विचार / लेख

फेसबुक लेखन के मायने
17-Apr-2023 3:53 PM
फेसबुक लेखन के मायने

जगदीश्वर चतुर्वेदी

हिन्दी फेसबुक पर बड़े पैमाने पर युवा  लिख रहे हैं। इनमें सुंदर साहित्य, अनुवाद, विमर्श आदि आ रहा है। इनमें आक्रामक और पैना लेखन भी आ रहा है। साथ ही फेसबुक पर बड़े पैमाने पर बेवकूफियां भी हो रही हैं। फेसबुक एक गंभीर मीडियम है इसका समाज की बेहतरी के लिए, ज्ञान के आदान-प्रदान और सांस्कृतिक- राजनीतिक चेतना के निर्माण के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। अभी हिन्दी का एक हिस्सा फेसबुक पर अपने सांस्कृतिक पिछड़ेपन की अभिव्यक्ति में लगा है। वे निजी भावों की अभिव्यक्ति से ज्यादा इस मीडियम की भूमिका को नहीं देख पा रहे हैं। एक पंक्ति के लेखन को वे गद्य लेखन के विकास की धुरी मानने के मुगालते में हैं।

फेसबुक में कुछ भी लिखने की आजादी है, इसका कुछ बतखोर लाभ ले रहे हैं, यह वैसे ही है जैसे अखबार और पत्रिकाओं का गॉसिप लिखने वाले आनंद लेते हैं। इससे अभिव्यक्ति की शक्ति का विकास नहीं होता। बतखोरी और गॉसिप से मीडियम ताकतवर नहीं बनता। मीडियम ताकतवर तब बनता है जब उस पर आधुनिक विचारों का प्रचार-प्रसार हो। सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों और समस्याओं के साथ मीडियम जुड़े। हिन्दी में फेसबुक अभी हल्के-फुल्के विचारों और भावों की अभिव्यक्ति के साथ जुड़ा है। कुछ लोगों का मानना है  यह पासटाइम मीडियम है। वे इसी रूप में उसका इस्तेमाल भी करते हैं। फेसबुक एक सीमा तक ही पासटाईम मीडियम है । लेकिन यह सामाजिक परिवर्तन का भी वाहक बन सकता है।

किसी भी मीडिया की शक्ति का आधुनिक युग में तब ही विकास हुआ है जब उसका राजनीतिक क्षेत्र में इस्तेमाल हुआ है। हिन्दी में ब्लॉगिंग से लेकर फेसबुक तक राजनीतिक विषयों पर कम लिखा जा रहा है। ध्यान रहे प्रेस ने जब राजनीति की ओर रुख किया था तब ही उसे पहचान मिली थी। यही बात ब्लॉगिंग और फेसबुक पर भी लागू होती है। जो लोग सिर्फ साहित्य,संस्कृति के सवालों पर लिख रहे हैं या सिर्फ कविता, कहानी आदि सर्जनात्मक साहित्य लिख रहे हैं उनकी सुंदर भूमिका है। लेकिन इस माध्यम को अपनी पहचान तब ही मिलेगी जब हिन्दी के श्रेष्ठ ब्लॉगर और फेसबुक लेखक गंभीरता के साथ देश के आर्थिक-राजनीतिक सवालों पर लिखें, किसी न किसी जनांदोलन के साथ जोडक़र लिखें । हिन्दी में अभी जितने भी बड़े ब्लॉगर हैं उनमें से अधिकांश देश, राज्य और अपने शहर के राजनीतिक हालात पर लिखने से कन्नी काट रहे हैं या उनको राजनीति पर लिखना पसंद नहीं है।

फेसबुक रीयलटाइम मीडियम होने के कारण विकासमूलक और आंदोलनकारी या वैचारिक क्रांति में बड़ी भूमिका निभा सकता है। समस्या है फेसबुक का पेट भरने की। देखना होगा फेसबुक के मित्र-यूजर किन चीजों से पेट भर रहे हैं। खासकर हिन्दी के फेसबुक मित्र किस तरह की चीजों और विषयों के संचार के लिए इस माध्यम का इस्तेमाल कर रहे हैं ? अभी एक बड़ा हिस्सा गली-चौराहों की पुरानी बातचीत की शैली और अनौपचारिकता को यहां ले आया है। इससे जहां एक ओर पुरानी निजता या प्राइवेसी खत्म हुई है। वहीं दूसरी ओर वर्चुअल संचार में इजाफा हुआ है। हमें फेसबुक को शक्तिशाली मीडियम बनाना है तो देश की राजनीति से जोडऩा होगा। राजनीति से जुडने के बाद ही फेसबुक को हिन्दी में अपनी निजी पहचान मिलेगी और फेसबुक की बतखोरी,गॉसिप और बाजारू संस्कृति से आगे जाकर क्या भूमिकाएं हो सकती हैं उनका भी रास्ता खुलेगा। कोई भी मीडिया टिप्पणियों, प्रशंसा, निज मन की बातें,निजी जीवन की दैनंदिन डायरी, पत्रलेखन से बड़ा नहीं बना, इनसे मीडिया को पहचान नहीं मिलती। ब्लॉगिग,फेसबुक आदि को प्रभावी बनाने के लिए इन माध्यमों का राजनीति से जुडऩा बेहद जरूरी है।

