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समाधान यात्रा : किसकी समस्या का समाधान कर पाए नीतीश कुमार
16-Feb-2023 4:13 PM
समाधान यात्रा : किसकी समस्या का समाधान कर पाए नीतीश कुमार

- चंदन कुमार जजवाड़े
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 4 जनवरी से राज्य की ‘समाधान यात्रा’ पर निकले थे। यह यात्रा 16 फरवरी को समाप्त हो रही है। इस यात्रा का मकसद बिहार के सभी 38 जि़लों की यात्रा कर लोगों से बात करना और सरकारी योजनाओं के बारे में उनकी राय जानना था।

नीतीश कुमार ने सबसे पहले साल 2005 में राज्य की यात्रा की थी, जिसके बाद वो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे। इस बार की यात्रा नीतीश कुमार के लिए बिहार में उनकी राजनीतिक ताकत को समझने के लिए काफी अहम है।

नीतीश की इस समाधान यात्रा को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी से भी जोडक़र देखा जा रहा है। उन्हें इस यात्रा के दौरान विरोधियों के हमले भी झेलते पड़े हैं और उन्हें अपनी ही पार्टी में चल रहे विवाद का भी सामना करना पड़ा है।

इन सारे मुद्दों पर हम विस्तार से आगे बात करेंगे, लेकिन पहले दो तस्वीरों का जिक्र करते हैं। पहली तस्वीर मुजफ्फरपुर की है जहां शेरपुर ब्लॉक ऑफि़स में अचानक ही लोगों की भीड़ ने नारा लगाना शुरू कर दिया, ‘हमारा पीएम कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो।’

दरअसल नारे लगाने वाले ये लोग जेडीयू के कार्यकर्ता थे। नीतीश को अपनी यात्रा के दौरान ऐसे कई नारे सुनने को मिले हैं जो शायद उन्हें रास आते हों। लेकिन ‘जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे’ के उलट भी नीतीश को बहुत कुछ सुनना पड़ा है।

पिछले हफ्ते कटिहार में नीतीश की यात्रा के दौरान कुछ लोगों ने ‘मोदी-मोदी’ के नारे भी लगाए। खबरों के मुताबिक, ये लोग नीतीश कुमार से मिलना चाह रहे थे, लेकिन जब नहीं मिल पाए तो गुस्से में उनका विरोध करने लगे।

कुढऩी चुनाव से मिला झटका
मुजफ्फरपुर समाहरणालय में सीएम के कार्यक्रम के दौरान हमारी नजर अचानक एक इमारत पर गई जिस पर लिखा था, ‘कुढऩी विधानसभा उप निर्वाचन- 2022 जिला नियंत्रण कक्ष।’

दरअसल नीतीश की असल समस्या इसी चुनाव से शुरू हुई थी। मुजफ्फरपुर की ही कुढऩी विधानसभा सीट के लिए दिसंबर में हुए उपचुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू की हार हुई थी। यह सीट बीजेपी ने महागठबंधन से छीन ली थी।

माना जा रहा था कि अगस्त 2022 में बिहार में महागठबंधन के सत्ता में आने के बाद आरजेडी और जेडीयू की ताकत के आगे बीजेपी को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

लेकिन पिछले साल नवंबर में भी महागठबंधन को गोपालगंज सीट पर हुए उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा था, जबकि मोकामा सीट पर उसे सफलता मिली थी।

कुढऩी विधानसभा उपचुनाव का यह परिणाम हाल के दिनों में नीतीश कुमार के लिए बड़ा राजनीतिक झटका था। माना जाता है कि बिहार में शराब बंदी की वजह से करीब पांच लाख लोगों पर हुए मुकदमे की इसमें अहम भूमिका है।

इसके अलावा दिसंबर महीने में ही सारण जिले में जहरीली शराब से हुई मौतों और शराबबंदी की सफलता के सवाल भी नीतीश को लगातार घेर रहे थे। इस शराब कांड की गूंज बिहार विधानसभा से लेकर दिल्ली में संसद तक सुनाई दी थी।

