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कनक तिवारी लिखते हैं- बापू ने कहा प्रधानमंत्री से कहो!
08-Oct-2023 7:11 PM
कनक तिवारी लिखते हैं- बापू ने कहा प्रधानमंत्री से कहो!

2 अक्टूबर अपने जन्मदिन गांधी आए थे। ठीक से याद नहीं रूबरू आए थे या सपने में। मुझे कुछ कह जरूर गए। वह याद कर लिखना चाहता हूं। उन्होंने कहा उनका संदेश प्रधानमंत्री तक पहुंचा दूं। देश में उनके अलावा और कोई नहीं है जो गांधी की बात मानकर कुछ कर सके कि मैंने पहले ही कहा था अंगरेज हुक्कामों की बड़ी बड़ी कोठियों में राष्ट्रपति और मंत्री वगैरह आजादी के बाद नहीं रहें। वहां स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, विश्वविद्यालय, हरिजन आवास वगैरह खोले जाएं। राष्ट्रपति का इतना विशाल महल दुनिया के सबसे अमीर देश अमेरिका के राष्ट्रपति के व्हाइट हाउस से बड़ा है। 

सरकारी बंगलों में मंत्री व्यभिचार और अय्याशी की तोंदें फुला रहे हैं। बकरी का दूध पीने वाले बहुत कमजोर दिखते गांधी कहते प्रधानमंत्री से कहो कि बकरी, चर्खा, गांव, खादी, अंतिम व्यक्ति, सर्वधर्म समभाव, स्वैच्छिक गरीबी, शराबबंदी, हरिजन सेवा, सिविल नाफरमानी और हे राम जैसे शब्दों को सम्मान दें। साथ-साथ चाहें तो सूटबूट की सरकार, कॉरपोरेटी दादागिरी, अर्बन नक्सल, गुजरात मॉडल, असभ्य मंत्री, बुलेट टे्रन, नकली धर्मनिरपेक्षता, मेक इन इंडिया, टुकड़े-टुकड़े गैंग, स्किल इंडिया, स्टार्ट अप, जयश्रीराम, खाते में पंद्रह लाख रुपए, पाकिस्तान जाओ, लव जेहाद वगैरह का एजेंडा कायम रखें। 
गांधी ने अपने संवैधानिक विचारों को एकजाई कर, प्रकाषित करने वर्धा के सेक्सरिया कॉलेज के प्रिंसिपल श्रीमन्नारायण अग्रवाल को मुख्तारनामा दिया था। वहां याद दिलाया गया कि देश में मूल अधिकार उसी को मिलेंगे जो बुनियादी कर्तव्यों का पालन करेगा। यह लेकिन नहीं हुआ। मूल कर्तव्य होगा अगर किसी मनुष्य पर कोई दूसरा जुल्म कर रहा है। तो उसका मुकाबला खुलेआम देह के प्रतिरोध के साथ भी किया जाए। थानेदार जनता पर लाठियां चलाए। मजलूम औरत की शिकायत सुनने के बदले थाने में उसका बलात्कार हो। गुंडे किराएदार से मकान खाली कराएं। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल में फीस की आड़ में छीनाझपटी करें। अस्पताल में वेंटिलेटर से लाश को अनाप-शनाप फीस वसूले बिना नहीं दी जाए। सेठिए गरीब आदिवासियों की बहू बेटियों को कामुकता का शिकार बनाएं। तब गांधी के मुताबिक हर नागरिक को मर्दानगी के साथ प्रतिरोध करना चाहिए। ऐसी हिम्मत करने वालों को सरकार पूरी सुरक्षा दे। इसे राष्ट्रीय कर्तव्य कहा जाए।

गांधी कहते गए किसी कारखाने और उद्योग में मजदूर से आठ घंटे से ज्यादा काम नहीं करने को मजदूर का संवैधानिक अधिकार लिखा जाए। कहा देश मुसीबत, खतरे या परेशानी में हो। तो हर नागरिक को अपनी काबिलियत के अनुसार धन दौलत, सेवा या परिश्रम के जरिए देश सेवा करनी होगी। गांधी शायद यह भी कह गए कि कोरोना जैसी भयानक व्याधि के वक्त अमीरजादों पर जनसेवा के लिए विशेष कोरोना टैक्स लगाना था। 

दुखी बापू ने कहा मेरे सहित जवाहरलाल, सरदार पटेल, जयप्रकाश, लोहिया और न जाने कितने सियासतदां इंग्लैंड वगैरह में पढऩे गए थे। अब सैकड़ों अरबपति परिवार देश का धन लूटकर बैंकों को तबाह कर इंग्लैंड भाग गए हैं। इनकी पूरी संपत्ति जप्त करनी चाहिए। अंगरेजी सरकार के भारतीय मूल के प्रधानमंत्री से बात कर इन्हें वापस बुलाकर देशद्रोह का मुकदमा चलाना चाहिए। गांधी ने कहा संविधान में तो लिखा है सभी कुदरती दौलत जनता की है। उसे जनता के लिए ही इस्तेमाल किया जाएगा। जवाहर की अगुवाई में सब लिखा गया। 

