विचार / लेख
अभिनव गोयल
पिछले कई दिनों से एक ख़बर की चर्चा हर जगह है और वह है प्रयागराज में हुआ अतीक हत्याकांड।
लेकिन इसके इतर राजनीतिक गलियारों में एक इंटरव्यू को लेकर भी तीखे सवाल जवाब हो रहे हैं। हालांकि यह खबर देश के बड़े अखबारों और मेन स्ट्रीम मीडिया से गायब-सी रही।
विपक्षी पार्टियां इसके सहारे केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने में जुटी हैं। इस इंटरव्यू को अब तक यू-ट्यूब पर 35 लाख से ज़्यादा लोग देख चुके हैं।
यह इंटरव्यू, चार राज्यों के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने न्यूज वेबसाइट ‘द वायर’ के वरिष्ठ पत्रकार करण थापर को दिया है।
इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक ने पुलवामा हमले के लिए न सिर्फ केंद्र सरकार को जि़म्मेदार बताया बल्कि भ्रष्टाचार को लेकर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं।
यह पहली बार है जब भारतीय जनता पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता और कई अहम पदों पर रहे व्यक्ति ने प्रधानमंत्री पर सीधा हमला बोला है।
इन आरोपों पर अब तक भारतीय जनता पार्टी ने किसी तरह की कोई सफाई नहीं दी है। हालांकि इस इंटरव्यू के बाद सत्यपाल मलिक पर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
यह पहली बार नहीं है जब सत्यपाल मलिक के बयानों को लेकर हंगामा हो रहा है। इससे पहले भी कई ऐसे मौके आए हैं जब उनके बयानों से, उनकी ही पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।
सवाल है कि आखिर सत्यापाल मलिक ऐसा क्यों कर रहे हैं? वो भी ऐसी पार्टी के खिलाफ जिसने उन्हें न सिर्फ लोकसभा चुनाव का टिकट दिया, बल्कि पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष से लेकर चार राज्यों के राज्यपाल का पद तक दिया।
क्या इसमें उनके राजनीतिक हित जुड़े हुए हैं? उनके कहे का कितना वजऩ है? वे अपने पीछे जिस जाट समाज और किसानों के समर्थन का दावा करते हैं? आखऱि उनके दावे में कितना दम है? इन्हीं सबको जानने के लिए ज़रूरी है कि सबसे पहले यह समझा कि सत्यपाल मलिक कौन हैं?
उनके पचास साल लंबे सियासी सफऱ पर नजर दौड़ाने से आपके लिए इन सवालों के जवाब तलाशना आसान होगा।
सियासी सफर में कई पार्टियां बदलीं
सत्यपाल मलिक ख़ुद को लोहियावादी बताते हैं। लोहिया के समाजवाद से प्रभावित होकर उन्होंने छात्र नेता के रूप में मेरठ कॉलेज छात्रसंघ से शुरुआत की।
उनका जन्म उत्तर प्रदेश में बागपत के हिसावदा गांव में 24 जुलाई 1946 को हुआ। वे बताते हैं कि दो साल की उम्र में ही उनके पिता का निधन हो गया था।
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री बताते हैं कि सत्यपाल मलिक को राजनीति में लाने का काम चौधरी चरण सिंह ने किया। 1974 में चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल की टिकट पर बागपत विधानसभा का चुनाव लड़ा और महज 28 साल की उम्र में विधानसभा पहुंच गए।
पहला विधानसभा चुनाव सत्यपाल मलिक ने करीब दस हजार वोटों के अंतर से जीता था।
1980 में लोकदल पार्टी से राज्यसभा पहुंचे, लेकिन चार साल बाद ही उन्होंने उस कांग्रेस का दामन थाम लिया जिसके शासनकाल में लगी इमरजेंसी का विरोध करने पर वो जेल गए थे।