वहीं पूरी यात्रा में आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह भी लगातार सीएम नीतीश पर हमले कर रहे थे। रही सही कसर खुद नीतीश की पार्टी जेडीयू के नेता उपेंद्र कुशवाहा की बगावत ने पूरी कर दी।

सुधाकर सिंह लगातार नीतीश कुमार को एक कमजोर सीएम बताकर आपत्तिजनक टिप्पणी कर चुके हैं। जबकि उपेंद्र कुशवाहा सार्वजनिक तौर पर जेडीयू को एक कमजोर होती पार्टी बता रहे हैं।

अमित शाह का बिहार दौरा
ऐसे मौके को विपक्षी बीजेपी भी हाथ से जाने देने वाली नहीं थी। यात्रा की शुरुआत से लेकर उसके अंत तक बीजेपी नीतीश कुमार पर सवाल खड़े करती रही। बीजेपी ने इस यात्रा को सरकारी पैसे की बर्बादी तक बताया।

4 जनवरी को नीतीश कुमार अपनी यात्रा पर निकलते, इससे पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिहार पहुंचकर नीतीश कुमार पर हमले तेज कर दिए। नड्डा ने नीतीश पर बीजेपी को धोखा देने का आरोप भी लगाया।

नीतीश कुमार की राजनीतिक घेरेबंदी करने और 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिहाज से 25 फरवरी को बीजेपी नेता अमित शाह बिहार आ रहे हैं। ख़बरों के मुताबिक वो वाल्मीकिनगर और पटना में सभा करेंगे।

अब नीतीश कुमार भी 25 फरवरी को महागठबंधन के सभी बड़े नेताओं के साथ बीजेपी के खिलाफ बिहार के पूर्णियां में रैली करने वाले हैं। पूर्णिया बिहार के सीमांचल का इलाका है।

यानी आने वाले दिनों में नीतीश कुमार को घरेलू मोर्चे से लेकर विरोधियों तक को जवाब देना है। सीएम नीतीश कुमार के सामने उनकी खुद की कई समस्याएं हैं जिनका समाधान वो इस यात्रा में तलाश रहे हैं।

समाधान यात्रा को कितना समर्थन
मंगलवार सुबह जब हम मुजफ्फरपुर के शेरपुर ब्लॉक पहुंचे तो महिलाओं की लंबी कतार और दीवारों पर ‘जीविका योजना’ के बैनर और पोस्टर बता रहे थे कि नीतीश कुमार के लिए यह योजना काफी अहम है।

जीविका योजना के तहत बिहार के ग्रामीण इलाकों में मूल रूप से सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर महिलाओं के आर्थिक विकास के लिए प्रयास किए जाते हैं।

नीतीश कुमार जीविका दीदियों से मिलने वाले फीडबैक को खासा महत्व देते हैं। बिहार में जीविका योजना से करीब डेढ़ करोड़ महिलाएं जुड़ी हुई हैं।

बिहार के ग्रामीण विकास विभाग के सचिव एस बालामुर्गन का कहना है, ‘देखा गया है कि महिलाओं के जरिए योजना चलाने से यह परिवार तक ज्यादा पहुंचती है। बिहार के ग्रामीण इलाके में इसका बहुत असर हुआ है। महिलाएं न केवल आर्थिक मोर्चे पर आगे बढ़ रही हैं, बल्कि जीविका के जरिए दहेज प्रथा, शिक्षा और बाकी कई अहम मुद्दों पर सफलतापूर्वक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।

यहीं कतार में खड़ी कुछ महिलाएं मुख्यमंत्री के लिए स्वागत गान गा रही थीं। हाथों में बैनर और पोस्टर लिए ये महिलाएं शराब का विरोध और शराबबंदी का समर्थन कर रही थीं।

