विचार / लेख

फिलीस्तीन के मुद्दे पर क्या भारत की नीति बदलती जा रही है?
09-Oct-2023 3:50 PM
फिलीस्तीन के मुद्दे पर क्या भारत की नीति बदलती जा रही है?

 प्रियंका झा

दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर वेस्ट एशियन स्टडीज़ में एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर मुदस्सिर क़मर की नजर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इसराइल पर हुए हमले के बाद दिए बयान से फिलीस्तीन के प्रति भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं दिखता।

वो कहते हैं, 'कल जो मोदी ने बयान दिया वो ये दिखाता है कि भारत किसी आतंकी हमले की स्थिति में इसराइल के साथ खड़ा है। कल हमास ने इसराइल पर हमला किया। ये हमले नागरिकों पर हुए। ये दो सेना के बीच जंग नहीं थी। चूंकि इसराइल भारत का बड़ा रणनीतिक साझेदार है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी के बयान को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। Ó

इसराइल पर शनिवार तड़के गाजा से अचानक फिलस्तीन के चरमपंथी गुट हमास ने बड़ा हमला किया।

हमास ने इसराइल पर सैकड़ों रॉकेट दागे। इस हमले को 'अभूतपूर्वÓ बताया जा रहा है।

गाजा से हुए हमले के बाद फ़लस्तीनी इस्लामी चरमपंथी ग्रुप हमास के दर्जनों हथियारबंद लड़ाके दक्षिणी इसराइल में घुस गए। हालांकि, इसराइल ने कहा है कि उसने अधिकांश हिस्सों पर वापस नियंत्रण पा लिया है।

हमास के किए हमले में इसराइल में अब तक 700 नागरिकों की मौत हो गई है। वहीं कई इसराइलियों को बंधक बनाए जाने की भी खबरें हैं।

इसराइल के गाजा पर किए हमले में अब तक 400 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 2000 से ज्यादा लोग घायल हैं।

मरने वालों का आँकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है।

इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने 'युद्धÓ की घोषणा करते हुए कहा कि उनका देश अपने दुश्मन से 'अभूतपूर्व कीमतÓ वसूल करेगा।

इसराइल पर हमास के इस हमले की दुनियाभर के नेताओं ने निंदा की है।

भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से अभी तक इस मामले को लेकर कोई आधिकारिक बयान तो जारी नहीं किया गया है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 'आतंकवादीÓ हमला बताया है और कहा है कि वो इस मुश्किल वक्त में इसराइल के साथ एकजुटता से खड़े हैं। वहीं, सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक वीडियो ट्वीट करते हुए कहा है कि जो आज इसराइल में हो रहा है वो भारत ने साल 2004-2014 (यूपीए सरकार का कार्यकाल) में झेला था। वीडियो में भारत में हुए चरमपंथी हमलों के फुटेज हैं।

इसके बाद इसराइल-फिलस्तीन को लेकर भारत की नीति में बदलाव दिखने की चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है।

मोदी सरकार ने बदला फिलीस्तीन पर भारत का रूख?

दो राष्ट्र समाधान इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच के दशकों पुराने संघर्ष को हल करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय राजनयिकों और नेताओं के लिए घोषित लक्ष्य रहा है। भारत भी इसी का पक्षधर रहा है।

दो राष्ट्र समाधान के तहत फिलस्तीन को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने की बात है। इस देश को वेस्ट बैंक में 1967 के पहले की संघर्ष विराम लाइन, गज़ा पट्टी और पूर्वी यरुशलम में बनाने की बात कही गई है।

इस साल की शुरुआत इसराइल-फिलस्तीन पर संयुक्त राष्ट्र में आए एक प्रस्ताव पर भारत के रुख को लेकर चर्चा से ही हुई थी।

दरअसल, संयुक्त राष्ट्र महासभा में पूर्वी यरुशलम और फिलीस्तीनी क्षेत्र में इसराइल के कब्जे से जुड़ा एक मसौदा प्रस्ताव पेश किया गया।

इस मसौदा प्रस्ताव में फिलीस्तीनी क्षेत्र पर इसराइल के 'लंबे समय तक कब्जेÓ और उसे अलग करने के कानूनी परिणामों पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से राय मांगी गई थी।

अमेरिका और इसराइल ने इस मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, लेकिन भारत, ब्राजील, जापान, म्यांमार और फ्रांस मतदान से दूर रहे।

उस समय भी इसे भारत के इसराइल के करीब और फिलस्तीन से दूर जाने के तौर पर देखा गया। लेकिन जानकारों की नजर में भारत की फिलीस्तीन को लेकर नीति बदल नहीं रही है बल्कि वो डी-हाइफनेशन की ओर स्थानांतरित हो रही है।

यानी भारत फिलीस्तीन के हितों के लिए पारंपरिक रूप से मजबूत समर्थन देता रहेगा लेकिन इसके समानांतर ही वो अपने हितों को ध्यान में रखते हुए इसराइल के साथ भी अच्छे संबंधों को बरकरार रखेगा।