फिर देश में अडानियों, अंबानियोंं, टाटाओं, बिड़लाओं, अग्रवालों, रुइय्याओं, मित्तलों, जिंदलों की फौज कैसे उग गई है। पांच प्रतिशत अमीरों ने देश की तीन चौथाई से ज्यादा दौलत कब्जे में कर ली है। प्रधानमंत्री बहुत मजबूत हैं। वे ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ कहते तो रहते हैं। बापू ने कहा लेकिन ‘सब’ नाम के शब्द का अर्थ समझ में नहीं आ रहा। मैंने पहले ही कहा है वकीलों और जजों के भरोसे देश में कुछ होने वाला नहीं। संविधान से बहुत ताकत लेकर भी ज्यादातर तो कम पढ़ेे-लिखे या डरपोक हैं। अच्छा हो सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के पद के लिए स्थायी रूप से प्रधानमंत्री को ही नामजद कर दिया जाए। न रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। 

सरकारी कर्मचारियों, किसानों, मजदूरों वगैरह के लिए कुछ तो करना चाहिए। हर विदेशी मेहमान को मेरी समाधि पर मत्था टेकने राजघाट भेजा जाता है। इतने ज्यादा लोगों से फकत मिलता, देखता ही रहूंगा। तो देश के बारे में कब सोचूंगा। सरकार किसी को कुचले वह राजघाट आता है। जो मेरी फोटो अपने सिर के ऊपर से उखाडक़र फेंक देते हैं। वे भी मुसीबत आने पर राजघाट ही आते हैं। वे तो आते ही हैं जिन्हें गोडसे मुझसे ज्यादा प्रिय हैं। मुझे उस समाधि से बाहर निकालने के लिए आप प्रधानमंत्री से कहिए। वहां मैं हाउस अरेस्ट हो गया हूं। मैं जनपथ किनारे झोपड़ी में रहना चाहता हूं। मैंने कहा था कि अंगरेजी पार्लियामेंंट वेश्या या नर्तकी है। वह प्रधानमंत्री के इशारे पर नाचती है। वही पार्लियामेंट ले आए। 

प्रधानमंत्री इशारा करते हैं तो संसद सदस्य उनके इशारे पर नाचने लगते हैं। बेहतर होता सब लोग सादगी से रहते। लेकिन सैकड़ों करोड़ों का सेंट्रल विस्टा बना लिया। इस ठसक को जनता के लिए कसक कैसे कहा जा सकता है? मैं कहता था रेलगाड़ी तक का कम से कम इस्तेमाल करें। मैं सोच नहीं सकता था कि साढ़े आठ हजार करोड़ रुपए का हवाई जहाज भी हो सकता है। क्या बुलेट ट्रेन में मुझे मारने वाली बुलंद भी होगी? केवल आर्थिक सहायता मांगने उसमें बैैठकर अमेरिका और यूरोप जाने की क्या जरूरत है। 
मुझे मालूम है श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने भी कहा था विधायिकाओं और सरकारी नौकरी में अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को आबादी के अनुपात में जगह देनी चाहिए। इतनी अच्छी बात तो मैं भी नहीं कह पाया। 

प्रधानमंत्री को याद दिलाओ डॉ. मुखर्जी नेहरू मंत्रिमंडल में थे। तब ही यह बात कही थी। बाद में वे अखिल भारतीय जनसंघ के संस्थापक बने। वे प्रधानमंत्री के सियासी पूर्वज हैं। पूर्वजों की बात मानना पितृपक्ष में बहुत पवित्र है। उससे पूर्वजों का परलोक और वंशजों का यह लोक पवित्र हो जाता है। मैं तो धार्मिक रहा हूं। देखता रहा हूं आसाराम बापू, गुरमीत राम रहीम, रामपाल, श्री श्री रविशंकर, रामदेव, मुरारी बापू, जग्गी वासुदेव जैसे कई सरकार समर्थक साधु सन्यासी बाबा कहलाते भारत को लूटने की जुगत में हैं। 

प्रधानमंत्री खुद को फकीर कहते हैं। झोला उठाकर जाने का भरोसा दिलाते हैं। तो ये बाबा सन्यासी झोला उठाकर क्यों नहीं घूमते। मुझे अमेरिका और यूरोप ने कई बार झांसा दिया था गांधी आप विश्व गुरु बनो। मैं जानता था कि वह पूंजीपति साजिष थी। प्रधानमंत्री से कहो ऐसे फितरती लोगों के चक्कर में आकर विश्व गुरु बनने का दिवास्वप्न छोड़ दें। प्रधानमंत्री का ओहदा जनसेवक का है। जनसेवक विश्व गुरु से कहीं ज्यादा बड़ा पद है। 

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