विचार / लेख
एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम से यह हटाया गया:-‘‘गांधी उन लोगों द्वारा विशेष रूप से नापसंद थे जो चाहते थे कि हिन्दू बदला लें या जो चाहते थे कि भारत हिन्दुओं के लिए एक देश बने। जैसे पाकिस्तान मुसलमानों के लिए था। उन्होंने गांधी जी पर मुसलमानों और पाकिस्तान के हितों में काम करने का आरोप लगाया। गांधी जी को लगा कि ये लोग गुमराह हैं। उन्हें विष्वास था कि भारत को केवल हिन्दुओं के लिए एक देश बनाने का कोई भी प्रयास भारत को नष्ट कर देगा। हिन्दू मुस्लिम एकता के उनके दृढ़ प्रयास ने हिन्दू चरमंथियों को इतना उकसाया कि उन्होंने गांधी जी की हत्या के कई प्रयास किए।’’ यह भी हटा दिया गया:-‘‘गांधी जी की मृत्यु का देश में सांप्रदायिक स्थिति पर लगभग जादुई प्रभाव पड़ा। विभाजन से संबंधित गुस्सा और हिंसा अचानक कम हो गई। भारत सरकार ने नफरत फैलाने वाले संगठनों पर कड़ी कार्यवाही की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों को कुछ समय के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया। सांप्रदायिक राजनीति ने अपनी अपील खोनी शुरू कर दी।’’
पहले गांधी की हत्या वाले हिस्से में लिखा था:-‘‘30 जनवरी की शाम को उनकी दैनिक प्रार्थना सभा में गांधी जी को एक युवक ने गोली मार दी थी। बाद में आत्मसमर्पण करने वाला हत्यारा पुणे का एक ब्राम्हण था। जिसका नाम था नाथूराम गोडसे। जो एक चरमपंथी हिन्दु अखबार का संपादक था। जिसने गांधी जी को मुसलमानों का तुष्टीकरण करने वाला बताया था।’’ अब लिखा है:-‘‘तीस जनवरी की शाम को उनकी दैनिक प्रार्थना सभा में गांधी जी को एक युवक ने गोली मार दी थी। बाद में आत्मसमर्पण करने वाला हत्या नाथूराम गोडसे था। ऐसे गांधी को तबाह करने के लिए नई जुगतें ढूंढी जा रही हैं। इस बात की षर्म आ रही है कि लिखें कि गांधी का हत्यारा ब्राह्मण था। यह भी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर उनकी हत्या के आरोप में प्रतिबंध लगा था। नाथूराम गोडसे के अपराध को हल्का करने भाषायी छेड़छाड़ की जा रही है।
गांधी के लिए संघ और हिन्दू महासभा में बेसाख्ता नफरत आज पके घाव की तरह है। भले ही उस पर राजनीतिक सत्ता मिलने से पपड़ी पड़ी दिखती है। लगभग सौ वर्षों से संघ विचारधारा गांधी के मुकाबले देश को सांप्रदायिक नफरत का मरुस्थल बनाना चाहती रही है। औसत हिन्दू के मन में दूसरी सबसे बड़ी कौम द्वारा मुसलमान के लिए लगातार नफरत रहे। तो संघ विचारधारा को लगता एक दिन यही चिनगारी दहकता शोला बन जाएगी। फिर सत्ता पाने राजनीतिक रोटी सेंकना बहुत आसान हो जाएगा। वही हुआ। हिन्दुत्व का शुरुआती पाठ सावरकर को उनके गुरु समझे जाने वाले छत्तीसगढ़ के बिलासपुर निवासी डॉ. बी. एस. मुंजे ने पढ़ाया। मुंजे और बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापनाकार हेडगेवार कांग्रेस सदस्य रहकर नफरत का बगूला उगाना चाहते थे। वह गांधी की शख्सियत के कारण मुमकिन नहीं हुआ। दोनों हिन्दुत्ववादी आजादी के आंदोलन में अपनी अंगरेजपरस्ती छिपाए रहते थे। इसलिए कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। मुंजे शायद पहले भारतीय हैं जो इटली जाकर तानाशाह मुसोलिनी से मिले और गुफ्तगू की। उसका प्रामाणिक आधिकारिक ब्यौरा नहीं मिलता। मुंजे की इटली यात्रा के पीछे क्या आकर्षण हो सकता था?
