विचार / लेख

छोटी छोटी खुशियों के क्षण निकले जाते रोज जहां
11-Apr-2023 4:39 PM
छोटी छोटी खुशियों के क्षण निकले जाते रोज जहां

प्रकाश दुबे

असम को काटकर मेघालय बनाने वालों के मन की बिजली कौंधती तो वे असमंजस में पड़ जाते। मेघ गर्जना की डरावनी कर्कश ध्वनि पर ध्यान दें या सबसे ज्यादा बारिश के विश्व कीर्तिमान पर? मेघालय के पूर्व खासी पहाडिय़ों में बसे लोगों ने असमंजस का हल बहुत पहले ढूंढ लिया। कोंग्थोंग जिले के गांव में नामों तक में कोयल की कूक का सुरीलापन है। सोहरा विधानसभा क्षेत्र में बोली भाषा खासी में नामकरण किया जाता है और परिवार की परंपरा के मुताबिक संगीत मयनाम रखा जाता है। यूं समझ लें। नौ अप्रैल को दुनिया से अलविदा कहने वाले संपादक राजेन्द्र माथुर को प्यार करने वाले सिर्फ रज्जू बाबू कह कर पुकारते रहे। 

खासी भाषा की अपनी लिपि नहीं है। न बोलचाल का कानूनी नाम लिखना संभव है और न लय में कूक पैदा करने वाला संक्षिप्त या पूरा नाम। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा केशव बलिराम हेडगेवार के जीवनी लेखक राकेश सिन्हा को राष्ट्रपति ने साल 2018 में सचिन तेंडुलकर  की जगह राज्य सभा में नामजद किया। सिन्हा शिलांग से साठ किलोमीटर दूर स्थित गांव पहुंचे। नामकरण की मधुरा शैली सुनकर इतने प्रभावित हुए कि सांसद आदर्श ग्राम योजना में दत्तक ले लिया। बिहारी सिन्हा बार बार जिंगुवाई लावबेई( मधुर तानें) सुनते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री को गांव के विकास की रपट ही नहीं सौंपी, नरेंद्र भाई का सुर तान वाला नाम भी बनवा लिया। सिन्हा को हाल ही में राज्य सभा से भारतीय प्रेस परिषद सदस्य नामजद किया गया है।

निकले जाते हैं रोज़ जहां

कुछ लोग प्रवाह के साथ बहने में विश्वास नहीं रखते। इन दिनों देश के भाग्य विधाता की जोड़ी के पास ही नहीं, उनकी ड्योढ़ी पर जयकारा करने वालों के पास भी संवाद सेवा की चाकरी करने वालों की गुहार की भरमार है -हमें भी कहीं फिट कर दो। संसद से लेकर सलाहकार समिति तक में घुसने के उतावले जानें कि बरसों सांसदी करने वाले तथागत सत्पथी अब पूरा समय ओडिय़ा दैनिक धरित्री को देते हैं। संपादकों की संस्था एडिटर्स गिल्ड आफ़ इंडिया के आजीवन सदस्य तथागत ने मानहानि के अस्सी से अधिक मुक़दमों का सामना किया। सब जीते। संपादक बिरादरी की परेशानी समझी। मानहानि का प्रावधान समाप्त करने के लिए उन्होंने बरसों पहले लोकसभा में अशासकीय विधेयक पेश किया। उनकी पहली आपत्ति यह है कि शिकायतकर्ता दीवानी और फौजदारी दोनों तरह के मुकदमे कर कर सकते हैं। राहुल गांधी समेत सांसदों का समर्थन नहीं मिला। वक्त निकल गया। वरना सूरत के फैसले से राहुल की सदस्यता न जाती। दर्जनों अखबार और पत्रकार चैन की सांस लेते।

सुख की नित्य प्रतीक्षा

फुटबॉल का हर मुकाबला खबर नहीं बनता। भारत कभी दुनिया में 173 वें स्थान पर खिसक गया था। अब 101 वें क्रम पर है। फिर भी देश में वह जोश नहीं है जो किसी और खेल की मोहल्ला टीमों के मुकाबले में दिखाई देता है। मेरी बात पर जबरन यकीन मत करना। हाथ कंगन को आरसी क्या? म्यांमार और किर्गिज़स्तान को हराकर भारत 106 से 101 पर आया। फीफा ने ऐलान किया। देश की फुटबॉल की बेहतरी में जबर्दस्त योगदान करने वाले बाइचुंग भूटिया सिक्किम में लगभग उसी समय पुलिस थाने के सामने धरना दे रहे थे। फुटबॉल वालों का राजनीतिक प्रेम तभी समझ में आ गया था, जब फेडरेशन चुनाव में बाइचुंग को आधा दर्जन वोट नहीं हुए। धरना प्रदर्शन का कारण अलग है। बाइचुंग ने सामाजिक कार्यकर्ताओं की पुलिस मौजूदगी में पिटाई का विरोध किया। वे चाहते हैं कि निर्दयता से मारपीट करने वाले गुंडों को गिरफ्तार किया जाए। 25 साल खेल को देने वाले बाइचुंग को इस बात पर जबर्दस्त नाराजगी है कि  गुंडों को  रोकने के बजाय पुलिस ने हमलावरों को रास्ता दिया ?।

रह जाता कोई अर्थ नहीं

आरोप और असलियत का पता लगाना आसान नहीं है। जिसे देखो वही कहता है कि भारत में संघीय व्यवस्था की अनदेखी हो रही है। राज्य के अधिकार छिन रहे हैं। केंद्र की पकड़ मजबूत हो रही है। शिक्षा में विविधता को कम किया जा रहा है। ममता बनर्जी, स्टालिन पर आरोप है कि वे केंद्र से टकराने में अधिक दिलचस्पी रखते हैं ?।  पश्चिम बंगाल में विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति पर खींच-तान के बाद राज्य सरकार ने कुलपति चयन के अधिकार राज्यपाल से छीन लिए। राज्यपालों ने विधेयक फाइल में दबा दिए।

छत्तीसगढ़ में राज्यपाल बदल गए परंतु विधेयक को मंजूरी नहीं मिली। तीन वर्ष पूर्व विधानसभा ने विधेयक पारित किया था। दिलचस्प बात यह है कि कुलपति नियुक्त करने का अधिकार राज्य को देने का विधेयक मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में विधानसभा में मंजूरी के बाद लागू किया जा चुका है। छत्तीसगढ़ को गुजरात की राह पर ले जाने की मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कोशिश राजभवन में क़ैद है।

(छोटी छोटी खुशियों के क्षण, निकले जाते हैं रोज़ जहां। फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का, रह जाता कोई अर्थ नहीं।

- रामधारी सिंह दिनकर की कविता का अंश।)

  (लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)

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