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उड़ जायेगा हंसा अकेला : रमेश नैयर के निधन पर
03-Nov-2022 4:08 PM
उड़ जायेगा हंसा अकेला : रमेश नैयर के निधन पर

-रमेश अनुपम
हंसा अकेला ही दूर किसी अनंत में उड़ गया है, केवल उनकी निर्मल और मोहक छवि तथा उनकी कलम से निकले हजारों लाखों शब्द आज हमारे बीच उपस्थित हैं।

रमेश नैयर हिंदी और अंग्रेजी पत्रकारिता में एक ऐसे हंसा की तरह थे जो अपने स्वविवेक से नीर और क्षीर में अंतर करना जानते थे और हमेशा क्षीर का चुनाव करना ही उन्हें पसंद था। उनकी भाषा असहज नहीं सहज थी, पर विचारों की लौ में हमेशा जगर-मगर। कहीं कोई भाषा में पैबंद नहीं, लाख ढूंढने पर भी भाषा में कहीं कोई लिथड़ापन नहीं, जो है अगर-मगर में नहीं, सीधे-सीधे है।

‘देशबंधु’ से अपनी हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले रमेश नैयर बाद में  ‘नवभारत’, ‘क्रॉनिकल’, ‘ट्रिब्यून’, ‘संडे ऑब्जर्वर’, ‘दैनिक भास्कर’ में हिंदी और अंग्रेजी पत्रकारिता को एक साथ साधते रहे। छत्तीसगढ़ में ही नहीं चंडीगढ़ और देश की राजधानी दिल्ली में भी अपनी हिंदी पत्रकारिता का परचम शान से लहराते रहे। निराभिमान इस पत्रकार की लेखनी पर ऐसा कौन है, जो कुर्बान न हो जाए।

‘ट्रिब्यून’ और चंडीगढ़ उनकी आत्मा में बसे हुए थे। ‘ट्रिब्यून’ में प्रेम भाटिया का सत्संग और चंडीगढ़ की पंजाबी तहजीब रमेश नैयर को भा गए थे। अर्जुन सिंह उन दिनों चंडीगढ़ में ही राज्यपाल थे और सुदीप बनर्जी उनके सचिव। रमेश नैयर जैसे विचारवान पत्रकार की जरूरत उन्हें भी कम नहीं थी और ऊपर से वे उनकी प्रतिभा के भी कम कायल नहीं थे, सो भाभी को भी प्रतिनियुक्ति पर मध्यप्रदेश से सीधे चंडीगढ़ बुलवा लिया गया। राजीव गांधी और संत लोंगोवाल के ऐतिहासिक समझौते में रमेश नैयर और प्रेम भाटिया के अथक प्रयासों को भी जरूर याद किया जाना चाहिए।

‘दिनमान’ से लेकर देश की अनेक प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में रमेश नैयर ने खूब लिखा है। रघुवीर सहाय जो उन दिनों ‘दिनमान’ के संपादक थे रमेश नैयर से लिखवा ही लेते थे। सन 1966 में बस्तर गोली कांड की रिपोर्ट के लिए उन्होंने रमेश नैयर को बस्तर भेजा था। वे जैसे-तैसे किसी जीप में जगदलपुर पहुंचे थे। इस तरह प्रवीर चंद्र भंजदेव गोली कांड की रिपोर्ट ‘दिनमान’ में प्रकाशित हुई जिसे देश भर में खूब सराहना भी मिली। रमेश नैयर एक बेहद सतर्क और जागरूक पत्रकार थे।

मेरी धारावाहिक सीरीज ‘छत्तीसगढ़ एक खोज’ के वे नियमित पाठक थे। सांध्य दैनिक ‘छत्तीसगढ़’  में वे पढक़र न केवल फोन करते थे वरन मेरा हौसला आफजाई भी किया करते थे।

उनके और राजेंद्र यादव के साथ बार नवापारा की यात्रा मुझे आज भी याद है। रात में राजेंद्र यादव और रमेश नैयर के साथ एक खुली जीप में बैठकर की गई जंगल की यात्रा भी। राजेंद्र यादव से जब भी फोन पर बातें होती रमेश नैयर के बारे में जरूर पूछ लेते थे।

