विचार / लेख

गांधी और हम
02-Oct-2023 10:48 PM
गांधी और हम

-डॉ. आर.के. पालीवाल
इस लेख में हम का तात्पर्य हमारे संविधान में उल्लिखित उन सब ‘हम भारत के नागरिकों’ से है जिनके लिए हमारे प्रबुद्ध और आत्मा की गहराइयों तक ईमानदार एवम राष्ट्रभक्त संविधान निर्माताओं ने हमारा संविधान बनाया था। अधिकांश संविधान निर्माताओं की गांधी और उनके विचारों में अटूट निष्ठा थी, हालांकि उनमें से कुछेक, यथा डॉक्टर भीमराव अंबेडकर आदि, के गांधी से कुछ मुद्दों पर मतभेद भी थे। 

ऐसे  मतभेद थोड़े बहुत वैचारिक थे और कुछ समान विचारों के क्रियान्वयन को लेकर थे। उदाहरण के तौर पर गांवों में अत्यधिक छुआछूत, विकास की कम संभावनाओं एवं सुविधाओं के अभाव के कारण अंबेडकर गांवों के बजाय नगरीय विकास के समर्थक थे। इसी तरह छुआछूत समाप्त होनी चाहिए इस पर तो वे गांधी का समर्थन करते थे लेकिन उनका विश्वास गांधी के हृदय परिर्वतन के बजाय कानूनी प्रावधान से छुआछूत समाप्त करने पर था। 

आजादी के बाद बनी पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार और संविधान निर्माताओं में भले ही कुछ लोग गांधी से पूरी तरह सहमत नही हों लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि तत्कालीन दौर में भारत के अधिकांश नागरिक गांधी को अपने बीच उपस्थित आदर्श विभूति मानते थे और उनके विचारों को अपने जीवन में अधिकाधिक आत्मसात करना चाहते थे।

वर्तमान दौर में भी हम भारत के अधिकांश नागरिकों में गांधी और उनके विचारों के प्रति अदभुत आकर्षण है। और यह आकर्षण हम भारत के नागरिकों तक ही सीमित नहीं है बल्कि विश्व के हर कोने में गांधी विचार को मानने वालों की एक बडी आबादी है जो अपनी अपनी क्षमतानुसार अपने अपने सीमित दायरों में गांधी विचारों को जी रहे हैं और अपनी जीवन शैली और रचनात्मक कार्यों से बहुत से लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। 

सच यह भी है कि विगत कुछ दशकों में भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल युवाओं में गांधी के बारे में विशद जानकारी का अभाव दिखता है। सोशल मीडिया पर गांधी का अंध विरोध करने वाले कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा संचालित दुष्प्रचार के कारण कुछ युवाओं में गांधी के प्रति नफरत का भाव भी दिखाई देता है। यह इसलिए भी संभव हुआ है क्योंकि गांधी विचारों के प्रचार प्रसार के लिए स्थापित संस्थाओं में पदस्थ पदाधिकारी युवा पीढ़ी तक पहुंचने और गांधी विचार को उन तक पहुंचाने में नाकाम रहे हैं।

जहां तक राजनीति और सत्ता से जुड़े लोगों का प्रश्न है, चाहे गांधी के नाम का कई दशक से इस्तेमाल करने वाले राजनीतिक दल हों या गांधी विचार के विपरीत धर्म और जाति विशेष का राग अलापने वाले दल हों, कोई भी राजनीतिक दल गांधी के सत्य, सादगी और ईमानदारी के आसपास नहीं फटकता। यह भी एक बड़ा कारण है कि युवाओं में गांधी के प्रति वैसा सम्मोहन दिखाई नहीं देता जैसा हमारे बुजुर्गों की पीढिय़ों ने देखा है। 

वह तो गांधी का व्यक्तित्व इतना विराट है कि भले ही राजनीतिक दल उनके विचारों को आत्मसात न करें फिर भी हाथी दांत की तरह गांधी का नाम लेना उनकी मजबूरी बन जाती है क्योंकि गांधी आज भी देश और विदेश में भारत की सबसे लोकप्रिय विभूति हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री जब विदेश जाते हैं तो अपना परिचय, मैं गांधी के देश से हूं, कहकर देते हैं। इसी तरह जब कोई विदेशी राजकीय अतिथि भारत आता है तो सरकार उन्हें गांधी से जुड़ी जगहों, यथा राजघाट, साबरमती आश्रम और मणि भवन आदि ले जाकर गौरव की अनुभूति करती है। गांधी की वैश्विक प्रासंगिकता के कारण ही गांधी के जन्म दिन को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व अहिंसा दिवस के रुप में मनाया जाता है।

हम सब जानते हैं कि आज पूरे विश्व के सामने जलवायु परिवर्तन का बड़ा खतरा मंडरा रहा है जिससे मनुष्य सहित पूरी दुनिया की प्रृकृति, जैव विविधता और पर्यावरण पर गंभीर संकट छाया है। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी गांधी की सादगी और प्रकृति से जरुरत भर का लेने का सहज सरल विचार ही एकमात्र समाधान दिखाई देता है। ऐसे कठिन दौर में हम भारत के नागरिकों का यह कर्तव्य बनता है कि हम अपने गांधी नाम के महापुरुष के व्यक्तित्व और विचारों को पहले खुद आत्मसात करें और फिर अपनी जीवन शैली से दूसरों को भी प्रेरित करें। गांधी जयंती पर हमारी गांधी को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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