रंग काला होता है। प्रजातिगत वर्गीकरण में आर्यों की शारीरिक बनावट, द्रविड़ों की शारीरिक बनावट से बिल्कुल अलग होती है और यह जलवायु और भूगोल से प्रभावित होती है।

थोड़ी पुरानी बात है। कल्चरल एक्सचेंज के तहत फफांस, जर्मनी और कोलंबिया से लैंग्वेज सिखाने के लिए तीन लडक़े आए थे। हमारा शहर खान-पान के लिए खासा मशहूर है और यहाँ हर तरह के स्वाद के शौकीनों का काम आसानी से चल जाता है। ऐसे में राजेश ने उनसे पूछा कि, यहाँ कैसा लग रहा है!

तो फ्रेंच और जर्मन लडक़े ने शिकायत की कि ‘खाने की बहुत दिक्कत आ रही है। यहाँ खाने में बहुत मिर्च होती है।’

यह जानकर हमेशा ही आश्चर्य हुआ है कि यूरोप में अधिकतर देशों में मसालों का उपयोग नहीं किया जाता है। हमने यह जाना है कि सर्दी के मौसम में हमें स्पाइसी और गरिष्ठ खाने की तलब लगती है, लेकिन पहाड़ों में स्थिति एकदम उलट होती है। हम जब पहली बार पहाड़ पर गए तो एकदम सादा खाना देखकर चौंक गए। दो-तीन बार जाने पर पता चला कि पहाड़ों पर भूख कम लगती है।

धीरे-धीरे समझ आया कि चूँकि पहाड़ों की जलवायु ठंडी होती है, और वहाँ खाना जल्दी नहीं पचता है, इसलिए वहाँ भूख कम लगती है शायद इसीलिए वहाँ चटपटा खाने की क्रेविंग नहीं होती है। बाद में गौर किया तो पाया कि गर्म जगहों पर बहुत चटपटा खाया जाता है, राजस्थान इसका उदाहरण है। इसी तरह दक्षिण भारत तो अपने गरम मसालों के लिए मशहूर है ही।

कुछ साल पहले हम गंगटोक गए थे। हम जिस गेस्ट हाउस में रुके थे उसे कलकत्ता की माँ-बेटी चलाती थीं। उन्होंने पूछा, ‘आप भेज हैं?’

‘भेज...!’ हम दोनों ने उनकी शक्ल देखी, फिर मेरे भेजे में आया कि बंगाली हैं तो वेज को भेज कहती होगीं।
‘जी हम वेजिटेरियन हैं।’
‘मछली तो चलती होगी?’

मन किया जोर से हँस दें, ‘वेजिटेरियन है तो मछली कैसे चलेगी भई?’

वे बोलीं, ‘हम भी भेज हैं, लेकिन मछली चलती है।’

हम चकित हुए... फिर धीरे-धीरे जाना कि पूर्व में मछली को वेज ही माना जाता है। बिहार से आईं हमारी एक साथी ने बताया कि वहाँ मछली को ‘जलफल’ कहा जाता है।

कहने का मतलब यह है कि भूगोल न सिर्फ हमारी शारीरिक संरचना को बल्कि हमारी सांस्कृतिक विशिष्टता और आर्थिक संरचना का भी निर्धारण करता है। यहाँ तक तो शायद ही किसी को संदेह हो, लेकिन इन कुछ दिनों में मुझे यह लगने लगा है कि दरअसल यही भूगोल हमारे इतिहास को भी प्रभावित करता है।

दुनिया के जिन हिस्सों में खेती के लायक जमीन, पानी औऱ जलवायु नहीं होती है, इतिहास में उन हिस्सों में संघर्ष ज्यादा हुए हैं। उन समाजों में योद्धा के लिए अतिरिक्त सम्मान होता है औऱ युद्ध में विजय सबसे बड़ा सांस्कृतिक मूल्य होता है। उन्हीं समाजों में दुनिया को जीतने की महत्वाकांक्षा जन्मती है और फलती-फूलती है।

इतिहास की प्राचीन सभ्यताओं के भूगोल को देखेंगे तो पता चलेगा कि सारी प्राचीन सभ्यताएँ जिन भूभागों में विकसित हुईं वहाँ खेती के लायक जमीन थी, पानी की प्रचुरता थी और खेती के लिए अनुकूल जलवायु भी थी।
संघर्षरत भू-भागों की संस्कृति युद्धों के इर्दगिर्द ही विकसित होती रही। जहाँ जीने की सहूलियतें अपेक्षाकृत ज्यादा रहीं उनकी संस्कृतियाँ अलग-अलग दिशा में समृद्ध रहीं।

यदि हम ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की बात कर पाते हैं तो इसलिए नहीं कि हम शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को समझते हैं, बल्कि इसलिए कि प्रकृति ने हमें जीने के लिए जरूरी साधन खुले हाथों से दिए हैं। हमने जिंदा रहने के लिए दूसरों की तुलना में कम संघर्ष किए हैं।

‘भूगोल, इतिहास को समझने की कुंजी है।’

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