विचार / लेख

सोनपुर का हरिहर क्षेत्र मेला
08-Nov-2022 4:36 PM
सोनपुर का हरिहर क्षेत्र मेला

-ध्रुव गुप्त
आज कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होने वाले बिहार के सोनपुर का हरिहर क्षेत्र मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु और ग्रामीण मेला माना जाता है। मेले में बिहार के कोने-कोने से आए लाखों लोग पवित्र गंडक और गंगा के संगम में स्नान कर हरिहर नाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। मेले की पृष्ठभूमि में पौराणिक कथा यह है कि प्राचीन काल में यहां गज और ग्राह के बीच बड़ी लंबी लड़ाई चली थी। संकट में फंसे हाथी की फरियाद पर विष्णु अर्थात हरि और शिव अर्थात हर ने बीच-बचाव कर इस लड़ाई का अंत कराया था। कथा प्रतीकात्मक है। प्राचीन भारत वैष्णवों और शैव भक्तों के बीच सदियों चलने वाली लड़ाई का साक्षी रहा था। अपने-अपने आराध्यों की श्रेष्ठता स्थापित करने के इस संघर्ष ने हजारों लोगों की बलि ली थी। इस विवाद की समाप्ति के लिए गुप्त वंश के शासन काल में कार्तिक पूर्णिमा को वैष्णव और शैव आचार्यों का एक विराट सम्मेलन सोनपुर के गंडक तट पर आयोजित किया गया। यह सम्मेलन दोनों संप्रदायों के बीच समन्वय की विराट कोशिश थी जिसमें विष्णु और शिव दोनों को ईश्वर के ही दो रूप मानकर विवाद का सदा के लिए अंत कर दिया गया। उसी दिन की स्मृति में यहां देश में पहली बार विष्णु और शिव की संयुक्त मूर्तियों के साथ हरिहर नाथ मंदिर की स्थापना हुई थी। तब से हिंदुओं द्वारा हर साल कार्तिक पूर्णिमा को नदियों के संगम में स्नान कर हरिहर नाथ मंदिर में श्रद्धा निवेदित करने की परंपरा चली आ रही है।

लगभग महीने भर चलने वाले इस मेले में बिहार की ग्रामीण संस्कृति सांस लेती है। शहरों की मॉल और ऑनलाइन संस्कृति में पले-बढ़े लोगों के लिए ऐसे मेलों की प्रासंगिकता अब नहीं रही। मगर एक मामले में इनकी उपादेयता हमेशा बनी रहेगी। कुछ देर के लिए आप मन से आभिजात्य की धूल झाडक़र अपनी जड़ों की ओर लौटना चाहते हैं तो ऐसे किसी मेले के चक्कर लगा आईए! किसी फुटपाथी दुकान में खड़े-खड़े मुढ़ी-पकौड़ी और गरमागरम जलेबियां खाईए! बीवी के लिए चोटी, रिबन, चूडिय़ां, टिकुली-सिंदूर और बच्चों के लिए हवा मिठाई खरीद लीजिए ! किसी थिएटर में नौटंकी और नाच-गाने देखिए! दिल के मरीज नहीं हैं तो आसमानी झूले में थोड़ा-सा ऊपर-नीचे हो लीजिए! आस्तिक हैं तो मंदिर में प्रणाम कर प्रसाद ग्रहण कीजिए! यह बिल्कुल मत सोचिए कि आपको ऐसा करते देख कोई आप भद्र पुरुष या महिला को गंवार कह देगा। हम सब जन्म से गंवार ही होते हैं। भद्रता हमारा ओढ़ा हुआ चरित्र है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए इस आरोपित भद्रता से गाहे-बगाहे मुक्ति की दरकार होती है। ये मेले जीवन की समस्याओं और जटिलताओं से मुक्ति के आदिम और कारगर तरीके हैं। अपनी मिट्टी का असर। अपनी सांस्कृतिक जड़ों में प्रवेश का सुख। 

बिहार की संस्कृति और लोकजीवन को देखना और महसूस करना हो तो आईए कभी सोनपुर मेले में !

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