हालांकि, जानकारों के बीच में इस पर एकराय है कि साल-दर-साल फिलीस्तीन का मुद्दा कमजोर पड़ा है।

इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर के फेलो और मध्य-पूर्व मामलों के जानकार फज्जुर रहमान सिद्दीकी कहते हैं कि भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पिछले कुछ सालों में इसराइल को कूटनीतिक पहचान मिली है। इसराइल ने अपनी पहुंच बढ़ाई है और इस प्रक्रिया में इसराइल-फिलीस्तीन का झगड़ा फीका पड़ा है।

हमान सिद्दीकी इसकी सबसे बड़ी वजह फिलीस्तीन के आंतरिक विभाजन और उसके पड़ोसी देशों के घरेलू संकट हैं।

वो कहते हैं, 'फिलीस्तीन का मुद्दा कमजोर पड़ने का सबसे पहला कारण वहां की लीडरशिप बँटी हुई है। वहाँ चुनाव नहीं हो रहा है। एक तरफ हमास है तो दूसरी तरफ फिलीस्तीन प्रशासन है।

दूसरा कारण उस क्षेत्र के दूसरे देशों की प्राथमिकताएं बदल गई हैं। चाहे सीरिया हो या लीबिया, यमन, इराक़, ईरान, मोरक्को, ट्यूनिशिया, सूडान। इन सबमें घरेलू संकट ऐसा है कि इनके लिए फिलीस्तीन का मुद्दा अब उतना बड़ा नहीं रह गया है।Ó

रहमान सिद्दीकी की नजर में इसकी तीसरी सबसे बड़ी वजह वैश्विक राजनीति की प्राथमिकताएं बदलना है। अमेरिका में चाहे डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार हो या रिपब्लिकन पार्टी की। लेकिन इसराइल के साथ उसके संबंध हमेशा मजबूत रहे हैं।

वो कहते हैं, 'अमेरिका का पूरा ध्यान अब यूक्रेन पर है। यूक्रेन से पहले कोरोना महामारी थी। उससे पहले अमेरिका की घरेलू राजनीति थी। और डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में तो अमेरिका खुलकर इसराइल के पक्ष में था। उसमें कहीं कोई कूटनीति नहीं थी। कूटनीति वहां होती है, जहां आप दोनों पक्षों के बीच तटस्थ रहना होता है।Ó

फिलीस्तीन पर क्या रहा है भारत का रुख़?

भारत में फिलीस्तीनी लोगों के अधिकारों का समर्थन करने की ऐतिहासिक परंपरा रही है। भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार फिलस्तीनी मुद्दे पर भारत का समर्थन देश की विदेश नीति का एक अभिन्न अंग है।

वर्ष 1974 में भारत, यासिर अराफात की अगुआई वाले फिलीस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) को फिलस्तीनी लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश बना था।

जानकार कहते हैं कि उस समय भारत की पीएम इंदिरा गांधी और यासिर अराफात के बीच काफी अच्छे संबंध थे।

वर्ष 1988 में भारत फिलीस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक बन गया। वर्ष 1996 में भारत ने गाजा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला, जिसे बाद में 2003 में रामल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया था।

भारत ने अक्टूबर 2003 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव का भी समर्थन किया, जिसमें इसराइल के विभाजन की दीवार बनाने के फैसले का विरोध किया गया था। वर्ष 2011 में भारत ने फिलीस्तीन को यूनेस्को का पूर्ण सदस्य बनाने के पक्ष में मतदान किया।

वर्ष 2012 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया, जिसमें फिलीस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में मतदान के अधिकार के बिना 'नॉन-मेंबर आब्जर्वर स्टेटÓ बनाने की बात थी। भारत ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट भी किया। सितंबर 2015 में भारत ने फ़लस्तीनी ध्वज को संयुक्त राष्ट्र के परिसर में स्थापित करने का भी समर्थन किया।

भारत और फिलीस्तीनी प्रशासन के बीच नियमित रूप से उच्चस्तरीय द्विपक्षीय यात्राएं होती रही हैं।

अंतरराष्ट्रीय और द्विपक्षीय स्तर पर मजबूत राजनीतिक समर्थन के अलावा भारत ने फिलीस्तीनियों को कई तरह की आर्थिक सहायता दी है।

भारत सरकार ने गाजा शहर में अल अजहर विश्वविद्यालय में जवाहरलाल नेहरू पुस्तकालय और गाजा के दिर अल-बलाह में फिलीस्तीन तकनीकी कॉलेज में महात्मा गांधी पुस्तकालय सहित छात्र गतिविधि केंद्र बनाने में भी मदद की है। इनके अलावा कई प्रोजेक्ट्स बनाने में भारत फिलीस्तीनियों की मदद कर रहा है।

फरवरी 2018 में नरेंद्र मोदी फिलीस्तीनी इलाके में गए थे। इस दौरानफिलीस्तीनी प्रशासन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने मोदी को देश का सर्वोच्च सम्मान 'ग्रैंड कॉलर ऑफ द स्टेट ऑफ पेलेस्टीनÓ से नवाजा।

