विचार / लेख
![पुरानी पेंशन योजना आंदोलन पुरानी पेंशन योजना आंदोलन](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1696772880ecdb9a0-6066-11ee-8feb-1f7179b2c49b.jpg)
-डॉ. आर.के. पालीवाल
केन्द्र सरकार ने अपने स्थाई अधिकारियों और कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन कई साल पहले बंद कर दी थी। इस योजना को बंद किए जाने से कर्मचारी संघ लगातार किसी न किसी रुप में आंदोलनरत रहे हैं। इस आंदोलन की खासियत यह है कि यह जैसे जैसे पुराना हो रहा है वैसे वैसे जोर पकड़ रहा है। इसकी एक झलक हाल ही में दिल्ली में संपन्न विशाल आयोजन के रुप में सामने आई है जिसमे देश भर से लाखों सरकारी कर्मियों ने हिस्सा लिया है।
इस आंदोलन के लगातार धारदार होने के कई कारण हैं। जब सरकार ने पुरानी आजीवन मिलने वाली पेंशन को बंद किया था उन दिनों ऐसे कर्मियों की संख्या बहुत कम थी क्योंकि पुराने पेंशनधारकों और अधिकांश कार्यरत कर्मचारियों को पुराने तर्ज पर ही पेंशन मिलनी थी और इस योजना के बंद होने का असर नई नई नियुक्ति पाए मुट्ठीभर सरकारी कर्मियों पर होना था। जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे प्रतिवर्ष ऐसे कर्मचारियों की संख्या बढ़ती चली गई जिन्हें आजीवन पेंशन की जगह एकमुश्त राशि मिलेगी।
जैसे जैसे इस कानून की जद में आने वाले कर्मचारियों का संख्या बल बढ़ रहा है वैसे वैसे उनके संगठनों की आवाज बुलंद हो रही है क्योंकि कर्मचारी संगठनों में ऐसे युवा पदाधिकारियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है जो इस योजना के कारण पेंशन का लाभ नहीं ले पाएंगे।
वर्ष 2023 और 2024 पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के वर्ष हैं। चुनावी वर्ष की पूर्व संध्या पर एक तरफ सरकारों का रवैया वोट प्राप्ति के लिए काफी रियायती होने लगता है और दूसरी तरफ़ योजनाओं का लाभ मांगने वालों की आवाज़ बुलंद होने लगती है क्योंकि सरकारों को दबाव में लाने का इससे सुनहरा अवसर कभी नहीं मिलता। इस वजह से भी पुरानी पेंशन योजना के लिए कर्मचारियों ने जोर शोर से आंदोलन रत होने के लिए कमर कस ली है। तीसरा कारण यह भी है कि पिछ्ले कुछ वर्षों से कांग्रेस ने इस मुद्दे पर आंदोलनरत सरकारी कर्मियों का साथ देना शुरु कर दिया है। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी हैं वहां पुरानी पेंशन योजना बहाल कर दी गई है और अन्य राज्यों में इस तरह के वादे किए जा रहे हैं। इससे केन्द्र सरकार के कर्मियों के आंदोलन को असरदार राजनीतिक समर्थन मिल रहा है।
जहां तक पुरानी पेंशन योजना का प्रश्न है वह निश्चित रूप से एक बेहतर व्यवस्था है। हमारे देश में बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था नहीं के बराबर है। इस दृष्टि से सेवानिवृत वरिष्ठ नागरिकों और उनके ऊपर आश्रित परिजनों के लिए आजीवन पेंशन की सुविधा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है। आजीवन पेंशन सरकारी कर्मियों के लिए बड़ा आकर्षण हुआ करती थी जो उनमें और उनके परिवार में सुरक्षा का भाव पैदा करती थी। उस सुरक्षा भाव के नहीं रहने से सरकारी सेवा का आकर्षण कम हुआ है और युवा कर्मचारी भविष्य के प्रति चिंतित रहने लगे हैं।
पेंशन योजना का एक लाभ यह भी था कि भविष्य के प्रति निश्चिंत सरकारी सेवक पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित होते थे क्योंकि भ्रष्टाचार आदि में पकड़े जाने पर पेंशन पर खतरा बढ़ जाता था। पेंशन समाप्त होने से बहुत से कर्मचारी नौकरी छूटने के भय से मुक्त हो गए हैं और दूसरी तरफ बहुत से योग्य व्यक्ति बेहतर विकल्प मिलते ही सरकारी नौकरी छोडऩे लगे हैं इससे उनके अनुभव और योग्यता का लाभ सरकार को नहीं मिल पाता।
आजीवन पेंशन के समर्थन में यह तर्क भी विवेकपूर्ण है कि जब पांच साल विधायक या सासंद रहने पर जन प्रतिनिधियों और आपातकाल में कुछ दिन जेल में रहने वालों को आजीवन पेंशन दी जाती है तब तीस पैंतीस साल सेवा देने वाले जन सेवकों को भी आजीवन पेंशन अवश्य मिलनी चाहिए। उम्मीद है कि चुनावी वर्ष में सरकार जनसेवकों के हित में तर्क संगत निर्णय लेगी।