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कर्नाटक में ‘गुजरात मॉडल’ लागू करने की राह में रोड़ा बने येदियुरप्पा?
13-Apr-2023 3:36 PM
कर्नाटक में ‘गुजरात मॉडल’ लागू करने की राह में रोड़ा बने येदियुरप्पा?

 इमरान कुरैशी

कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों को चुनने में भारतीय जनता पार्टी ने कोई जोखिम नहीं लिया। पार्टी ने वहां ‘गुजरात मॉडल’ दोहराने से परहेज किया है।

लेकिन उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होने के बाद बीजेपी के कई ऐसे नेताओं ने या तो पार्टी छोडऩे का फैसला लिया है या फिर चुनावी राजनीति से संन्यास लेने का फैसला किया है जिन्हें इस बार टिकट नहीं दिया गया। इनमें एक मंत्री और एक पूर्व उप-मुख्यमंत्री भी शामिल हैं।

कर्नाटक चुनाव के लिए टिकटों का बंटवारा करते हुए बीजेपी ने उम्मीदवारों की लगभग उसी फ़ेहरिस्त पर मुहर लगाई है, जिसे पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने अपना समर्थन दिया था और जिसमें ‘जांचे परखे’ विधायकों के नाम शामिल थे।

बीजेपी को टिकटों के बंटवारे में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से गुरेज करने का ख़्याल उस वक्त आया, जब दो दिन पहले प्रत्याशियों की अपनी लिस्ट केंद्रीय नेतृत्व को थमाने के बाद नाराज येदियुरप्पा बेंगलुरू लौट गए थे।

नाम न बताने की शर्त पर पार्टी के पदाधिकारियों ने बीबीसी हिंदी को बताया कि टिकट देने से पहले केंद्रीय नेतृत्व उम्मीदवारों की तीन सूचियों पर विचार कर रहा था। जब येदियुरप्पा दिल्ली से बेंगलुरू लौट गए तो केंद्रीय नेतृत्व को ये एहसास हुआ कि येदियुरप्पा की सूची काफी हद तक ख़ुद केंद्रीय नेतृत्व द्वारा सर्वे के आधार पर तैयार कराई गई लिस्ट से मिलती-जुलती है।

जिस तीसरी सूची पर विचार किया जा रहा था, वो बाद में घोषित की गई 189 उम्मीदवारों की उस लिस्ट से काफी अलग थी, जिसमें 52 नए चेहरों को मौका दिया गया है।

इस बीच बुधवार देर रात बीजेपी ने 23 और उम्मीदवारों की दूसरी सूची भी जारी कर दी है। इसमें छह मौजूदा विधायकों के नाम शामिल नहीं हैं। इस सूची में गुरमितकल, बिदार, हंगल, हावेरी, दावानगरे, मायाकोंडा, कोलार गोल्ड फील्ड जैसी सीटें शामिल हैं।

लिस्ट जारी होने के बाद उथल-पुथल

बीजेपी के एक पदाधिकारी ने बीबीसी को बताया कि, ‘उम्मीदवारों के नाम का एलान करने में देरी की वजह ये विवाद था कि पार्टी की तरफ़ से किसे टिकट दिया जाए और किसे नहीं। ये साफ हो चुका था कि अगर पार्टी ने कर्नाटक में अपने उम्मीदवार चुनने के मामले में सर्जिकल स्ट्राइक की, तो उससे काफी परेशानियां खड़ी हो सकती हैं।’

अब लिस्ट जारी होने के बाद के हालात ये हैं कि 2019 में उप-मुख्यमंत्री बनाए गए लक्ष्मण सावदी ने पार्टी छोड़ दी है।

पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देने पर उन्होंने कहा, ‘मैंने अपना फ़ैसला ले लिया है। मैं भीख का कटोरा लेकर यहां-वहां नहीं घूमता। मैं विधान परिषद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे रहा हूं।’

लक्ष्मण सावदी का कहना है कि वो अपनी अगली रणनीति का फैसला अपने समर्थकों से सलाह-मशविरे के बाद करेंगे।

वहीं, बंदरगाह और मत्स्य पालन राज्य मंत्री एस। अंगारा ने भी राजनीति का मैदान छोडऩे का फ़ैसला कर लिया है। अंगारा, दक्षिण कन्नड़ जिले की सुल्लिया सीट से विधायक हैं।

वहीं, एक और पूर्व उप-मुख्यमंत्री केएस ईश्वरप्पा ने पार्टी नेतृत्व को जानकारी दी है कि चूंकि उनके बेटे को टिकट नहीं दिया गया है, इसलिए वो चुनावी राजनीति को अलविदा कहेंगे।

लेकिन, उम्मीदवार चुनने की इस कवायत में बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व ‘राजनीति में परिवारवाद’ से पल्ला झाडऩे की अपनी कोशिश में पूरी तरह कामयाब नहीं हो सका है। केंद्रीय नेतृत्व ने कई मामलों में मौजूदा विधायकों के बेटे-बेटियों को टिकट देने का फैसला किया है।

सबसे हैरान करने वाला मामला तो पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार का रहा। जगदीश शेट्टार ने लगभग विद्रोह करते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लडऩे का एलान कर दिया है।

उन्होंने दिल्ली आकर पार्टी के केंद्रीय नेताओं से मुलाकात की जरूर है, लेकिन अभी ये साफ नहीं है कि इन मुलाकातों का नतीजा क्या निकला। हालांकि, इस बात की संभावना कम ही है कि वो मानेंगे।

