विचार / लेख
![नदियों को जोडऩे के खतरे नदियों को जोडऩे के खतरे](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1697044661iver-interlink-project-india.jpg)
-प्रमोद भार्गव
बाढ़ और सूखे की समस्या का स्थाई समाधान ढूंढने के लिए देश में चल रही महत्वाकांक्षी केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना से जल संकट और गहरा सकता है। इससे मानसून का नियमित तंत्र भी प्रभावित हो सकता है। यह दावा ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित एक शोध अध्ययन में किया गया है। यह शोध भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई, उष्णदेषीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) पुणे ने किया है। अध्ययन में हैदराबाद विष्वविद्यालय और किंग अब्दुल्ला युनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक भी षामिल थे। शोध में क्षेत्रीय जलवायु स्थितियां और आंकड़ों का विष्लेशण सहित मानसून से जुड़ी कई तकनीकियों का उपयोग किया गया। ताकि इन बड़ी परियोजनाओं के पूरी होने पर भविश्य में उत्पन्न होने वाले जल और मौसम संबंधी नतीजों के जटिल तंत्र को सामने ला सकें।
शोध में क्षेत्रीय जलवायु पारिस्थितिकी तंत्र और आंकड़ों का विष्लेशण करने के बाद पाया कि जो अलनीनो दक्षिणी दोलन जैसी परिस्थितियों को प्रभावित करते हैं। अतएव नदी जोड़ो योजना पूरी होने के बाद इसके क्षेत्र में आने वाला जल-स्थल वायुमंडल अंतरसंबंध को बिगाड़ सकता है। इससे वायु और नमी का स्तर प्रभावित होगा। नतीजतन देष में ये नदी जोड़ो क्षेत्र विशेष में बारिस का परंपरागत रुझान बदल सकता है। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि पानी दूसरी नदी में जाने से सिंचित क्षेत्र बढ़ेगा, जो पानी की कमी का सामना कर रहें इलाकों में सितंबर की बारिस में 12 प्रतिशत तक की कमी ला सकता है। गोया, ऐसा होता है तो नदी जोड़ो योजना का संकट न केवल इस, परियोजना से लाभान्वित होने वाले इलाकाई लोगों को झेलना होगा बल्कि मौसम के तंत्र पर भी इसका विपरीत असर दिखाई देगा। भारत में एनडब्ल्यूडीए के अनुसार 30 नदियों को जोड़ा जाना है। इनमें प्रायद्वीपीय घटक के तहत 16 और हिमालयी घटक के अंतर्गत 14 नदियों को जोड़े जाने की पहचान कर ली गई है। इनमें से आठ योजनाओं की डीपीआर भी बना ली गई है।
जीवनदायी नदियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। नदियों के किनारे ही ऐसी आधुनिकतम बढ़ी सभ्यताएं विकसित हुईं, जिन पर हम गर्व कर सकते हैं। सिंधु घाटी और सारस्वत (सरस्वती) सभ्यताएं इसके उदाहरण हैं। भारत के सांस्कृतिक उन्नयन के नियमों में भागीरथी, राम और कृष्ण का नदियों से गहरा संबंध रहा है। भारतीय वांग्मय में इंद्र और कुबेर विपुल जलराशि के प्राचीनतम वैज्ञानिक-प्रबंधक रहे हैं। भारत भूखण्ड में आग, हवा और पानी को सर्वसुलभ नियामत माना गया है। हवा और पानी की शुद्धता और सहज उपलब्धता नदियों से है। दुनिया के महासागरों, हिमखण्ड़ों, नदियों और बड़े जलाशयों में अकूत जल भण्डार हैं। लेकिन मानव के लिए उपयोग जीवनदायी जल और बढ़ती आबादी के लिए जल की उपलब्धता का बिगड़ता अनुपात चिंता का बड़ा कारण बना हुआ है। ऐसे में भी बढ़ते तापमान के कारण हिमखण्डों के पिघलने और अवर्षा के चलते जल स्त्रोतों के सूखने का सिलसिला जारी है। वर्तमान में जल की खपत कृषि, उद्योग, विद्युत और पेयजल के रूप में सर्वाधिक हो रही है। हालांकि पेयजल की खपत मात्र आठ फीसदी है। जिसका मुख्य स्त्रोत नदियां और भू-जल हैं। औद्योगिकिकरण, शहरीकरण और बढ़ती आबादी के दबाव के चलते एक ओर नदियां सिकुड़ रही हैं, वहीं औद्योगिक कचरा और मल मूत्र बहाने का सिलसिला जारी रहने से गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियां इतनी प्रदूषित हो गईं हैं कि यमुना नदी को तो एक पर्यावरण संस्था ने मरी हुई नदी तक घोषित कर दिया है। इसलिए नदी जोड़ो परियोजना से भी यदि नदियों और मौसम के पंख को हानि होती है तो बड़ा संकट देश की जनता को भुगतना होगा।