इस पर बहुत बावेला मचा कि गांधी की हत्या करने में क्या संघ और सावरकर का हाथ था? अंगरेजों के बनाए साक्ष्य अधिनियम में अपराध सिद्ध करना बहुत मुष्किल है। आज भी अपराधियों के छूटने का प्रतिशत काफी है। गांधी की हत्या को लेकर जानकारियां जुटाई गईं लेकिन अदालती कार्यवाही में आरोप सिद्ध करना बहुत कठिन होता रहा। सावरकर और संघ विचारधारा में गांधी के लिए प्रशंसा या झुकाव का सवाल हो नहीं सकता था। हत्यारे नाथूराम गोडसे का सावरकर का शिष्य और संघ का स्वयंसेवक भी हो रहना पब्लिक डोमेन में है। फिलवक्त राहुल गांधी पर मुकदमा चल रहा है। जब उन्होंने गांधी जी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को जिम्मेदार ठहराया। आरोप से तकनीकी तौर पर बचने की संघ की कोषिष रही लेकिन जनधारणा में उससे फारिग हो जाना बहुत मुश्किल है। चुन्नीलाल वैद्य की पुस्तिका इस सिलसिले में अकाट्य है।
संघ विचारधारा की पेंचदार समझ में किसी भी कांग्रेस नेता के मुकाबले गांधी के लिए घृणा का पैमाना अलग तरह का है। गांधी के बाद ही नेहरू का नंबर आता है। संघ विचारधारा ने शुरू से ही मुसलमान को अपना टारजेट बनाकर राजनीतिक वितंडावाद शुरू किया। नरती गुब्बारे की हवा गांधी के कारण बार-बार निकल जाती थी। कई प्रतीक चुनकर हिन्दुत्व की पाठशाला में नफरत की कक्षाएं अब भी चलाई जा रही हैं। वे सब प्रतीक अहिंसक गांधी ने जीवन और कर्म के जरिए उदार हिन्दू मन मेंं जज्ब कर दिए थे। दुर्भाग्य है गांधी के समकालीनों ने अपने वारिसों को गांधी का जतन से सिरजा हुआ भारतीय मन जज्ब नहीं किया। मसलन गाय संघ परिवार के लिए वोट बैंक का हथियार है। बीफ कारखाने पर ज्यादातर भाजपाइयों की मालिकी है। गंगा को अपनी मां कहते उसकी सफाई अभियान में करोड़ों खर्च करने वाली उमा भारती का अता पता नहीं है। गंगा सफाई अभियान के बदले गंगा गंदगी अभियान सरकार के स्तर पर शबाब में है। गंगा की पवित्रता में कोविड की बीमारी में मरते लाखों लोगों की लाशें डूबने तैरने लगीं। गंगा की छाती पर वाराणसी में ऐय्याशी का एक बहुत बड़ा क्रूज शुरू किया गया है जिसमें प्रवेश का शुल्क हजारों में है। यह गंगा का अजीबोगरीब मोदीपरस्त सांस्कृतिक सम्मान है। कालजयी गीता को भी कब्जे में ले लिया गया है। उसमें केवल उतना हिस्सा रटाया जाता है जो कृष्ण की बानगी को समझाने के बदले हिंसा का ताजा राजनीति शास्त्र पढ़ाने लगता है। इतिहास का सच है कि जितनी बार गांधी ने राम के नाम का उल्लेख किया उतना तो हिन्दुत्व के सभी पैरोकारों ने मिलकर नहीं किया। गांधी के जाने के बाद उत्तराधिकारी कांग्रेसियों ने इन सांस्कृतिक प्रतीकों की अनदेखी शुरू की। उसके भी कारण राम के नाम पर संघ परिवार ने एकाधिकार कर लिया। राम राम, सीता राम, जय सियाराम जैसे संबोधन लोक जीवन के आह्वान हैं। हर हिन्दू के जीवन के अंत में ‘राम नाम सत्य है‘ का नारा आज भी मुखर है। राम के लोकतंत्रीय चरित्र को बदलकर उनमें जयश्रीराम के हुंकार का विकार भर दिया गया है कि यह आदिपुरुष अल्पसंख्यकों और असहमतों को डराने का कंधा बनाया जा रहा है।
गांधी ने तो ‘हरिजन’ और ‘दरिद्र नारायण’ शब्दों का भी आविष्कार किया। कहा था नेताओं से जब कोई काम करो तो पहले सोचो तुम्हारे काम का असर समाज के सबसे अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति पर क्या होगा। वह अंतिम छोर का व्यक्ति आज मुफ्त अनाज की योजना में अस्सी करोड़ के पार है। इससे ज़्यादा उसकी कोई हैसियत या पहचान नहीं है। इतिहास में सबसे महंगे कपड़े पहनने वाला राजनेता चरखे में घुसकर अपनी तस्वीर खिंचाते कॉरपोरेटी अदानी का रक्षक बनने लगा। गांधी को लगभग चिढ़ाने के अंदाज में शौचालयों का चौकीदार बना दिया। साबरमती आश्रम पर पूरी तौर पर कब्जा करने के बाद उसे एक रिसॉर्ट और पिकनिक स्पॉट में बदला जा रहा है। बीच-बीच में राजघाट गांधी स्मारक पर मत्था टेकने ठनगन जारी है। गांधी गांव की आत्मा थे और गांव गांधी की आत्मा। भारत के अब तक के सबसे बड़े किसान आंदोलन में गांधी की अहिंसा दिखाई पड़ी। तो सरकार ने उसे कुचलने में नरमी नहीं दिखाई। व्हाट्सऐप विश्वविद्यालय, इंस्टाग्राम इंस्टीट्यूशन और फेसबुक सहित सोशल मीडिया में गांधी को भारत विभाजन का दोषी ठहराया ही जाता है और मुसलमानों का हमदर्द भी। भारत विभाजन का सच्चा इतिहास छिपाकर रखा जाता है। कूढ़मगज विचारक समझते हैं एनसीईआरटी की किताबों में गांधी के लोकयश का सच धूमिल कर दिया जाए। तो गांधी इतिहास की यादों से धीरे-धीरे गुम हो जाएंगे। वे नहीं जानते गांधी अब विश्व मानव हैं। वे ही असली विश्व गुरु है, जो बनने की कुछ गुरुघंटाल भी कोशिश कर रहे होंगे। गांधी वे भारतीय हैं जो हर देश, हर कौम, हर मुसीबतजदा और जम्हूरियतपसंद मनुष्य के मन में स्थायी हो गए हैं। यह श्रेय और भविष्य तो उनकी हत्यारी विचारधारा के किसी व्यक्ति को कभी नहीं मिल सकता। बेचारी पाठ्य पुस्तकेंं तो गांधी रामायण की पैरौडी क्यों बनाई जा रही हैं?