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‘हम हार नहीं मानेंगे’: मणिपुर वायरल वीडियो की औरतें
09-Nov-2023 3:38 PM
‘हम हार नहीं मानेंगे’: मणिपुर  वायरल वीडियो की औरतें

  दिव्या आर्य

मणिपुर में क्या हुआ है?

    मणिपुर की 33 लाख लोगों की आबादी में आधे से ज़्यादा मैतेई हैं। 43 प्रतिशत कुकी और नागा समुदाय से हैं।

    मई में ताज़ा हिंसा तब भडक़ उठी जब कुकी समुदाय ने मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति चिह्नित किए जाने की मांग का विरोध किया। उन्हें डर है कि इससे मैतेई समुदाय कुकी इलाकों में ज़मीन खरीदकर और प्रभावशाली हो जाएगा।

    राज्य सरकार और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह (जो मैतेई हैं) कुकी चरमपंथी गुटों को समुदाय को भडक़ाने के लिए जिम्मेदार मानते हैं।

  हिंसा में अब तक 200 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है जिनमें ज्यादातर कुकी समुदाय से हैं। दोनों समुदायों के हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं।

 मैतेई औरतों ने भी कुकी मर्दों पर यौन हिंसा के आरोप लगाए हैं और एक एफआईआर भी दर्ज हुई, लेकिन ज़्यादातर मानती हैं कि वो ऐसे कृत्यों की चर्चा कर शर्मिंदा नहीं होना चाहतीं।

अब से छह महीने पहले मणिपुर में भडक़ी जातीय हिंसा के बीच भीड़ ने दो औरतों को निर्वस्त्र कर घुमाया और कथित तौर पर उनका सामूहिक बलात्कार किया। उस हमले का वीडियो वायरल होने के बाद वो औरतें पहली बार किसी पत्रकार के आमने-सामने बैठीं और अपनी आपबीती बाँटी।

चेतावनी-इस लेख में यौन हिंसा का वर्णन है।

सबसे पहले मुझे सिर्फ उनकी झुकी नजऱें दिखाई दीं। काले मास्क से ढका मुंह। माथे और सर पर लिपटी चुन्नी।

वायरल वीडियो से सामने आईं कुकी-जोमी समुदाय की ये दोनों औरतें, ग्लोरी और मर्सी, मानो अदृश्य हो जाना चाहती हों।

पर आवाज बुलंद है। आज पहली बार वो एक पत्रकार से मिलने को राजी हुई हैं, ताकि अपने दर्द और न्याय की लड़ाई के बारे में दुनिया को बता सकें।

सोशल मीडिया पर शेयर किया गया उनका वीडियो देखना मुश्किल है। करीब एक मिनट लंबे उस वीडियो में मैतेई मर्दों की भीड़ दो निर्वस्त्र औरतों को घेरे हुए है, उन्हें धक्का दे रही है, उनके निजी अंगों को जबरदस्ती छू रही है और खींच कर उन्हें खेत में ले जाती है जहां वो कहती हैं कि उनका सामूहिक बलात्कार किया गया।

उस हमले को याद कर ग्लोरी का गला भर आता है।

वो बोलीं, ‘मुझसे जानवरों जैसा बर्ताव किया गया। उस सदमे के साथ जीना पहले ही इतना मुश्किल था, फिर दो महीने बाद जब हमले का वीडियो वायरल हुआ, मेरे अंदर जि़ंदा रहने की चाह ही खत्म होने लगी।’

 मर्सी ने कहा, ‘आप तो जानती हैं, भारतीय समाज कैसा है, ऐसे हादसे के बाद वो औरतों को किस नजऱ से देखता है। अब मैं अपने समुदाय के लोगों तक से आंख नहीं मिला पाती। मेरी इज़्जत चली गई है। अब मैं कभी पहले जैसी नहीं हो पाउंगी।’

वीडियो ने दोनों औरतों का दर्द चौगुना कर दिया लेकिन वो एक ऐसा सबूत भी बना जिसने सबका ध्यान मणिपुर में कई महीनों से जारी मैतेई और कुकी-जोमी समुदायों के बीच की जातीय हिंसा पर ला दिया।

शर्म और डर

वीडियो सामने आने के बाद खूब आलोचना हुई और प्रशासन-पुलिस की तरफ से कार्रवाई हुई। जिसके चलते कई कुकी औरतों ने यौन हिंसा की शिकायतें पुलिस में दर्ज करवाने की हिम्मत की।

लेकिन वीडियो पर दुनिया की नजर ने ग्लोरी और मर्सी को और सिमटने पर मजबूर कर दिया।

हमले से पहले ग्लोरी मैतेई और कुकी समुदाय के छात्रों के मिले-जुले कॉलेज में पढ़ती थी।

मर्सी के दिन अपने दोनों बच्चों की देख-रेख, उनके स्कूल का होमवर्क कराने और चर्च जाने में बीतते थे।

लेकिन हमले के बाद दोनों औरतों को गांव छोड़ भागना पड़ा और अब एक दूसरे शहर में छिपकर रह रही हैं।

शर्म और डर के साए में अब वो किसी शुभचिंतक के घर की चारदीवारी में सिमट कर रहती हैं।

मर्सी ना चर्च जाती हैं ना स्कूल। बच्चों को एक रिश्तेदार छोड़ती हैं और वापस लाती हैं।