रमेश नैयर अपनी पीढ़ी के अकेले ऐसे खबरनवीस थे जिनका हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और गुरुमुखी भाषा में असाधारण अधिकार था। उर्दू  जैसे उनकी रूह में बसी हुई थी, पंजाबी उनके दिल में और हिंदी और अंग्रेजी जुबान उनके होठों और कलम में थिरकती रहती थी। उर्दू अदब उन्हें पसंद था, उर्दू की कई नज्म और शेर उनकी जुबान पर जुंबिश लेती हुई दिखाई देती थी।
 
रमेश नैयर का हिंदी और अंग्रेजी में अध्ययन भी खूब था। किताबों से उनकी आशनाई थी। पत्रकारिता से लेकर साहित्य तक की किताबें वे खूब पढ़ते थे।

छत्तीसगढ़ में नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य हिंदी ग्रंथ अकादमी के वे संस्थापक संचालक थे। जनवरी सन 2006 से अक्टूबर 2016 तक वे इस पद को सुशोभित करते रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने हिंदी ग्रंथ अकादमी में चुन-चुनकर किताबें प्रकाशित की है।

रमेश नैयर के पत्रकार स्वरूप से हम सब भली-भांति परिचित है पर उनकी शख्सियत का एक और पहलू है जिससे हम कुछ गाफिल हैं।

छत्तीसगढ़ के कथाकारों की कहानियों को लेकर उन्होंने दो जिल्दों में ‘कथा यात्रा’ और ‘उत्तर कथा’ नामक ग्रंथों का संपादन किया है, जो प्रभात प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित है। छत्तीसगढ़ के प्रारंभिक कथाकारों से लेकर अब तक के कथाकारों की चुनी हुई कहानियों का सुंदर संपादन रमेश नैयर ने किया है।

वी.एस.नायपाल के एक अंग्रेजी किताब का हिंदी तर्जुमा उन्होंने प्रभात प्रकाशन दिल्ली के लिए किया था। इसी तरह अरेबियन नाईटस का भी उन्होंने हिंदी में अनुवाद किया है।

रमेश नैयर ने अनेक विदेशी कविताओं का उन्होंने हिंदी तर्जुमा किया है जो पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित है। मैं उन्हें उन कविताओं को जब-तब ढूंढकर एक संग्रह के रूप में प्रकाशित करवाने की निरर्थक जिद में उसी तरह लगा रहता था जिस तरह पाकिस्तान की उनकी स्मृतियों को लेकर उनसे एक मुकम्मल किताब लिखवाने की अपनी पुरानी जिद में।

वे मुझसे वादा करते थे कि अगले पंद्रह दिनों में वे मुझे इस किताब का एक चैप्टर लिख कर जरूर दिखाएंगे। कई बार भाभी भी इस बात की गवाह बनी पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था।

रमेश नैयर अविभाजित भारत के गुजरात जिले के अपने पैतृक गांव कुंजह को कभी भूला नहीं पाए।

इसी तरह जिस मां ने उन्हें दूध पिलाया, पाला-पोसा उस मुस्लिम मां जैनब को भी, जो बचपन में उन्हें बुल्ला कहकर पुकारा करती थी। बुल्ला याने पाकिस्तान के संत और फकीर कवि बुल्ले शाह।

बुल्ले शाह का प्रतिरूप यह हंसा अब अकेले ही अपने डैने पसार कर सुदूर अंतरिक्ष की ओर अपनी उड़ान भर चुका है। हम सबको शोक विहल छोडक़र।

क्या कोई हंसा इस तरह से सबको छोडक़र अचानक अकेले ही उड़ जाता है।

पंडित कुमार गंधर्व के इस गीत को आज बार-बार सुनने का मन क्यों हो रहा है :

उड़ जायेगा हंसा अकेला
जीवन जग दर्शन का मेला

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