ऐसी ही एक महिला रागिनी देवी का कहना था, ‘सीएम भैया ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। पहले हम घर में बंद थे। बाहर नहीं निकलते थे। कोई हमारी कद्र भी नहीं करता था। अब हम ग्रुप से जुड़ कर काम करती हैं। हमारा सम्मान बढ़ा है।’

मुजफ्फरपुर की रहने वाली राजकुमारी देवी उर्फ किसान चाची ने भी सीएम की समाधान यात्रा के एक कार्यक्रम की जगह पर अपने प्रोडक्ट का एक स्टॉल लगाया था। किसान चाची को भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार भी दिया है।

उनका कहना है, ‘नीतीश कुमार ने महिलाओ के लिए बहुत कुछ किया है। विकास के लिए महिलाओं का साथ बहुत जरूरी है। महिलाओं को नीतीश जी के राज में बहुत सम्मान मिला है।’

यहां सडक़ों से लेकर छतों पर मौजूद महिलाओं की कतार और बरसते फूल नीतीश कुमार को यात्रा में ‘फील गुड’ करा सकते हैं।

नहीं दिखी पुरुषों की भागीदारी
बिहार में आधी आबादी यानी महिलाओं के एक बड़े तबके की सक्रियता नीतीश की यात्रा में दिखी। लेकिन हमें यह एहसास भी हुआ कि इसमें पुरुषों की भागीदारी काफी कम है।
हमने नीतीश कुमार से सीधा पूछा कि पुरुषों की कम दिलचस्पी के पीछे क्या वजह है तो नीतीश ने इसे स्वीकार नहीं किया और दावा किया कि पुरुष भी उनके कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं और वो सबके लिए काम कर रहे हैं।

मुजफ्फरपुर में एक व्यक्ति ने हमें बताया कि अपनी जमीन का कागज बनवाने के लिए वो पटना तक दौड़ रहे हैं, लेकिन उनका काम नहीं हो रहा है। वो नीतीश कुमार से मिलने आए थे, लेकिन उन्हें नहीं मिलने दिया गया।

वहां मौजूद एक और व्यक्ति रमेश कुमार का कहना था कि वो सीएम के कार्यक्रम के लिए नहीं आए थे, बल्कि वहां से गुजऱ रहे थे तो भीड़ देखकर रूक गए।

यानी नीतीश कुमार की समाधान यात्रा लोगों की निजी समस्या के समाधान के लिए नहीं थी। इसलिए कई जगहों पर यात्रा के दौरान उनका विरोध भी देखा गया।

नीतीश कुमार का विरोध
कई समाचार माध्यमों में एक वीडियो के आधार पर दावा किया गया कि इसी सोमवार को औरंगाबाद में समाधान यात्रा के दौरान नीतीश कुमार के ऊपर कुर्सी का एक हिस्सा फेंका गया था। हालांकि वहां मौजूद भीड़ मुख्यमंत्री के समर्थन में नारे लगाती हुई दिख रही थी।

अधिकारियों का कहना है कि कई लोग प्लास्टिक की कुर्सियों पर खड़े थे, इसी वजह से कुर्सी टूट गई और उसका एक टुकड़ा सीएम की तरफ चला गया। हालांकि इससे नीतीश कुमार को कोई चोट नहीं आई थी।

इससे पहले कटिहार में समाधान यात्रा के दौरान भी लोगों ने नीतीश कुमार पर ऐसा ही आरोप लगाकर नारेबाज़ी की थी। लोगों ने आरोप लागाया था कि नीतीश कुमार उनसे मिलने के लिए गाड़ी से बाहर तक नहीं निकले।

समाधान यात्रा के दौरान ही वैशाली में नीतीश कुमार ने बढ़ती जनसंख्या को लेकर जो बयान दिया था उससे बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। बिहार में विपक्षी दल बीजेपी ने इसे महिलाओं के अपमान तक से जोड़ दिया था।

