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कॉमेडियन कुणाल कामरा बनाम भारत सरकार
27-Apr-2023 3:12 PM
कॉमेडियन कुणाल कामरा  बनाम भारत सरकार

INSTAGRAM/KUNALKAMRA

राघवेंद्र राव

क्या केंद्र सरकार के बनाए गए ‘फैक्ट चेक यूनिट’ को ये अधिकार देना सही है कि वो केंद्र सरकार के काम से जुड़ी किसी भी ख़बर या जानकारी को फर्जी या भ्रामक करार देकर सोशल मीडिया से हटवा सके?

इस मामले की सुनवाई गुरुवार 27 अप्रैल यानी गुरुवार को बॉम्बे हाई कोर्ट में होनी है। इसी मसले को बॉम्बे हाई कोर्ट के सामने उठाते हुए स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने आईटी रूल्स में हाल में किए गए उन संशोधनों को रद्द करने की मांग की है, जिनके मुताबिक केंद्र सरकार के फैक्ट चेक यूनिट को यह अधिकार दिया गया है।

अपनी याचिका में कामरा ने कहा है कि एक राजनीतिक व्यंग्यकार के रूप में वो केंद्र सरकार के कार्यों और उसके कर्मचारियों के बारे में टिप्पणी करते हैं और अपने काम को साझा करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से इंटरनेट की व्यापक पहुंच पर निर्भर रहते हैं।

कामरा के मुताबिक, केंद्र सरकार द्वारा नामित कोई विशेष इकाई अगर उनके काम को मनमाने ढंग से फ़ैक्ट चेक के अधीन कर देती है, तो उनकी राजनीतिक व्यंग्य करने की क्षमता अनुचित तरीके से कम हो जाएगी।

इस याचिका में कामरा ने कहा है कि व्यंग्य का फैक्ट-चेक नहीं किया जा सकता और अगर केंद्र सरकार व्यंग्य की जांच करे और उसे फर्जी या भ्रामक बता कर सेंसर कर दे तो राजनीतिक व्यंग्य का उद्देश्य पूरी तरह से विफल हो जाएगा।

इस मामले की 24 अप्रैल को हुई सुनवाई में हाई कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में ऐसा नहीं लगता कि इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी नियमों में किए संशोधन हास्य और व्यंग्य के जरिये सरकार की निष्पक्ष आलोचना को संरक्षण देते हैं। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि नए संशोधनों को चुनौती देने वाली कामरा की याचिका विचार करने योग्य है। इस मामले की सुनवाई गुरुवार 27 अप्रैल को तय की गई है।

क्या है आईटी रूल्स में नया संशोधन?

6 अप्रैल को सरकार ने आईटी रूल्स, 2021 में संशोधन करते हुए सोशल मीडिया बिचौलियों के लिए ये अनिवार्य कर दिया था कि वे केंद्र सरकार के किसी भी काम के संबंध में फर्जी, झूठी या भ्रामक जानकारी को प्रकाशित, साझा या होस्ट न करें।

सरकार ने कहा था कि फर्जी, झूठी और भ्रामक जानकारी की पहचान केंद्र वो फैक्ट चेक यूनिट करेगा जिसकी अधिसूचना केंद्र सरकार करेगी।

साथ ही सरकार ने कहा कि मौजूदा आईटी नियमों में पहले से ही बिचौलियों को ऐसी किसी भी जानकारी को होस्ट, प्रकाशित या साझा नहीं करने के लिए उचित प्रयास करने की आवश्यकता है जो स्पष्ट रूप से गलत और असत्य या प्रकृति में भ्रामक हैं।

संशोधनों को अधिसूचित करते हुए सरकार का कहना था कि ये संशोधन खुले, सुरक्षित, विश्वसनीय और जवाबदेह इंटरनेट बनाने के लिए किए जा रहे हैं।

सरकार का क्या कहना है?