1987 में राजीव गांधी पर बोफोर्स घोटाले का आरोप लगा, जिसके खिलाफ वीपी सिंह ने मोर्चा खोल दिया और इसमें सत्यपाल मलिक ने उनका साथ दिया। कांग्रेस छोड़ सत्यपाल मलिक ने जन मोर्चा पार्टी बनाई जो साल 1988 में जनता दल में मिल गई।
1989 में देश में आम चुनाव हुए। सत्यपाल मलिक ने यूपी की अलीगढ़ सीट से चुनाव लड़ा और पहली बार लोकसभा पहुंचे।
1996 में उन्होंने समाजवादी पार्टी ज्वाइन की और अलीगढ़ से चुनाव लड़ा।
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, ‘जाट नेता के तौर पर अलीगढ़ में उनकी बुरी हार हुई। वे चौथे नंबर पर रहे। उन्हें कऱीब 40 हज़ार वोट पड़े, जबकि जीतने वाले उम्मीदवार को कऱीब दो लाख तीस हजार वोट पड़े थे। इस चुनाव ने यह बताया कि अब वे बड़े जाट नेता नहीं रहे हैं।’
करीब तीस साल सत्यपाल मलिक मौटे तौर पर समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे, लेकिन 2004 में वे बीजेपी में शामिल हुए और पार्टी की टिकट पर चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह के खिलाफ बागपत से चुनाव लड़े।
यह चुनाव भी उनकी जाट नेता की अस्मिता के लिए एक परीक्षा की तरह था, लेकिन इसमें वे फेल साबित हुए। अजीत सिंह को करीब तीन लाख पचास हजार वोट पड़े तो तीसरे नबंर पर रहे सत्यपाल मलिक को करीब एक लाख वोट मिले।
2005-2006 में उन्हें उत्तर प्रदेश बीजेपी का उपाध्यक्ष, 2009 में भारतीय जनता पार्टी के किसान मोर्चा का ऑल इंडिया इंचार्ज बनाया गया।
हेमंत अत्री कहते हैं, ‘बीजेपी ने हार के बावजूद सत्यपाल मलिक को अपने साथ रखा। 2012 में उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। ये वो दौर था जब बीजेपी उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन तलाश रही थी और उसे एक जाट लीडर की तलाश थी।’
‘उसी समय सत्यपाल मलिक का नरेंद्र मोदी के साथ व्यक्तिगत संवाद हुआ और संबंध बना।’
2014 में बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर आए और 30 सितंबर 2017 को उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया।
करीब 11 महीने बिहार का राज्यपाल रहने के बाद अगस्त 2018 में उन्हें जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
सत्यपाल मलिक के कार्यकाल में ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भंग हुई, जिसके बाद राज्य का सारा एडमिनिस्ट्रेशन उनके हाथ में आ गया। इसी दौरान पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया।
नवंबर 2019 से अगस्त 2020 तक वे गोवा के और अगस्त 2020 से अक्टूबर 2022 तक वे मेघालय के राज्यपाल रहे।
इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी पर लगाए गंभीर आरोप
सत्यपाल मलिक कई सालों से सरकार की लाइन से हटकर बयान देते आए हैं, लेकिन 14 अप्रैल को न्यूज़ वेबसाइट द वायर को दिए इंटरव्यू में उन्होंने विस्तार से उन घटनाओं को जि़क्र किया जो न सिफऱ् केंद्र की बीजेपी सरकार बल्कि प्रधानमंत्री के लिए भी मुश्किलें पैदा कर सकते हैं।
‘केंद्र की लापरवाही था पुलवामा हमला’
14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में विस्फोटकों से भरी गाड़ी, सीआरपीएफ़ के 70 बसों के काफिले में चल रही एक बस से भिड़ा दी गई थी। इस आत्मघाती हमले में 40 जवानों की मौत हुई थी।
