विचार / लेख

कानून के ढीले हाथ
25-Apr-2023 7:29 PM
कानून के ढीले हाथ

- ध्रुव गुप्त
माफिया अतीक और अशरफ़ की पुलिस हिरासत में हत्या और उत्तर प्रदेश में लगातार चल रहे पुलिस मुठभेड़ों को लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में गज़ब का प्रायोजित शोर है। इसपर ध्यान न दें तब भी अपराधी कितना भी बड़ा हो, उसका हश्र देर-सबेर ऐसा ही होता है। या तो वे पुलिस की गोली से मरते हैं या अपने प्रतिद्वंद्वी गिरोहों के शिकार बनते हैं। मरना तो उन्हें कानून के हाथों फांसी चढक़र ही चाहिए, लेकिन ऐसा कम होता है कि वे कानून द्वारा अपने अंजाम तक पहुंचा दिए जाएं। इस अराजकता के लिए देश में कानून की शिथिलता ही ज्यादा जिम्मेदार है। अतीक को हो लीजिए। लगभग चार दशकों के आपराधिक जीवन और सैकड़ों मुकदमों के बावजूद उसे अबतक मात्र एक केस में सज़ा मिली है। वह भी अभी कुछ ही दिनों पहले। कानून के इस ढीलेपन का फ़ायदा उठाकर वह वर्षों तक जेल से  ही अपने आपराधिक साम्राज्य का विस्तार करता रहा। अब उसके तीनों हत्यारें भी जेल जाकर वही सब करेंगे। न्यायसंगत यह होता कि इन तीनों को घटना के समय ही पुलिस द्वारा मार डाला जाता, लेकिन बड़े रहस्यमय तरीके से पुलिस अपनी अभिरक्षा में अतीक और अशरफ़ की हत्याओं की मूकदर्शक बनी रही।


यह तो एक उदाहरण मात्र है। देश में नृशंस अपराध के असंख्य मामले फैसले के इंतज़ार में दशकों से फाइलों की धूल फांक रहे हैं। उनके अपराधी जेल से ही या बेल पर बाहर निकलकर आतंक के जाल फैलाए हुए हैं। देश में कानून की सत्ता स्थापित करने के लिए कानून को घिसटना नहीं, दौडऩा सीखना होगा। कम से कम नृशंस और संगठित अपराधोंके ट्रायल में संबंधित न्यायालयों को तेजी लानी ही होगी। उनकी शिथिलता की सज़ा देश का आम नागरिक क्यों भोगे ? जबतक कानून के हाथ लंबे ही नहीं, मजबूत और तेजरफ्तार भी नहीं होंगे, तबतक पुलिस और अपराधियों द्वारा इसी तरह उसकी धज्जियां उड़ेंगी और बहुसंख्यक लोगों द्वारा तालियां बजाकर उसका समर्थन भी किया जाता रहेगा। 


यह सोच कि कानून के राज्य की स्थापना कानून तोडक़र की जा सकती है, हमें जंगल राज की तरफ धकेल देगी। ज़रूरी यह है कि कानून में समय के अनुरूप सुधार कर उसे ज्यादा प्रभावी और गतिशील बनाया जाए। 

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