सरकार ने कुणाल कामरा की याचिका को दुर्भावनापूर्ण बताते हुए कहा है कि ये याचिका नए नियमों से जुड़े काल्पनिक परिणामों की बात करती है और ये नहीं बताती कि इन नियमों की वजह से याचिकाकर्ता को क्या नुकसान हुआ है।

सरकार ने इस बात का भी जिक्र किया है कि अतीत में कामरा पर सुप्रीम कोर्ट और उसके न्यायधीशों पर ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ में’ तिरस्कारपूर्ण ट्वीट करने के मामले में आपराधिक अवमानना के आरोप भी लगे हैं।

सरकार का कहना है कि नया नियम व्यापक जनहित में बनाया गया है और ये नियम सबूत पर आधारित तथ्य-जांच की एक प्रणाली स्थापित करता है, जिससे ऐसी फर्जी या भ्रामक जानकारी से निपटने के लिए एक तंत्र तैयार किया जा सके जिनकी वजह से अतीत में दंगे, मॉब लिंचिंग और अन्य जघन्य अपराध हुए हों या जिनमें महिलाओं की गरिमा और बच्चों के यौन शोषण से संबंधित मुद्दे शामिल हैं।

सरकार ने अदालत में कहा है कि फैक्ट चेक यूनिट की भूमिका केंद्र सरकार की गतिविधियों तक सीमित रहेगी, जिसमें नीतियों, कार्यक्रमों, अधिसूचनाओं, नियमों, विनियमों और उनके कार्यान्वयन के बारे में जानकारी शामिल हो सकती है।

सरकार के मुताबिक फैक्ट चेक यूनिट केवल फज़ऱ्ी या झूठी या भ्रामक जानकारी की पहचान कर सकती है, न कि किसी राय, व्यंग्य या कलात्मक छाप की। साथ ही सरकार का कहना है कि इस प्रावधान को शुरू करने के पीछे उसका उद्देश्य स्पष्ट है और इसमें किसी किस्म की मनमानी शामिल नहीं है।

विवादित संशोधन का विरोध

संजय राजौरा

नए आईटी रूल्स में फर्जी खबरों और फैक्ट चेक यूनिट से संबंधित संशोधन के लागू होने के बाद मीडिया सेंसरशिप की आशंकाएं जताई गई हैं और इस संशोधन का विरोध भी हुआ है।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस मामले को चिंताजनक बताते हुए कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी मंत्रालय ने बिना किसी सार्थक परामर्श के इस संशोधन को अधिसूचित किया है।

इस संशोधन को सहज न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए गिल्ड ने कहा कि ये सेंसरशिप के समान है और इस तरह के कठोर नियमों की अधिसूचना खेदजनक है। साथ ही गिल्ड ने मंत्रालय से इस अधिसूचना को वापस लेने और मीडिया संगठनों और प्रेस निकायों के साथ परामर्श करने का आग्रह भी किया है।

अतीत में न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजि़टल एसोसिएशन (एनबीडीए) जैसी संस्थाएं इस प्रस्तावित संशोधन पर अपनी चिंता जता चुकी हैं। एनबीडीए ने यहाँ तक कहा है कि ये संशोधन लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का गला घोंटने का काम करेगा और इसे वापस लिया जाना चाहिए।

‘लोगों की आवाज दबाने की कोशिश’

मंजुल एक जाने-माने राजनैतिक कार्टूनिस्ट हैं जो कई नामचीन प्रकाशनों के साथ काम कर चुके हैं।

उनका कहना है कि खतरा नियमों और क़ानूनों से नहीं होता, खतरा उनसे होता है जो उन नियमों का पालन करवा रहे हों। वे कहते हैं कि अगर कानून का पालन करवाने वाला जिसकी लाठी उसकी भैंस के सिद्धांत पर काम कर रहा हो तो कानून बहुत खतरनाक साबित हो सकता है।

संशोधित आईटी रुल्स के बारे में मंजुल कहते हैं, ‘ये कानून, जो पहली नजर में ही, सरकार के पक्ष में और जनता के विपक्ष में खड़ा दिखाई दे रहा है, बेहद खतरनाक तरीके से जनता के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है, राजद्रोह या यूएपीए की तर्ज पर।’

मंजुल का मानना है कि सरकार वो सब कुछ नियंत्रित करना चाहती है जिसके माध्यम से उसकी आलोचना की जा सकती है। वे कहते है, ‘सरकारें हमेशा ये चाहती हैं कोई भी जगहें जहाँ से लोगों को आवाज मिलती है, उन पर पूरा नियंत्रण कर लिया जाए।’