इस हमले के लिए सत्यपाल मलिक ने केंद्र सरकार को जि़म्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि जम्मू से श्रीनगर पहुंचने के लिए सीआरपीएफ़ को पांच एयरक्राफ्ट की जरूरत थी। उन्होंने गृह मंत्रालय से एयरक्राफ्ट मांगे थे, लेकिन उन्हें नहीं दिए गए। हम एयरक्राफ्ट दे देते तो ये हमला नहीं होता क्योंकि इतना बड़ा काफिला सडक़ से नहीं जाता।
सत्यपाल मलिक ने इंटरव्यू में कहा कि जब यह जानकारी उन्होंने प्रधानमंत्री को दी और अपनी गलती के बारे में बताया तो पीएम ने कहा, ‘आप इस पर चुप रहिए।’
17 फरवरी को दैनिक भास्कर के वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री ने अपनी रिपोर्ट में भी इस बात का जि़क्र किया था।
उन्होंने लिखा था, ‘चार फरवरी से बर्फबारी के कारण जम्मू में फंसे सीआरपीएफ के जवानों को भी हवाई मार्ग से श्रीनगर पहुंचने के लिए मंज़ूरी मांगी गई थी।’
‘सीआरपीएफ ने इसका प्रस्ताव बनाकर मुख्यालय भेजा था, जहां से इसे गृह मंत्रालय को भेजा गया, लेकिन कोई जवाब नहीं आने पर सीआरपीएफ का काफि़ला 14 फऱवरी को साढ़े तीन बजे जम्मू से श्रीनगर के लिए रवाना हो गया और दोपहर 3।15 बजे आतंकी हमला हो गया।’
पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, ‘अगर सत्यपाल मलिक पुलवामा हादसे के समय ये सब कहने का साहस जुटा पाते तो वे वीपी सिंह वाली भूमिका में आ जाते, लेकिन उन्होंने दो शीर्ष लोगों के कहने से चुप रहना बेहतर समझा और देश अभी तक क़ीमत चुका रहा है।’
वे कहते हैं, ‘उन्होंने कहा कि पुलवामा हमले के वक्त कनेक्टिंग रोड पर जवान तैनात नहीं थे। उस समय पुलिस तो उनके ही अंदर थी। उन्हें इसकी जानकारी क्यों नहीं थी। अगर थी तो इस पर उन्होंने क्या कार्रवाई की?, किस तरह की जांच बाद में उन्होंने बिठाई।’
‘पाकिस्तान पर आरोप शिफ्ट किए’
उन्होंने कहा, ‘मुझे लग गया था कि ये सारी जिम्मेदारी पाकिस्तान की तरफ जानी है तो चुप रहिए।’
11 दिन बाद भारत सरकार ने दावा किया कि पुलवामा हमले का बदला लेते हुए भारतीय वायु सेना ने नियंत्रण रेखा पार कर, पाकिस्तान के शहर बालाकोट में आतंकवादी संगठन के ‘प्रशिक्षण शिविरों’ के ठिकानों पर सिलसिलेवार ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की।
दो महीने बाद यानी अप्रैल 2019 में देश में होने वाले आम चुनाव में बीजेपी ने बालाकोट स्ट्राइक को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया। मंचों से बालाकोट स्ट्राइक का नाम बार-बार सुनाई दिया।
मई 2019 में आम चुनाव के जब नतीजे आए तो भारतीय जनता पार्टी ने अपनी जीत को दोहराते हुए 300 का आंकड़ा पार किया और बहुमत से केंद्र में अपनी सरकार बनाई।
इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक ने इशारों ही इशारों में यह भी आरोप लगाया कि पुलवामा हमले को भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव के लिए इस्तेमाल किया।
पारदर्शिता की कमी
5 अगस्त 2019 को केंद्र की बीजेपी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया था।
इतने बड़े फ़ैसले की जानकारी उन्हें महज़ एक दिन पहले दी गई। उन्होंने बताया, ‘कुछ नहीं पता था, एक दिन पहले शाम को गृह मंत्री का फ़ोन आया कि सत्यपाल मैं एक चि_ी भेज रहा हूं, सुबह अपनी कमेटी से पास करा के 11 बजे से पहले भेज देना।’
वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार अजॉय आशीर्वाद कहते हैं, ‘सत्यपाल मलिक के आरोप एक तरफ़ा हैं, लेकिन केंद्र सरकार का जो ग़ैर पारदर्शी तरीका है वो चिंताजनक है। वे अपने सीनियर लीडर को अंधेरे में रख रहे थे।’
