विचार / लेख

सत्ता के लिए राह भटकती कांग्रेस
03-Oct-2023 4:27 PM
सत्ता के लिए राह भटकती कांग्रेस

डॉ. आर.के. पालीवाल

 आजादी के बाद से पहली बार कांग्रेस लगातार दस साल केंद्र की सत्ता से बाहर रही है। इस बीच उसके बहुत से सत्ता लोलुप नेता भारतीय जनता पार्टी में घुस गए हैं और बहुत से हताश-निराश होकर घर बैठ गए हैं। कांग्रेस हाई कमान को यह उम्मीद नहीं थी कि पांच साल सत्ता में रहने के बाद भारतीय जनता पार्टी 2019 में 2014 से भी प्रचंड बहुमत से वापसी कर लेगी। यही कारण था कि 2018 में आगामी चुनाव के लिए कांग्रेस ने वैसी तैयारी नहीं की थी जैसी प्रमुख विरोधी दल के रुप में करनी चाहिए थी। यह देखना संतोषजनक है कि 2023 में प्रमुख विरोधी राष्ट्रीय दल के रूप में कांग्रेस ज्यादा जोशो खरोश के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही है। लोकतंत्र के लिए यह शुभ लक्षण है कि प्रमुख विरोधी दल सत्ताशीन दल के लिए लगातार चुनौती खड़ी करता रहे।

पिछले साल आंतरिक लोकतंत्र का सम्मान करते हुए कांग्रेस ने अध्यक्ष पद के लिए बाकायदा चुनाव कराया था। इस मामले में वह भारतीय जनता पार्टी से आगे निकली है क्योंकि वहां अध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ बल्कि अपने गृह प्रदेश में सरकार गंवाने वाले जे पी नड्डा को एक्सटेंशन देकर भाजपा ने आंतरिक लोकतंत्र के सिद्धांत का उपहास किया है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की जीत को भी कांग्रेस की मेहनत का नतीजा माना जा सकता है जिसने क्रमश: उत्तर और दक्षिण में कांग्रेस के उखड़े पैर जमाए हैं और भाजपा की दक्षिण विजय की आकांक्षा पर गति अवरोधक लगा दिया है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और संसद में अडानी समूह को चौतरफा लाभ पहुंचाने और गंभीर आरोपों के बावजूद केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच से बचाने और मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर संसद से लेकर सार्वजनिक मंचों पर जोर शोर से उठाकर विरोधी दल का दायित्व निर्वहन किया है।

हालांकि इस दौरान कांग्रेस कुछ बड़ी गलती भी कर रही है। मध्यप्रदेश में सागर से चुनावी शंखनाद करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा है कि हमारी सरकार बनने पर जातीय जनगणना कराई जाएगी ताकि पता चल सके कि किस तबके के लोग ज्यादा गरीब हैं। यह जातिवाद को बढ़ावा देने का प्रतिगामी कदम है। सागर में कुछ दिन पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी आए थे। उन्होंने रविदास का भव्य मंदिर बनाकर दलित समाज का वोट बटोरने की कोशिश की थी।ऐसा लगता है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारने के बाद मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बचाना प्रधान मंत्री और गृह मंत्री अमित शाह के लिए नाक का सवाल बन गया है। यही कारण है कि दुनिया भर की आलोचना और संसद तक में मणिपुर के हालात पर अविश्वास प्रस्ताव के बावजूद प्रधानमंत्री भले ही मणिपुर जाने का समय नहीं निकाल पाए और न उन्होंने दिल्ली की नाक तले गुडग़ांव तक पहुंचे नूंह के दंगों पर मरहम लगाने मेवात का दौरा किया लेकिन मध्य प्रदेश वे इस दौरान कई बार आ चुके हैं।ऐसी ही स्थिति गुजरात विधानसभा चुनावों के समय थी जब प्रधान मंत्री और गृहमंत्री का एक पैर दिल्ली में रहता था और दूसरा गुजरात में। गुजरात दोनों का गृह नगर होने के कारण नाक का बाल बना था। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में मुंह की खाने से भाजपा हाई कमान में पहली बार इतनी बेचैनी देखी जा रही है। कांग्रेस भी कभी बजरंग दल के साथ दिखकर और कभी धीरेंद्र शास्त्री की कथा कराकर भाजपा की नकल कर हिंदू धर्म की संरक्षक दिखने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस के अजीज कुरैशी जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं द्वारा कांग्रेस की धार्मिक नीति की आलोचना भी होने लगी है। कांग्रेस को इन मुद्दों पर संभल कर चलने की जरुरत है। अपनी सैद्धांतिक लीक से हटकर दूसरे की नकल करने से हम न अपना अस्तित्व बचा पाते और न दूसरों की तरह हो पाते। न घर के रह पाते और न घाट के। सर्व धर्म समभाव और जाति और क्षेत्रीयता के ऊपर रहना कांग्रेस के मूल तत्व रहे हैं। उनसे भटकना उचित नहीं है।

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