मंजुल कहते हैं कि एक कार्टूनिस्ट के तौर पर वे चिंतित नहीं हैं ‘क्योंकि कार्टून की हत्या तो पहले ही की जा चुकी है।’ इस बात को समझाते हुए वह कहते हैं कि सरकार के शीर्ष लोगों पर कार्टून बनना लगभग खत्म हो चुका है।’

वह कहते हैं, ‘इस तरह के संशोधन किसी के भी खिलाफ इस्तेमाल किए जा सकते हैं। इन संशोधनों की वजह से केवल स्टैंड-अप कॉमेडियनों को ही डर नहीं है। ये डर आम आदमी का है। ऐसा लगता है कि सरकार कहना चाह रही है कि सही सिर्फ वो है जो वो कह रही है, बाकी कुछ सही नहीं है। इसी बात को अब इंटरनेट के सन्दर्भ में लाया जा रहा है।’

‘ऐसे फैसलों से लडऩे की जरुरत’

संजय राजौरा एक स्टैंड-अप कॉमेडियन हैं। उनका कहना है कि ‘सरकार के इस तरह के फ़ैसलों से लडऩे की जरूरत है’ लेकिन साथ ही ‘व्यंग्य के स्तर को और ऊपर ले जाना होगा।’

वे कहते हैं, ‘व्यंग्य की सबसे बड़ी ताक़त ये होती है कि जब उस पर पाबंदी लगाई जाए तो वो और भी निखरता है। जब ज़ुल्म होता है, तभी कहना होता है कि ज़ुल्म हो रहा है। जुल्म बुद्धिमान नहीं होता, व्यंग्य बुद्धिमान होता है। इसलिए अब ये व्यंग्य करने वालों को ये देखना पड़ेगा कि वो अपने व्यंग्य को इतना परिष्कृत कर लें कि जुल्म करने वाले को पता भी चल जाए कि उसकी बेइज़्ज़ती हो रही है लेकिन वो उसके बारे में कुछ कर भी न सके।’ (बाकी पेज 8 पर)

सरकार के बढ़ते नियंत्रण से जुड़े आरोपों पर संजय राजौरा कहते हैं, ‘जब लोग अपने दोस्तों से बात करते हैं तो क्या सरकार वहां मौजूद होती है? लोगों के पास हमेशा बोलने का मौक़ा होता है। सरकार हर जगह नहीं है लेकिन लोगों के दिमाग़ में ये भरा जा रहा है कि सरकार हर जगह है। इसी वजह से लोगों ने बोलना बंद कर दिया है या सेल्फ-सेंसरशिप कर ली है, लिखना बंद कर दिया और लोग जेल जाने से डरने लगे हैं।’

‘फर्जी खबरों में लगातार बढ़ोतरी’

केंद्र सरकार का कहना है कि उसने दिसंबर 2019 में अपनी फ़ैक्ट चेक यूनिट शुरू की थी और इस साल 16 अप्रैल तक फ़ैक्ट चेक यूनिट ने जनता के 39,266 प्रश्नों का जवाब दिया है और सोशल मीडिया पर 1,223 फैक्ट चेक जारी किए हैं।

सरकार का कहना है कि पिछले तीन वर्षों में जनहित में तथ्यों की जांच की एक मज़बूत व्यवस्था स्थापित की गई है।

सरकार ने यह भी कहा है कि फ़ैक्ट चेक यूनिट द्वारा फर्जी या भ्रामक सूचनाओं का भंडाफोड़ करने के मामलों की संख्या समय के साथ बढ़ी है। सरकार के मुताबिक दिसंबर 2022 और जनवरी 2023 के महीनों में फैक्ट चेक यूनिट ने नौ यूट्यूब चैनलों द्वारा प्रकाशित सामग्री के लिए 150 से अधिक फैक्ट चेक जारी किए।

जानकारों की मानें तो सरकार का मक़सद अपनी नीतियों के बारे में ज्यादा जानकारी देना या प्रचार करना है, न कि फैक्ट चेक करना। ये बात भी समय-समय पर कही जाती रही है कि अगर सरकार फैक्ट-चेकिंग करवाना चाहती है तो किसी स्वतंत्र इंडस्ट्री बॉडी का गठन किया जाना चाहिए जिसमें पब्लिक और प्राइवेट सेक्टरों की भागीदारी हो और वो बॉडी ये फैसला करे कि क्या फर्जी है और क्या नहीं। (bbc.com)

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