क्लारा शिन ने ‘दि फेसबुक एरा: टैपिंग ऑनलाइन सोशल नेटवक्र्स टू बिल्ड बेटर प्रोडक्टस, रीच न्यू ऑडिएंसेस, एंड सेल मोर स्टफ’ नामक किताब में लिखा है ऑनलाइन सोशल नेटवर्क के तेजी से विस्तार ने हमारी जीवनशैली, काम और संपर्क की प्रकृति को बुनियादी तौर पर बदल दिया है। इसने व्यापार के विस्तार की अनंत संभावनाओं को जन्म दिया है। फेसबुक विस्तार के तीन प्रधान कारण हैं। पहला, विश्वसनीय पहचान। दूसरा,विशिष्टता और तीसरा है समाचार प्रवाह। फेसबुक द्वारा डाटा और सूचनाओं के सार्वजनिक कर देने के बाद से इंटरनेट पर्दादारी का अंत हो गया है। सूचना की निजता की विदाई हुई है और वर्चुअल सामाजिकता और पारदर्शिता का उदय हुआ है। डाटा के सार्वजनिक होने से यूजर आसानी से पहचान सकता है कि वह किसके साथ संवाद और संपर्क कर रहा है।ब्लॉगिंग के साथ निजी सूचनाओं के सार्वजनिक करने की परंपरा आरंभ हुई थी जिसे फेसबुक ने नयी बुलंदियों पर पहुँचा दिया है। इसका यह अर्थ नहीं है कि सामाजिक जीवन से निजता का अंत हो गया है। इसका अर्थ सिर्फ इतना है कि इंटरनेट पहले की तुलना में और भी ज्यादा पारदर्शी बना है। साथ ही सामान्य लोगों में निजी बातों को सार्वजनिक करने की आदत बढ़ी है। निजी और सार्वजनिक बातों के वर्गीकरण के सभी पुराने मानक दरक गए हैं। फेसबुक ने प्राइवेसी का अर्थ बदला है पहले प्राइवेसी का अर्थ था छिपाना। लेकिन आज कुछ भी छिपाना संभव नहीं है। आज प्राइवेसी का अर्थ है संचार के संदर्भ का सम्मान करना। नकारात्मक पक्ष है वर्चुअल यथार्थ। यानी यथार्थ का विलोम। वर्चुअल संचार ने समाज में वर्चस्वशाली ताकतों को और भी ज्यादा ताकतवर बनाया है और सामान्यजन को अधिकारहीन, नियंत्रित और पैसिव बनाया है। इंटरनेट आने के बाद दरिद्रता और असमानता के खिलाफ राजनीतिक जंग कमजोर हुई है। वर्चस्वशाली ताकतों को बल मिला है। सामाजिक और राजनीतिक निष्क्रियता बढ़ी है। शाब्दिक गतिविधियां बढ़ी हैं, कायिक शिरकत घटी है। अब हम वर्चुअल में मिलते हैं और वर्चुअल में ही गायब हो जाते हैं।

फेसबुक महज एक कंपनी नहीं है वह नए युग की कम्युनिकेशन, सभ्यता-संस्कृति की रचयिता भी है। यह बेवदुनिया की पहली कंपनी है जिसके एक माह में 1 ट्रिलियन पन्ने पढ़े जाते हैं। प्रतिदिन फेसबुक पर 2.7बिलियन लाइक कमेंटस आते हैं। किसी भी कम्युनिकेशन कंपनी को इस तरह सफलता नहीं मिली, यही वजह है कि फेसबुक परवर्ती पूंजीवाद की संस्कृति निर्माता है। वह महज कंपनी नहीं है।

गूगल के सह-संस्थापक सिर्गेयी ब्रीन ने इंटरनेट के भविष्य को लेकर गहरी चिन्ता व्यक्त की है। इंटरनेट की अभिव्यक्ति की आजादी को अमेरिका और दूसरे देशों में जिस तरह कानूनी बंदिशों में बांधा जा रहा है उससे मुक्त अभिव्यक्ति के इस माध्यम का मूल स्वरूप ही नष्ट हो जाएगा।

फेसबुक पर यदि कोई यूजर कहीं से सामग्री ले रहा है और उसे पुन: प्रस्तुत करता है और अपने स्रोत को नहीं बताता तो इससे नाराज नहीं होना चाहिए। यूजर ने जो लिखा है वह उसके विचारधारात्मक नजरिए का भी प्रमाण हो जरूरी नहीं है।