जगदीश शेट्टार हुबली सेंट्रल विधानसभा सीट से छह बार चुनाव जीत चुके हैं। उनकी मुख्य शिकायत ये है कि पार्टी नेतृत्व को कम से कम कुछ महीने पहले बता देना चाहिए था कि उनको टिकट नहीं दिया जाएगा और उन्हें किसी और के लिए अपनी सीट छोडऩी होगी।

जातीय समीकरण का ख्याल

उडुपि से विधायक रघुपति भट, उस प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज के चेयरमैन थे जहां कुछ महीनों पहले हिजाब का मुद्दा उठा था।

उन्होंने पत्रकारों को बताया, ‘ये जानकर बड़ी तकलीफ होती है कि आपको टिकट नहीं दिया गया है। मेरा कम से कम इतना हक तो बनता था कि मुझे इसके बारे में पहले जानकारी दे दी जाती। मैं अभी भी सदमे में हूं। मैं अभी ये नहीं सोच पा रहा हूं कि आगे क्या करूंगा। हां, मैं पार्टी नहीं छोड़ूंगा।’

रघुपति भट इसलिए भी बहुत परेशान हैं क्योंकि टिकट के बंटवारे में जातिगत समीकरण साधा जाने लगा। उनकी जगह पार्टी ने मछुआरा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले यशपाल सुवर्ण को टिकट दिया है।

रघुपति भट कहते हैं, ‘पिछले तीन चुनावों से जब लोग मुझे वोट दे रहे थे, तो किसी ने मेरी जाति के बारे में नहीं सोचा कि मैं ब्राह्मण हूं।’

प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज प्रबंधन बोर्ड के उपाध्यक्ष के तौर पर यशपाल सुवर्ण ने हिजाब विवाद में मुख्य भूमिका अदा की थी।

कहा जा रहा है कि उडुपि सीट के लिए उन्हें उम्मीदवार इसलिए बनाया गया क्योंकि पार्टी ने पड़ोस की कुंदापुरा सीट पर एक ब्राह्मण प्रत्याशी को टिकट देने का फैसला किया है। इसीलिए, जातिगत समीकरण साधने के लिए रघुपति भट की जगह यशपाल सुवर्ण को टिकट दिया गया है।

दक्षिण कन्नड़ और उडुपि में बड़े बदलाव

दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी ने उम्मीदवारों के मामले में ज्यादातर बदलाव दक्षिण कन्नड़ और उडुपि के तटीय जिलों में किए हैं।

एस. अंगारा की जगह जिला पंचायत के एक पूर्व सदस्य भागीरथी मुरली को उम्मीदवार बनाया गया है। वहीं, पुत्तुर सीट पर एक नई उम्मीदवार आशा थिमप्पा गौड़ा को उतारा गया है। आशा जिला पंचायत अध्यक्ष कह चुकी हैं।

भोपाल की जागरण लेकसाइड यूनिवर्सिटी के कुलपति और राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर संदीप शास्त्री ने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी की ये ऐसी लिस्ट है जिस पर सबसे कम विवाद की गुंजाइश थी। इसमें सभी तबकों को खुश करने की कोशिश की गई है। लेकिन दक्षिण कन्नड़ और तटीय जिलों की इतनी सारी सीटों पर उम्मीदवार बदलने का फैसला समझ से परे है।’

संदीप शास्त्री कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि तटीय जिलों में इस बदलाव के पीछे कई कारण हैं। पहला तो ये है कि जो विधायक दो बार चुनाव जीत चुके हैं, उनके खिलाफ काफी नाराजगी थी। दूसरा कारण ये है कि पार्टी कार्यकर्ताओं को ये लग रहा था कि जिन लोगों पर हमले हो रहे थे, खासतौर से प्रवीण नेट्टारू के कत्ल के बाद से जिनको निशाना बनाया जा रहा था, वो चुने हुए प्रतिनिधि नहीं, बल्कि निचली जातियों के लोग थे।’

‘इसी वजह से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ बगावत हो गई थी। शायद इस बार पार्टी टिकटों के बंटवारे में पुरानी गलतियां सुधारने की कोशिश कर रही थी।’

मैसूर यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर चांबी पुराणिक के मुताबिक, ‘बीजेपी ने राजनीतिक रणनीति और जीतने वाले उम्मीदवार ही उतारने के बीच संतुलन साधने की कोशिश की है। सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि बीजेपी ने उन लोगों को टिकट दिए हैं जिनके पास चुनाव में खर्च करने के लिए खूब पैसे और संसाधन हैं और जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, खासतौर से बेलगावी जिले में।’

उनका कहना है, ‘टिकटों के बंटवारे में जातिगत समीकरणों का भी ख़ूब ख़्याल रखा गया है। इसीलिए, अन्य पिछड़ा वर्ग के 32, अनुसूचित जाति के 30 और अनुसूचित जनजाति के 16 उम्मीदवार उतारे गए हैं। इसके अलावा, 51 लिंगायत और 41 वोक्कालिगा नेताओं को टिकट दिए गए हैं।’

प्रोफेसर पुराणिक इसके पीछे ‘जांचे-परखे’ उम्मीदवारों को तरजीह देने का फॉर्मूला बताते हैं।

वो कहते हैं, ‘बीजेपी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष की तुलना में येदियुरप्पा एक व्यावहारिक नेता हैं। रणनीति के मामले में संतोष, येदियुरप्पा को मात नहीं दे सकते हैं। बीएल संतोष, आरएसएस से आते हैं और आम तौर पर वो सब कुछ अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं। मगर, उन्हें ये बात भी पता है कि लिंगायत समुदाय, येदियुरप्पा के खिलाफ कोई भी कदम बर्दाश्त नहीं करेगा।’ (bbc.com)

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