विचार / लेख

कांग्रेस के पैरों पर कुल्हाड़ी मारते कांग्रेसी
10-Oct-2023 4:30 PM
कांग्रेस के पैरों पर कुल्हाड़ी मारते कांग्रेसी

 डॉ. आर.के. पालीवाल

कांग्रेस एकमात्र ऐसा राजनीतिक दल है जिसके पास आज़ादी के आंदोलन की बहुत सी विभूतियों की विशाल धरोहर है। आज़ादी की लगभग छह दशक लम्बी लड़ाई में कांग्रेस राष्ट्र प्रेमी भारतीयों का ऐसा अप्रतिम समूह बन गई थी जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी और बौद्ध धर्म की महान विभूतियों और हर क्षेत्र के युवाओं से लेकर बुजुर्गों और महिलाओं ने कंधे से कंधा मिलाकर एक से बढक़र एक बलिदान दिया था। आज़ादी के बाद अधिकांश कांग्रेसी नेता जोशो खरोश से जन सेवा के लिए भी आगे आए थे। जैसे जैसे आज़ादी के आंदोलन की यादें पुरानी पड़ती गई वैसे वैसे कांग्रेस के हाई कमान ने एक एक कर कांग्रेस की महान विभूतियों को विस्मृत करना शुरु कर दिया और यह परंपरा अभी भी जारी है।

सबसे पहले कांग्रेस ने सरदार पटेल को विस्मृत किया जिन्हें पिछ्ले दिनों भारतीय जनता पार्टी ने अपनाकर गुजरात में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी नाम का भव्य स्मारक बनाया है।महात्मा गांधी को भी कांग्रेस ने मनरेगा आदि चंद योजनाओं तक सीमित कर दिया और समय के साथ कांग्रेस के शासन में विभिन्न बडी योजनाओं में उनकी जगह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम आ गए। प्रधानमंत्री के दल के भले ही बहुत से नेता और कार्यकर्ता गांधी के हत्यारे गोडसे को देशभक्त बनाने पर तुले हैं और गांधी से जुड़ी संस्थाओं, यथा सर्व सेवा संघ वाराणसी आदि को नेस्तनाबूद कर रहे हों लेकिन प्रधानमंत्री कभी स्वच्छता अभियान और कभी विदेशी दौरों पर अक्सर गांधी को याद कर लेते हैं। सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह आदि के साथ भी कमोबेश यही स्थिति रही है। जब कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति के नेताओं के साथ नेहरू के बाद की कांग्रेस सरकारों का यह रवैया रहा है तब आज़ादी की लड़ाई के क्षेत्रीय नायकों को याद रखना असंभव था। कांग्रेस के क्षेत्रीय क्षत्रपों की यह जिम्मेदारी बनती थी कि वे अपने अपने क्षेत्रों के आज़ादी के आंदोलन के नायकों को विस्मृत नहीं होने देते। दुर्भाग्य से उन्होंने तत्कालीन हाई कमान को खुश करने के चक्कर में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम को ही आगे बढ़ाने में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा की। अमृत महोत्सव काल में वर्तमान सरकार ऐसे लोगों को खोज खोज कर आगे ला रही है।

कांग्रेस ने केवल आज़ादी के नायकों के साथ ही ऐसा नहीं किया। आज़ादी के बाद नेहरू परिवार के बाहर के जितने भी कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं उनके साथ भी यही किया है। पिछ्ले दो तीन दशक की बात करें तो सीताराम केसरी और नरसिंहराव को भी कांग्रेस की विभूतियों से कभी का बाहर किया जा चुका है। नरसिंह राव के साथ उनके जीवित रहते हुए भी कांग्रेस हाई कमान ने सौतेला व्यवहार किया था। दो बार प्रधानमन्त्री रहे मनमोहन सिंह की भी यही स्थिति है। हाई कमान में उनका क्रम सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के बाद ही दिखता है। कांग्रेस द्वारा विस्मृत नायकों को भारतीय जनता पार्टी के अलावा अन्य दलों ने भी अपनाना शुरु किया है। कुछ समय पहले नरसिंह राव को तेलंगाना में सत्तारूढ़ दल  टी आर एस, जो अब बी आर एस हो गई है, ने महिमामंडित करना शुरु किया है। कुछ दिन पहले कांग्रेस के बड़बोले नेता मणिशंकर अय्यर ने उन्हें सार्वजनिक बयान देकर बाकायदा भारतीय जनता पार्टी के पाले में धकेल दिया है। इसे कांग्रेसियों द्वारा अपनी ही पार्टी के पैरों पर कुल्हाड़ी चलाने के अलावा क्या कहा जा सकता है! मणिशंकर अय्यर और दिग्विजय सिंह कांग्रेस के दो ऐसे बडबोले नेता हैं जिनका सार्वजनिक प्लेटफार्म पर निकलने वाले शब्दों पर नियंत्रण नहीं है। इन दोनों के बडबोले बयान कांग्रेस के लिए जब तब संकट पैदा करते रहते हैं। दक्षिण भारत में कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस तेलंगाना में पैर जमाने की कोशिश कर रही है। ऐसे में मणिशंकर अय्यर का बयान नरसिंहराव के समर्थकों को नाराज़ कर तेलंगाना में किनारे लगी कांग्रेस को और किनारे कर सकता है।

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