विचार / लेख
-सचिन कुमार जैन
आजादी के 75 वर्षों में भारत को मूर्खता और विवेकहीनता का विश्वगुरु बनाने की योजना है। संविधान कहता है कि किसी भी धर्म को अपने व्यवहार की स्वतंत्रता है लेकिन लोकव्यवस्था के अधीन। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देगी, अंधविश्वास को नहीं। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश में संविधान ताक पर है और समाज नशे में धुत्त। बाबाओं की यह व्यवस्था बताती है कि भारत किस हद तक अवसाद से ग्रस्त है। किस कदर और किस हद तक लोग नाउम्मीद हो चुके हैं। भारत के इतिहास में संभवत: कभी भी लोगों ने पुरुषार्थ और कर्म पर उम्मीद करना नहीं छोड़ा होगा, लेकिन आज छोड़ दिया है। अब उन्हें लगता है कि रुद्राक्ष से ही कुछ समस्या हल हो तो हो।
राजनीति का धर्म के आधार पर सत्ता हासिल करने का षडय़ंत्र भारत को अकल्पनीय बर्बादी की तरफ धकेल रहा है।
हम आज उस मुकाम पर हैं, जहां विवेक, तर्क और विज्ञान की बात करने से लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है और सरकार उन भावनाओं को सहलाने के लिए देश हित, समाज हित, विवेक, तर्क और मानवीय मूल्यों का पक्ष लेने वालों को राष्ट्रद्रोही और अपराधी घोषित करती है। इससे ही यह अनुमान लग जाता है कि हालात क्या हैं?
समाज से आग्रह है कि अब कृपया अपने बच्चों को स्कूल कालेज भेजना बंद कर दीजिए।
अब वक्त आ गया है कि यह तो इन तथाकथित चमत्कारी बाबाओं को चुनिए या सभ्यता, विज्ञान, मानवीय नैतिक मूल्यों और विवेक को चुनिए। कम से कम पहचान में स्पष्टता तो रहेगी।
हम, भारत के लोग, भारत को बर्बाद करने का ठान चुके हैं क्या? अगर ऐसा है तो सरकारों से निवेदन है कि कृपया शिक्षा और स्वास्थ्य के कामों पर प्रतिबंध लगा दीजिए। आप लोग सरकार से हट जाइए। विज्ञान के बात करने को अपराध घोषित कर दीजिए। आत्महत्या को राष्ट्रीय कर्म घोषित कर दीजिए। अरे, देश आगे जीवित रह सके, इसके लिए कम से कम बुद्धि तत्व को तो जिंदा रहने दीजिए।