भ्रष्टाचार पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर और गोवा का राज्यपाल रहते हुए उन्होंने कई बार भ्रष्टाचार का मुद्दा प्रधानमंत्री के सामने उठाया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सत्यपाल मलिक ने कहा कि प्रधानमंत्री के कऱीबी लोग उनके पास जम्मू-कश्मीर में दलाली का काम लेकर आए, जिसमें उन्हें 300 करोड़ रुपये का ऑफऱ था। इस काम को करने से उन्होंने मना कर दिया।
सत्यपाल मलिक ने कहा, ‘मैं सेफली कह सकता हूं कि प्रधानमंत्री जी को करप्शन से कोई बहुत नफरत नहीं है।’
वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार अजॉय आशीर्वाद कहते हैं, ‘ये गंभीर आरोप हैं जिसे बीजेपी के एक सीनियर नेता लगा रहे हैं। एक ऐसे व्यक्ति जो सिस्टम के अंदर के हैं और चार राज्यों के राज्यपाल रह चुके हैं। अगर यूरोप में ऐसा इंटरव्यू सामने आता तो प्रधानमंत्री का इस्तीफा हो जाता।’
वहीं वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, ‘सत्यपाल मलिक जी को कथित पेशकेश की बात को रिकॉर्ड पर लेना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं किया।’
पहले भी दे चुके हैं विवादित बयान
22 अगस्त 2022- इस वक्त सत्यपाल मलिक मेघालय के राज्यपाल थे।
बागपत के खेकड़ा में आयोजित किसान मजदूर सभा में उन्होंने कहा, ‘दिल्ली की सीमाओं पर 700 किसान मर गए थे। मुझे कुत्ते ने नहीं काटा था कि मैं गवर्नर होते हुए पंगा लूं, लेकिन जब 700 लोग मर गए तब भी दिल्ली से एक चि_ी संवेदना की कहीं नहीं गई। कुतिया भी मरती है तो प्रधानमंत्री उसके प्रति संवेदना भेजते हैं।’
‘देर से उनको बात समझ आई। फिर तो माफी मांगकर तीनों क़ानून वापस लिए गए, लेकिन तबीयत में तभ भी ईमानदारी नहीं थी।’
जनवरी, 2022- ‘मैं किसानों के मामले में जब प्रधानमंत्री से मिलने गया तो मेरी पांच मिनट में लड़ाई हो गई। वो बहुत घमंड में थे। जब मैंने उनसे कहा कि हमारे पांच सौ लोग मर गए हैं।’
‘जब कुतिया मरती है तो आप चि_ी भेजते हो, तो उन्होंने कहा कि मेरे लिए मरे हैं? मैंने कहा कि आपके लिए तो मरे हैं। जो आप राजा बने हुए हो उनकी वजह से।’
‘उन्होंने कहा कि तुम अमित शाह से मिलो। मैं अमित शाह से मिला। उन्होंने कहा कि इसकी अक्ल मार रखी है लोगों ने। तुम बेफिक्र रहो, मिलते रहो। ये किसी न किसी दिन समझ में आ जाएगा।’
हालांकि बाद में वे अपने इस बयान से पलट गए। करण थापर के साथ इंटरव्यू में भी उन्होंने बात को दोहराते हुए कहा, ‘अमित शाह वाला बयान मैंने बिल्कुल गलत कहा।’
‘अमित शाह ने मुझसे कुछ नहीं कहा था कि इनकी अकल मारी हुई है या कुछ’ उसको मैं वापस लेता हूं। उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा। मैंने गलत कहा। ये मेरी गलती थी।’
जनवरी 2019- ‘जम्मू-कश्मीर भी देश के दूसरों राज्यों की तरह है। यहां कोई कत्लेआम नहीं चल रहा है। जितनी मौतें कश्मीर में एक हफ्ते में होती है उतने मर्डर तो पटना में एक दिन में हो जाते हैं। कश्मीर में अब पत्थरबाजी और आतंकी संगठनों में लडक़ों का शामिल होना बंद हो गया है।’
‘यहां लडक़े खुलेआम हथियार लेकर घूमते हैं और राज्य के पुलिसकर्मियों को मारते हैं। आप उन्हें क्यों मार रहे हैं। अगर मारना ही है तो उन्हें मारो जिन्होंने आपके देश और कश्मीर को लूटा है। क्या आपने ऐसे किसी शख्स को मारा है?’
