विचार / लेख
![गरीब देश की तानाशाह की कहानी गरीब देश की तानाशाह की कहानी](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/169660880400_shoes.jpg)
फिलीपींस के मारीकीना शहर के एक संग्रहालय में प्रदर्शित इमेल्डा के हजारों जूतों की जोडिय़ों में से एक
-अशोक पांडेय
जनता के पैसों पर मौज काटने वाले राजनेताओं-तानाशाहों और उनके नजदीकी लोगों का का लंबा इतिहास रहा है। फिलीपीन्स के तानाशाह राष्ट्रपति मारकोस की बीवी इमेल्डा की फिजूलखर्ची का आलम यह था कि उसके वार्डरोब में तीन हजार से ज़्यादा जूतों की जोडिय़ां थीं। इनमें से कई जूतों पर सोने की कारीगरी के अलावा हीरे भी लगे होते थे। उसके पति को राजकीय खजाने से कुल पांच हजार डालर प्रतिवर्ष की तनख्वाह नियत थी लेकिन उसका कोई-कोई जूता चालीस हजार डालर का था।
एक गरीब देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ डालने वाली यह औरत बहुत क्रूर भी थी। एक बार उसे कान फिल्म समारोह में शिरकत करने का मौक़ा मिला। वहां की शान-शौकत देखकर वह इस कदर प्रभावित हुई कि उसने मनीला में कान से भी बड़ा फिल्म समारोह करवाने का मन बना लिया। 1982 में होने वाले इस समारोह में उस जमाने के ढाई करोड़ डॉलर लगने थे। यूनान के ऐतिहासिक पार्थेनन के डिजायन के आधार पर बनाए जा रहे वाले मनीला फिल्म सेंटर का निर्माण बड़ी चुनौती था। चार हजार से ज्यादा मजदूर तीन पालियों में दिन-रात काम कर रहे थे। 18 जनवरी 1982 को फिल्म समारोह का आयोजन होना था।
17 नवम्बर 1981 की सुबह तीन बजे इमारत का ऊपरी हिस्सा ढह गया। सैकड़ों मजदूर गीले सीमेंट के ढेर में गिर गए। लोहे की सीधी खड़ी सरियों की चपेट में आ जाने से कई मजदूर मारे गए।
इमेल्डा को बताया गया कि मरे हुए मजदूरों की देहों को तलाशने में काफी समय लगेगा। उसने आदेश दिया निर्माण कार्य किसी कीमत पर रुकना नहीं चाहिए। कम से कम 169 मजदूर सीमेंट में दफना दिए गए। माना जाता है दफनाए जाते समय उनमें से कुछ जीवित थे।
इस क्रूर कथा की सारी तफसीलें कभी सामने नहीं आईं। पत्रकारों, टीवी कैमरों और एम्बुलेंसों के घटनास्थल पर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मार्शल लॉ लगाकर घटना का सरकारी संस्करण पेश किया गया और सारे गवाह चुप करा दिए गए।निरीह मजदूरों के मकबरे के तौर पर स्थापित हो चुकी उसी मनहूस इमारत में 18 जनवरी 1982 की नियत तारीख को फिल्म समारोह शुरू हुआ।
जानते हैं मनीला फिल्म सेंटर में दिखाई गयी पहली फिल्म कौन सी थी? -रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’!