फेसबुक तो नकल की सामग्री या अनौपचारिक अभिव्यक्ति का मीडियम है। यह अभिव्यक्ति की अभिव्यक्ति  या कम्युनिकेशन का कम्युनिकेशन है। यहां विचारधारा, व्यक्ति, उम्र,हैसियत,पद. जाति, वंश, धर्म आदि के आधार पर कम्युनिकेशन नहीं होता। फेसबुक में संदर्भ और नाम नहीं कम्युनिकेशन महत्वपूर्ण है। फेसबुक की वॉल पर लिखी इबारत महज लेखन है। इसकी कोई विचारधारा नहीं है। फेसबुक पर लोग विचारधारारहित होकर कम्युनिकेट करते हैं। विचारधारा के आधार पर कम्युनिकेट करने वालों का यह मीडियम ‘ई’ यूजरों से अलगाव पैदा करता है।

फेसबुक विचारधारात्मक संघर्ष की जगह नहीं है। यह मात्र कम्युनिकेशन की जगह है। इस क्रम में मूड खराब करने या गुस्सा करने या सूची से निकालने की कोई जरूरत नहीं है। हम कम्युनिकेशन को कम्युनिकेशन रहने दें। कु-कम्युनिकेशन न बनाएं। फेसबुक कम्युनिकेशन क्षणिक कम्युनिकेशन है। अनेक बार फेसबुक में गलत को सही करने के लिए लिखें ,लेकिन इसमें व्यक्तिगत आत्मगत चीजों को न लाएं। दूसरी बात यह कि फेसबुक मित्र तो विचारधारा और पहचानरहित वायवीय मित्र हैं। आभासी मित्रों से आभासी बहस हो। यानी मजे मजे में कम्युनिकेट करें। असल में ,विचारधारा का कम्युनिकेशन में अवमूल्यन है फेसबुक। एक अन्य सवाल उठा है कि  क्या फेसबुक और ट्विटर ने अकेलेपन को कम किया है या अकेलेपन में इजाफा किया है ? यह अकेले व्यक्ति को और भी एकांत में धकेलता है। संपर्क तो रहता है ,लेकिन संबंधों का बंधन नहीं बंधने देता। दोस्त तो होते हैं लेकिन कभी मिलते नहीं हैं।

     फेसबुक ने मनुष्य की मूलभूत विशेषताओं को कम्युनिकेशन का आधार बनाकर समूची प्रोग्रामिंग की है। मनुष्य की मूलभूत विशेषता है शेयर करने की और लाइक करने की। इन दो सहजजात संवृत्तियों को फेसबुक ने कम्युनिकेशन का महामंत्र बना डाला। इसमें भी फोटो शेयरिंग एक बड़ी छलांग है। यूजर जितने फोटो शेयर करता है वह नेट पर उतना ही ज्यादा समय खर्च करता है। आप जितना समय खर्च करते हैं उतना ही खुश होते हैं और फेसबुक को उससे बेशुमार विज्ञापन मिलते हैं । विगत वर्ष फेसबुक को विज्ञापनों से 1 बिलियन डॉलर की कमाई हुई है। असल में फेसबुक सामुदायिक साझेदारी का माध्यम है।यदि कोई इसे घृणा का माध्यम बनाना चाहे तो उसे असफलता हाथ लगेगी। फेसबुक में धर्म,धार्मिक प्रचार, राजनीतिक प्रचार आदि सब सतह पर विचारधारात्मक लगते हैं लेकिन प्रचारित होते ही क्षणिक कम्युनिकेशन में रूपांतरित हो जाते हैं। विचारधारा और विचार का महज कम्युनिकेशन में रूपान्तरण एक बड़ा फिनोमिना है। जिनकी तरीके से देखने की आदत है वे इस तथ्य को अभी भी पकड़ नहीं पा रहे हैं।

इंटरनेट के समानान्तर सैटेलाइट टीवी और मोबाइल कम्युनिकेशन का भी तेजी से विस्तार हुआ है। नई पूंजीवादी संचार क्रांति समाज को स्मार्ट मोबाइल क्रांति की ओर धकेल रही है। स्मार्ट मोबाइल के उपभोग के मामले में चीन ने सारी दुनिया को पीछे छोड़ दिया है। भारत में बिजली की कमी के अभाव में रूकी संचार क्रांति निकट भविष्य में स्मार्ट मोबाइल फोन से गति पकड़ेगी ।  स्मार्ट फोन के जरिए हम पीसी-लैपटॉप को भी जल्द ही पीछे छोड़ जाएंगे ।

फेसबुक ने अहंकाररहित कम्युनिकेशन को संभव बनाया है। बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा व्यक्ति सहज भाव से अपनी बात कहकर खिसक लेता है। अहंकाररहित कम्युनिकेशन जीवन का परमानंद है।

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