यानी जिन महिलाओं के समर्थन के सहारे नीतीश की यह यात्रा चल रही है, उन्हीं को नीतीश कुमार से दूर करने की सियासत भी इस समाधान यात्रा के दौरान देखी गई। ऐसा भी नहीं है कि समाधान यात्रा में नीतीश कुमार को हर जगह जीविका दीदियों का समर्थन ही मिला है।

खबरों के मुताबिक पिछले हफ्ते मधेपुरा की यात्रा में जीविका दीदियों ने नीतीश कुमार की यात्रा के दौरान जमकर विरोध-प्रदर्शन और नारेबाजी की। महिलाओं ने बिहार में अवैध शराब की बिक्री के लिए नीतीश कुमार को ही जिम्मेदार ठहराया।

हालांकि राज्य सरकार में वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी किसी तरह के विरोध से साफ इंकार करते हैं।

उनका कहना है, ‘कहां विरोध हुआ है? हमने तो कहीं भी विरोध नहीं देखा। जो हमारे कार्यक्रम में थे, उन लोगों ने कोई नारा नहीं लगाया। अब कोई अपने घर में बैठकर नारा लगाए तो किसी को मनाही नहीं है। हमने इस कार्यक्रम में कहीं कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देखी।’

नीतीश को क्या हासिल हुआ
बिहार सरकार में वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी भी नीतीश कुमार के साथ मुजफ़्फ़ऱपुर में मौजूद थे। हमने उनसे पूछा कि सरकार को समाधान यात्रा से क्या हासिल हुआ है?

विजय कुमार चौधरी कहते हैं, ‘हमने अनेक जिलों में देखा है कि समाधान यात्रा अपने मकसद में सौ फीसदी क़ामयाब रही है। हमें जानना था कि ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए, महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में छात्रवृत्ति या बाकी योजनाएं जो सरकार चला रही है उससे धरातल पर क्या बदलाव आया है।’

उनका कहना था कि सरकारी योजनाओं का लाभ पाने वाला तबका कैसा महसूस कर रहा है, यही जानना सरकार का मक़सद था। उन्होंने बताया कि इस फीडबैक के आधार पर योजनाओं को और बेहतर बनाने की दिशा में काम किया जा सकता है।

समाधान यात्रा से जुड़ी सुखद तस्वीरों को अक्सर राज्य सरकार भी प्रचारित करती है। ऐसी तस्वीरें जहां लोग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए नारे लगा रहे हों, या उनके स्वागत और सम्मान में खड़े हों।

लेकिन वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण मानते हैं कि इस बार की यात्रा क्यों निकाली गई, यह समझ से परे है, ‘लगता है नीतीश कुमार ख़ुद भी यात्रा के मकसद को लेकर कन्फ्यूज थे। यह काफी निराशाजनक यात्रा थी।’

नचिकेता नरायण कहते हैं, ‘पिछली यात्रा में नीतीश ने साफ तौर पर शराबबंदी के प्रचार को मुद्दा बनाया था। इस बार वो जेडीयू और आरजेडी के वोटरों को एकजुट कर सकते थे। लेकिन उन्होंने कोई जनसभा तक नहीं की और राजनीतिक सवालों से भी बचते रहे।’
नीतीश कुमार ने अपनी इस यात्रा में उपेंद्र कुशवाहा को लेकर बयान तो दिया, लेकिन केंद्र की राजनीति से जुड़े सवालों को वो आमतौर पर टालते दिखे।

पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर नीतीश कुमार की इस यात्रा पर अलग राय रखते हैं। उनका कहना है, ‘ऐसा लगता है नीतीश कुमार अपनी आगे की राजनीति के लिहाज से जनता की नब्ज टटोल रहे थे। उन्होंने लोगों से मुलाकात की है, अब इसकी समीक्षा करेंगे और फैसले लेंगे।’ (bbc.com/hindi)

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