जून, 2022 में अग्निपथ योजना का विरोध
उन्होंने कहा, ‘अग्निपथ योजना हमारी फौजों को, जवानों को नीचा दिखाने का काम करेगी। उनका करियर ख़त्म कर देगी। चार साल में छह महीने ट्रेनिंग करेंगे। छह महीने छुट्टी पर रहेंगे।’
‘तीन साल वो सिर्फ नौकरी करेंगे तो फिर कहां जाएंगे। उनकी तो शादी भी नहीं होगी। उनमें देश के लिए मरने के लिए कैसे जज़्बा होगा? ये बहुत ग़लत किया है, इसे जल्द वापस लेना चाहिए।’
मार्च, 2020- गवर्नर दारू पीता है
उत्तर प्रदेश में बागपत के दौरे पर एक जनसभा में उन्होंने कहा था, ‘गवर्नर का कोई काम नहीं होता। कश्मीर में जो गवर्नर होता है, वो दारू पीता है और गोल्फ़ खेलता है।
हमलावर होने के पीछे क्या है वजह?
सत्यपाल मलिक की सियासत को कऱीब से देखने वाले लोगों का कहना है कि वे मिज़ाज से मुंहफट आदमी हैं और उनके दिल में जो होता है वो कह देते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार अजॉय आशीर्वाद कहते हैं, ‘ऐसा पहली बार नहीं है कि उन्होंने अब कैमरे पर आकर बयान दिया है। जब वे गोवा के राज्यपाल थे उस समय पद पर रहते हुए भी उन्होंने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था।’
वहीं दूसरी तरफ वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, ‘आज आरटीआई का समय है। सत्यपाल मलिक जब पद पर थे तो इन बातों को कहीं रिकॉर्ड पर ला सकते थे। उस पर आने वाले समय में जांच हो सकती थी, लेकिन आपने एक भी काम ऐसा नहीं किया। जब 300 करोड़ रुपये के करप्शन की बात सामने आई तो वे उन लोगों को वहीं गिरफ़्तार करवा सकते थे।’
वे कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि उन्हें भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लडऩा था, लेकिन उनकी बातों को कोई सुन नहीं रहा था और जिस तरह से राजभवन में हस्तक्षेप हो रहा था उससे उनका पद से मोहभंग हो गया।’
कितने प्रभावशाली हैं सत्यपाल मलिक
सत्यपाल मलिक दावा करते हैं कि उनके पीछे जाट जाति और बड़ी संख्या में किसान खड़े हैं और अगर बीजेपी ने उन्हें परेशान किया तो पार्टी की दुर्गति हो जाएगी।
क्या सच में ऐसा है? पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आने वाले सत्यपाल मलिक की ज़मीन पर कितनी पकड़ है।
वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला कहते हैं, ‘किसान आंदोलन के समय उन्होंने कहा था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक बड़ा फेरबदल होने जा रहा है, लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ। बजाय इसके कि समाजवादी पार्टी और किसानों की पार्टी माने जाने वाली राष्ट्रीय लोकदल के बीच मजबूत गठबंधन था।’
वे कहते हैं, ‘सत्यपाल मलिक जाट और किसान नेता के तौर पर ख़ुद की ब्रांडिंग कर रहे हैं।’
उनका मानना है कि अगर सत्यपाल मलिक बिना आरएलडी की मदद के बागपत से चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें कुछ हज़ार वोट ही मिलेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, ‘लोग इनका भाषण तो ज़रूर सुन लेंगे, लेकिन ये उन्हें वोट में कन्वर्ट कर पाएं ऐसा मुश्किल है।’ (bbc.com)