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माँ और बीवी के बीच फँसी जिंदगी
04-Oct-2023 8:24 PM
माँ और बीवी के बीच फँसी जिंदगी

फोटो : सोशल मीडिया

-सिद्धार्थ ताबिश
एक मित्र ने पर्सनल मैसेज किया है अपने परिवार की समस्या पर और मुझ से सुझाव मांगा है। समस्या बड़ी ही कॉमन है जो भारत के हर मध्यम वर्गीय परिवार की कहानी है। एक मां है, जो अपने बेटे की शादी बड़े अरमान से करती है, फिर बहू से उसकी लड़ाई शुरू होती है। फिर लडक़ा अपनी पत्नी को लेकर दूसरे शहर में चला जाता है जहां उसकी नौकरी होती है.. मां अब और गुस्सा हो जाती है, फिर बच्चा पैदा होने वाला हुआ तब मां लडक़े के पास जाती है। अच्छे और बड़े अस्पताल में बहू को देखकर और गुस्सा हो जाती है। क्योंकि बेटा बहू के ऊपर इतना खर्चा कर रहा है जबकि इस मां ने सारे बच्चे घर में या सरकारी अस्पताल में जन लिए थे.. फिर मां गुस्से में वहां से वापस अपने शहर आ जाती है। अब गुस्सा चरम पर है और मां बेटे का रिश्ता अधर में है।’
भारतीय मध्यम और निम्न वर्गीय मांओं की अब ये स्थिति हो चुकी है कि उनका सिर्फ  बस नहीं चलता है वरना वो अपने बेटे से ही शादी कर लें और किसी भी दूसरी औरत को अपने बेटे की जि़ंदगी में न आने दे.. ये जितनी भी माएं जो ये कहती हैं कि उन्हें अपने बेटे की शादी का अरमान है वो बस ये ‘कहती’ हैं और कहने से उनका कोई मतलब होता नहीं है।

क्योंकि ये भ्रम की परकाष्ठा में जीने वाली औरतें होती हैं। सबसे पहला धक्का इन मांओं को तब लगता है जब उनके बेटे की शादी होती है और बेटा अपनी पत्नी के साथ दूसरे कमरे में अकेले सोने लगता है.. नई नई शादी होती है और लडक़ा दिन रात अपनी पत्नी के साथ अकेले कमरे में बिताने लगता है। बस इन मांओं की बेचैनी शुरू हो जाती है क्योंकि जिस लडक़े का उठने बैठने और नित्य क्रिया से लेकर सब कुछ ये मां कंट्रोल करती थी वही लडक़ा बिना इसकी इजाजत लिए अपनी पत्नी के साथ कमरे में पड़ा रहता है। ये पहली शुरुआत होती है मां के जलन की। आप ध्यान देंगे तो पाएंगे कि मां सबसे पहले अपनी बहु के देर से उठने की कलह शुरू करती है। क्योंकि वो चाहती है कि जितनी जल्दी ये औरत उसके बेटे के बिस्तर से बाहर निकल जाए उतना अच्छा भारतीयों मांओं की जलन और कुढन का ये मनोविज्ञान बहुत पेचीदा है.. मैं मनोवैज्ञानिक रूप से अगर इस पर लिखने बैठ गया तो पूरी किताब लिखनी पड़ जाएगी।

तो मेरे मित्र ने इस समस्या का समाधान पूछा था.. तो मेरा जवाब ये है कि ‘इस समस्या का कोई भी समाधान नहीं है’। कोई कितना भी कहे कि समझा बुझा के, मां को समझा के प्यार करके चीज़ संभाल जाएगी, मगर ऐसा होता ही नहीं है। क्योंकि भारतीय माएं अपने बेटों के साथ ‘जीवन संगिनी’ जैसी चिपकी रहती हैं और जीवन में एक समय में सिर्फ एक संगिनी हो सकती है। इसलिए ये रिश्ता कभी बैठता ही नहीं है.. मां को उतना ही अधिकार और प्रेम चाहिए होता है अपने बेटे से जो वो अपनी पत्नी को दे रहा होता है बल्कि उस से भी ज़्यादा इन मांओं को चाहिए होता है।

इसलिए बस एक काम ही हो सकता है इसमें कि अपनी कमान अपने हाथ में लीजिए.. चुपचाप एक ‘जीवन संगिनी’ को अपने जीवन से बाहर कीजिए.. रोने धोने दीजिए। यहां-वहां आपकी बुराई करने दीजिए.. चुपचाप ये सब बस देखिए और अपना जीवन जीना शुरू कीजिए.. अब आप किस ‘जीवन संगिनी’ को अपने जीवन से बाहर करते हैं, ये आप पर निर्भर है। मगर सिर्फ तभी आप सुखी रहेंगे, इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।

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