प्रस्तावित करीब 120 अरब डालर अनुमानित खर्च की नदी जोड़ों परियोजना को दो हिस्सों में बांटकर अमल में लाया जाएगा। एक प्रायद्वीप स्थित नदियों को जोडऩा और दूसरे, हिमालय से निकली नदियों को जोडऩा। प्रायद्वीप भाग में 16 नदियां हैं, जिन्हें दक्षिण जल क्षेत्र बनाकर जोड़ा जाना है। इसमें महानदी, गोदावरी, पेन्नार, कृष्णा, पार, तापी, नर्मदा, दमनगंगा, पिंजाल और कावेरी को जोड़ा जाएगा। पशिचम के तटीय हिस्से में बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ा जाएगा। इस तट से जुड़ी तापी नदी के दक्षिण भाग को मुंबई के उत्तरी भाग की नदियों से जोड़ा जाना प्रस्तावित है। केरल और कर्नाटक की पशिचम की ओर बहने वाली नदियों की जलधारा पूर्व दिशा में मोड़ी जाएगी। यमुना और दक्षिण की सहायक नदियों को भी आपस में जोड़ा जाना इस परियोजना का हिस्सा है। हिमालय क्षेत्र की नदियों के अतिरिक्त जल को संग्रह करने की दृष्टि से भारत और नेपाल में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान हैं। ताकि वर्षाजल इकट्ठा हो और उत्तर-प्रदेश, बिहार एवं असम को भंयकर बाढ़ का सामना करने से निजात मिल सके। इन जलाशयों से बिजली भी उत्पादित की जाएगी। इसी क्षेत्र में कोसी, घांघरा, मेच, गंडक़, साबरमती, शारदा, फरक्का, सुन्दरवन, स्वर्णरेखा और दमोदर नदियों को गंगा, यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा। करीब 13,500 किमी लंबी ये नदियां भारत के संपूर्ण मैदानी क्षेत्रों में अठखेलियां करती हुईं मनुष्य और जीव-जगत के लिए प्रकृति का अनूठा और बहुमूल्य वरदान बनी हुईं हैं। 2528 लाख हेक्टेयर भू-खण्डों और वनप्रांतरों में प्रवाहित इन नदियों में प्रति व्यक्ति 690 घन मीटर जल है। कृषि योग्य कुल 1411 लाख हेक्टेयर भूमि में से 546 लाख हेक्टेयर भूमि इन्हीं नदियों की बदौलत प्रति वर्ष सिंचित की जाकर फसलों को लहलहाती हैं।
ऐसा दावा किया जा रहा है कि बाढ़ और सूखे से परेशान देश में नदियों के संगम की केन-बेतवा नदी परियोजना मूर्त रूप ले लेती है, तो भविश्य में 60 अन्य नदियों के मिलन का रास्ता खुल जाएगा। दरअसल बढ़ते वैष्विक तापमान, जलवायु परिवर्तन, अलनीनो और बदलते वर्षा चक्र के चलते जरूरी हो गया है कि नदियों के बाढ़ के पानी को इकट्ठा किया जाए और फिर उसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में नहरों के जरिए भेजा जाए। ऐसा संभव हो जाता है तो पेयजल की समस्या का निदान तो होगा ही, सिंचाई के लिए भी किसानों को पर्याप्त जल मिलने लग जाएगा। वैसे भी भारत में विश्व की कुल आबादी के करीब 18 प्रतिशत लोग रहते हैं और उपयोगी जल की उपलब्धता महज 4 प्रतिशत है। हालांकि पर्यावरणविद् इस परियोजना का यह कहकर विरोध कर रहे हैं कि नदियों को जोडऩे से इनकी अविरलता खत्म होगी, नतीजतन नदियों के विलुप्त होने का संकट बढ़ जाएगा। इसी तथ्य की पुश्टि यह नया शोध कर रहा है।
यदि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना में आ रहे संकटों की बात करें तो इनसे पार पाना आसान नहीं है। वन्य जीव समिति बड़ी बाधा के रूप में पेष आ रही है, यह आशंका भी जताई जा रही है कि परियोजना पर क्रियान्वयन होता है तो नहरों एवं बांधों के लिए जिस उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा, वह नष्ट हो जाएगी। इस भूमि पर फिलहाल जौ, बाजरा, दलहन, तिलहन, गेहूं, मूंगफली, चना जैसी फसलें पैदा होती हैं। इन फसलों में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। जबकि ये नदियां जुड़ती हैं, तो इस पूरे इलाके में धान और गन्ने की फसलें पैदा करने की उम्मीद बढ़ जाएगी। परियोजना को पूरा करने का समय 9 साल बताया जा रहा है। लेकिन हमारे यहां भूमि अधिग्रहण और वन भूमि में स्वीकृति में जो अड़चनें आती हैं, उनके चलते परियोजना 20-25 साल में भी पूरी हो जाए तो यह बड़ी उपलब्धि होगी ?
दोनों प्रदेशों की सरकारें दावा कर रही हैं कि यदि ये नदियां परस्पर जुड़ जाती हैं तो मध्य-प्रदेश और उत्तर-प्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखण्ड क्षेत्र में रहने वाली 70 लाख आबादी खुषहाल हो जाएगी। यही नहीं नदियों को जोडऩे का यह महाप्रयोग सफल हो जाता है तो अन्य 60 नदियों को जोडऩे का सिलसिला भी शुरू हो सकता है ? नदी जोड़ों कार्यक्रम मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है। इस परियोजना के तहत उत्तर-प्रदेश के हिस्से में आने वाली पर्यावरण संबंधी बाधाओं को दूर कर लिया गया है। मध्यप्रदेश में जरूर अभी भी पन्ना राष्ट्रीय उद्यान बाधा बना हुआ है और जरूरी नहीं कि जल्दी यहां से मंजूरी मिल जाए? वन्य जीव समिति इस परियोजना को इसलिए मंजूरी नहीं दे रही है, क्योंकि पन्ना राष्ट्रीय उद्यान बाघों के प्रजनन, आहार एवं आवास का अहम् वनखंड है। इसमें करीब चार दर्जन बाघ बताए जाते हैं। अन्य प्रजातियों के प्राणी भी बड़ी संख्या में हैं। हालांकि मध्यप्रदेश और केंद्र में एक ही दल भाजपा की सरकारें हैं, लिहाजा उम्मीद की जा सकती है कि बाधाएं भी जल्दी दूर हो जाएं ? हीरा खनन क्षेत्र भी नई बाधा के रूप में आ सकता है ?