बीते साल फिलीस्तीनियों के साथ एकजुटता के अंतरराष्ट्रीय दिवस के वक्त पीएम मोदी ने एक संदेश जारी किया। इसमें पीएम ने फिलीस्तीन के लिए भारत के 'अटूट समर्थन की प्रतिबद्धताÓ को दोहराया।

पीएम मोदी ने कहा, 'भारत और फिलीस्तीन के दोस्ताना लोगों के साझा ऐतिहासिक संबंध हैं। हमने हमेशा आत्मनिर्भरता और सम्मान के साथ सामाजिक और आर्थिक विकास खोज रहे फिलीस्तीन के लोगों का समर्थन किया है। हमें उम्मीद है कि फिलीस्तीन और इसराइली पक्ष के बीच सीधी बातचीत होगी और वो एक समग्र और आपसी सहमति वाला उपाय खोज लेंगे।Ó

सऊदी अरब फिलीस्तीन के प्रति एकजुटता दिखाते हुए इसराइल को मान्यता नहीं देता है और इसका इसराइल से किसी भी तरह का राजनयिक रिश्ता नहीं है। लेकिन बीते दिनों ये खबर आई कि इसराइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के बदले में, सऊदी अरब अमेरिका से बड़ा सैन्य समर्थन, असैन्य परमाणु कार्यक्रम की स्थापना और फिलीस्तीन के लिए कई तरह की मांग कर रहा है। इससे पहले भी कई अरब देशों ने इसराइल के साथ अपने संबंध सामान्य किए हैं।

साल 2020 में अमेरिका की मध्यस्थता में संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने इसराइल के साथ ऐतिहासिक समझौता किया था जिसे 'अब्राहम एकॉर्डÓ कहा जाता है। इसके तहत यूएई और बहरीन ने इसराइल के साथ राजनयिक रिश्तों को बहाल कर लिया था।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रेजोल्यूशन में पढ़ा रहे असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं कि भारत और इसराइल के बीच दोस्ती अचानक नहीं बढ़ा रहा। इसकी एक वजह है कि अरब देशों का भी इसराइल से संबंध सुधर रहा है।

फज्जुर रहमान सिद्दीकी भी ये मानते हैं कि अब मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाले अरब देश ही अब फिलीस्तीन के मुद्दे को अहमियत नहीं दे रहे हैं। ऐसे में भारत भी अपने हितों को आगे रखते हुए इसराइल के साथ संबंध बढ़ा रहा है।

लेकिन क्या इससे फिलीस्तीन को लेकर उसका रवैया बदलेगा?

इस पर प्रोफेसर प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं, 'मोदी सरकार के आने के बाद तो ये साफ नीति रही है कि इसराइल को फिलीस्तीन के आइने से नहीं देखा जाएगा और न तो फिलीस्तीन को इसराइल के आइने से।Ó

वो कहते हैं, 'विदेश नीति दो तरह की होती है। आइडियलिस्टिक यानी आदर्शवादी और प्रैगमटिस्ट यानी यथार्थवादी।

भारत ने इसराइल और फिलीस्तीन के बीच संतुलन रखने के लिए यही रुख अपनाया है।

यानी जब भी मानवाधिकार की बात होगी तो फ़लस्तीन का समर्थन करेंगे लेकिन जब भी अपने हितों से जुड़ी बात होगी तो हम इसराइल के साथ होंगे।

डॉ. मिश्रा की नजर में राजनीतिक तौर पर जब संबंध बदलते हैं तो उसका असर तो पड़ता है। अब यूएई की जनता सड़क पर उस तरह से नहीं आ सकती, जैसा अब्राहम एकॉर्ड से पहले होता।

वो कहते हैं, 'कल को मान लीजिए कि भारत पर इस तरह का हमला होता है, तो फिर आप किस आधार पर समर्थन की उम्मीद करेंगे। परसेप्शन के स्तर पर भले ही भारत फिलहाल इसराइल के साथ लगता हो। भारत और इसराइल के संबंध इसलिए भी दिखते हैं क्योंकि दोनों देशों में दक्षिणपंथी नेतृत्व है। लेकिन भारत की पॉलिसी इसराइल को लेकर पूरी तरह से यथार्थवादी है और फिलीस्तीन को लेकर उसकी आदर्शवादी नीति आगे भी बनी रहेगी।Ó

दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर वेस्ट एशियन स्टडीज़ में एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर मुदस्सिर क़मर की नजर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इसराइल पर हुए हमले के बाद दिए बयान से फिलीस्तीन के प्रति भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं दिखता।

वो कहते हैं, 'कल जो मोदी ने बयान दिया वो ये दिखाता है कि भारत किसी आतंकी हमले की स्थिति में इसराइल के साथ खड़ा है। कल हमास ने इसराइल पर हमला किया। ये हमले नागरिकों पर हुए। ये दो सेना के बीच जंग नहीं थी। चूंकि इसराइल भारत का बड़ा रणनीतिक साझेदार है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी के बयान को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।  (bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news