विचार / लेख
-रोहित देवेन्द्र
‘हमारे पिता बहुत बड़े डायरेक्टर-प्रोड्यूसर थे। मैं बहुत बड़ा डायरेक्टर था। हमारे पास सक्सेजफुल फिल्म स्टूडियो था। बावजूद इसके हम अपने छोटे भाई को स्टार नहीं बना सके। मतलब साफ है कि जिसे पब्लिक नहीं पसंद करती उसे उस पर थोपा नहीं जा सकता’ यह बात आदित्य चोपड़ा अपने भाई उदय चोपड़ा के लिए कह रहे हैं। आदित्य ऐसी कई सारी बातें कहते हैं जो नई हैं। उससे नया यह है कि हम पहली बार उन्हें कैमरे पर कुछ कहता हुआ देख रहे हैं।
नेटफ्लिक्स पर 4 एपिसोड की एक मिनी सीरीज ‘द रोमांटिक्स’ के नाम से स्ट्रीम हुई है। उसे फिल्म कहें? यशराज फैमली पर बनी डाक्यूमेंट्री कहें या यशराज द्वारा खुद के पैसों से खुद की आरती उतारने का उपक्रम कहें। यह आप पर निर्भर करता है। इस मिनी वेब सीरीज में यश चोपड़ा की पहली फिल्म से लेकर यशराज बैनर की अंतिम फिल्म पठान तक पहुंचने की कहानी बताई गई है। इस बैनर से अब तक जो फिल्में आई हैं उनके पीछे के कुछ किस्से हैं। फिल्मों को चुनने के पीछे की फिलॉसफी है। कई दर्जन फिल्म स्टार्स के छोटे-छोटे इंटरव्यू हैं। इस पूरे कहानी को एक तरह से एंकर आदित्य चोपड़ा कर रहे हैं।
आदित्य ऐसे निर्माता-निर्देशक रहे हैं जो मीडिया फैमिलियर नहीं रहे हैं। मैंने उन्हें कभी इंटरव्यू देते नहीं देखा। एक प्रोड्यूसर की तरह फिल्म प्रमोट करते नहीं देखा। वीकेंशन की फोटो शेयर करते नहीं देखी। अपनी फिल्मों की एक्ट्रेसेस के साथ अफेयर की गॉसिप नहीं सुनी। रानी मुखर्जी के साथ नाम जुडऩे की गॉसिप से पहले शादी की तारीख आ गई थी। तो एक तरह से इस सीरीज का सबसे बड़ा हासिल आदित्य को बोलते हुए देखना है।
आदित्य एक बड़े और लोकप्रिय फिल्मी घराने के मालिक हैं। कई सारी सुपरहिट फिल्में खुद भी डायरेक्ट की हैं। सैकडों फिल्म स्टार्स को लॉन्च किया है। बहुत सारे निर्देशकों को पहले निर्देशक और फिर क्रिएटिव प्रोड्यूसर बनने के मौके दिए हैं। हिंदी सिनेमा के स्पॉट लाइट में खड़े उस व्यक्ति को देखते हुए अच्छा लगता है। सुनकर लगता है कि आदित्य के पास फिल्मों की मैथमेटिक्स, रसायन शास्त्र, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान को समझने की बेहतर समझ है। कला की समझ तो है ही।
कई दफे यह एहसास हो सकता है कि यह खुद पर पुष्प वर्षा के लिए बनाई गई फिल्म है। लेकिन जब आप यशराज बैनर की फिल्मोग्राफी देखते हैं। सिनेमा को दिए गए उनके योगदान का वजन करते हैं तो पाते हैं कि थोड़ा शो ऑफ करना बनता है। फिल्म की एडीटिंग अच्छी की गई है। यशराज फिल्म के बहुत सारे गानों और दृश्यों को सही जगह यूज किया गया है।
किसी फिल्मकार की सफलता को बताने का यह थोड़ा महंगा और अमीरी वाला तरीका है। जावेद अख्तर ने जी के साथ मिलकर क्लासिक लीजेंड नाम का एक शो किया है। उसके कई सारे सीजन आ चुके हैं। जावेद उसमें जिस अधिकार से किसी फिल्ममेकर, एक्टर, गीतकार, संगीतकार के बारे में बताते हैं वह सुनकर सच सा लगता है।
सच यह डाक्यूमेंट्री भी लगती है लेकिन उतना सच यह भी है कि कई जगह यह सिर्फ आरती भी लगती है...