विचार / लेख

उन सितारों में जगजीत कौन से होंगे ?
11-Oct-2023 10:11 PM
उन सितारों में जगजीत कौन से होंगे ?

-दीपाली अग्रवाल
हॉस्टल का कमरा जिसकी खिडक़ी राजस्थान की रेत को निहारती थी, उसी के पास रखी कुर्सी पर मेरा समय बीतता। मेज पर लैपटॉप टिकाकर कागज पर नोट्स बनाती, डूबते सूरज को निहारती और जगजीत सिंह की गजलें सुनती। नोट्स पीछे रह जाते, शाम गहरा जाती, बचते तो मैं, आसमान के सीने पर उतरते तारे और जगजीत की आवाज़। दरअसल मैं भी कहां बच पाती थी, उस तरन्नुम में ही सब डूबता रहा।

एक दफा मुझसे किसी ने कहा था कि, अध्यात्म का ज्ञान न हो तो आंखें बंद किए गज़़लें सुना करो। तुम जानोगी कि अवचेतन तक कैसे पहुंचा जाता है। अगर बात सच है तो जगजीत सिंह की आवाज से मैंने जब-तब अपने अवचेतन में प्रवेश किया है। कॉलेज के उन दिनों से वे मेरे हमसफर रहे हैं। घंटों लूप पर एक ही गजल चलती रहती, फिर कोई कहता कि मेस जाना है। गजल का मतला (पहला शेर) और जगजीत सिंह की आवाज जैसे टेप-रिकॉर्डर की तरह तब भी मन में चलते रहते। यह उनकी आवाज का मोजिजा था कि मतला से आगे कभी कुछ याद न हुआ, वे दूसरा शेर गा देते और हम पहले पर ही दाद में उलझे रहे।

फिर जगजीत इतनी आसानी से कहीं और जाने भी नहीं देते। उनके पास मन के हर सोपान के लिए तो कुछ है। बगीचे से हर रंग के फूल चुनकर उन्होंने अपनी आवाज में शहद इकट्ठा किया है।

प्रेमियों के लिए वे गाते हैं-
प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है
नए परिंदों को उडऩे में वक्त तो लगता है
हिज्र के लिए
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुजऱ क्यूँ नहीं जाता
रूमानी
सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
हकीकत
हर तरफ हर जगह बे-शुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी

चिट्ठी न कोई संदेश, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, इन तमाम गजलों और नज़्मों की तासीर अलग है। जिन शायरों ने इन्हें लिखा है उनकी कैफियत भी एक दूसरे से अलग रही होगी लेकिन जगजीत एक ही थे। उन्होंने हर गजल को जैसे खुद भी जीया और फिर गाया हो। एक इंटरव्यू के दौरान जगजीत सिंह ने कहा भी था कि उन्होंने गालिब को मिर्जा गालिब बनकर गाया है न कि जगजीत सिंह बनकर। लेकिन ऐसा नहीं कि उन्होंने गज़़लें भर ही गाई हैं। जगजीत सिंह की आवाज़ में राधे-कृष्ण बांके-बिहारी मंदिर की गलियों में अब भी सुनाई दे जाता है। सुनने वाले अचरज करेंगे कि मंदिर की गलियों में गूंज रही इसी आवाज़ ने पंजाबी लोक के टप्पे गाए हैं, इसी गले से निकला कि ठुकराओ अब कि प्यार करो, मैं नशे में हूं। अपने इन सुरों से जगजीत सिंह ने हर गली का सफऱ किया है- गले से गली तक की यात्रा और हर उम्र के लोगों के बीच लोकप्रिय। जहन की हर स्थिति के लिए कुछ गाने वाले।

वे जानते थे कि उन्हें अपने सुनने वालों के लिए कैसा काम करना है। वे फिल्मों को लेकर दुराग्रही नहीं थे, वहां हिट हुए तो खूब काम किया जब फि़ल्म नहीं चली तो मोह भी न रहा। अपनी एल्बम बनाते रहे, काम करते रहे। संगीत के साज के साथ प्रयोग करते थे, एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को नए वाद्य के साथ संगीत देना चाहिए। यह बात 60 साल से अधिक के जगजीत सिंह कह रहे थे।

70 की उम्र में साल 2011 अक्टूबर में उन्होंने हमें अलविदा कहा, मेरा उनके साथ सफऱ तब शुरू ही हुआ था। कई बार सोचती हूं कि हॉस्टल की उस खिडक़ी से जो सितारे दीखते थे उनमें जगजीत कौन से होंगे। किसी कवि ने लिखा है न कि, कहते हैं तारे गाते हैं। हमारा गजल गाने वाला तारा क्या आज भी हॉस्टल की किसी खिडक़ी के पार कुछ सुनाता होगा।

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