वो कहती हैं, ‘मुझे रात में बमुश्किल नींद आती है और बहुत डरावने सपने आते हैं। मैं घर से बाहर नहीं निकल पाती। डर लगता है और लोगों से मिलने में शर्मिंदगी महसूस होती है।’

हादसे का सदमा ऐसा कि दोनों सहम गई हैं। काउंसलिंग ने मदद की है पर घृणा और गुस्सा भी घर कर गया है।

गुस्सा और घृणा

अब ग्लोरी मैतेई दोस्त या छात्र के साथ पढऩा तो दूर, उस समुदाय के किसी व्यक्ति का चेहरा तक नहीं देखना चाहती हैं।

वो कहती हैं, ‘मैं कभी अपने गांव वापस नहीं जाऊंगी। मैं वहां पली-बढ़ी, वो मेरा घर था, लेकिन वहां रहने का मतलब है पड़ोस के गांवों के मैतेई लोगों के साथ मेल-जोल, जो मुमकिन नहीं।’

मर्सी का भी यही मानना है। वो मेज पर गुस्से से हाथ रखते हुए कहती हैं, ‘मैं तो उनकी भाषा तक कभी नहीं सुनना चाहती।’

मर्सी और ग्लोरी का गांव मणिपुर में मई में भडक़ी जातीय हिंसा की चपेट में आनेवाले पहले गांवों में से था। उस दिन मची भगदड़ में भीड़ ने ग्लोरी के पिता और भाई को जान से मार दिया।

दबी आवाज़ में ग्लोरी बोलीं, ‘मैंने अपनी आंखों के सामने उनकी मौत होते देखी।’

ग्लोरी ने बताया कि उसे उनके शव खेत में छोड़ अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा। अब वो वहां लौट भी नहीं सकती। हिंसा भडक़ने के बाद मैतेई और कुकी समुदाय एक दूसरे के इलाकों में कदम नहीं रख सकते।

मणिपुर दो भागों में बँट गया है और बीच में पुलिस, सेना और दोनों समुदाय के वॉलनटीयर्स के बनाए चेक-प्वॉइंट हैं।

ग्लोरी कहती हैं, ‘मुझे तो ये भी नहीं पता कि उनके शव किस मुर्दा घर में रखे गए हैं, ना मैं जा कर चेक कर सकती हूं। सरकार को खुद उन्हें हमें लौटा देना चाहिए।’

दर्द और ग्लानि

इलस्ट्रेशन - टूटा फोटो फ्रेम जिसमें ग्लोरी, उसके भाई और पिता की तस्वीर है

हमले के वक्त मर्सी के पति ने पड़ोस के मैतेई गांवों के मुखिया के साथ बैठक की थी जिसमें शांति बनाए रखने का फैसला लिया गया था। पर जैसे ही सब मुखिया निकले, भीड़ ने हमला कर दिया, घरों में आग लगा दी और स्थानीय चर्च भी जला दी।

वो बताते हैं, ‘मैंने स्थानीय पुलिस को फोन किया पर उन्होंने कहा कि उनके थाने पर हमला हो गया है तो वो यहां आकर मदद नहीं कर सकते। मैंने सडक़ पर खड़ी एक पुलिस वैन देखी, पर उसमें से भी कोई बाहर नहीं निकला।’

मर्सी के पति के मुताबिक जब गुस्साई भीड़ ने औरतों को निशाना बनाने का रुख किया तो वो अकेले पड़ गए, ‘मैं कुछ नहीं कर पाया, ये सोचकर दुख और ग्लानि होती है। ना अपनी पत्नी, ना गांववालों को बचा पाया। दिल दुखता है। कभी-कभी इतना परेशान हो जाता हूं कि मन करता है किसी की जान ले लूं।’

पुलिस सूत्रों ने बीबीसी को बताया है कि अब उन्होंने ऑफिसर इन चार्ज समेत पांच लोगों को सस्पेंड कर दिया है और उनकी जांच की जा रही है।

मर्सी के पति के मुताबिक हमले के दो सप्ताह बाद उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस में कर दी थी लेकिन जब तक वीडियो सामने नहीं आया, कोई कार्रवाई नहीं की गई।

वीडियो के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर जातीय हिंसा पर अपना पहला बयान दिया। मणिपुर पुलिस ने सात लोगों को गिरफ्तार किया।

सुप्रीम कोर्ट ने जांच सीबीआई को सौंपी जिसने अब उन सात लोगों पर सामूहिक बलात्कार और हत्या का मुकदमा दर्ज किया है।

हौसला और उम्मीद

ग्लोरी, मर्सी और उनके पति बताते हैं कि वीडियो सामने आने के बाद उन्हें दुनियाभर से ढांढस बंधाने वाले संदेश आने लगे जिनसे बहुत हौसला मिला।

मर्सी के पति कहते हैं, ‘वीडियो के बिना कोई सच पर यकीन नहीं करता, हमारा दर्द नहीं समझता।’

मर्सी को अब भी डरावने सपने आते हैं और भविष्य के बारे में सोचने पर डर लगता है।

अपने बच्चों का हवाला देते हुए कहती हैं, ‘मेरे दिल पर बोझ रहता है कि अपने बच्चों को विरासत में देने के लिए अब कुछ नहीं बचा।’

अब वो परमेश्वर और प्रार्थना में सुकून तलाशती हैं। वहीं सुरक्षित महसूस होता है। मर्सी ने कहा, ‘मैं खुद को समझाती हूं कि परमेश्वर ने अगर मुझे ये सब सहने के लिए चुना तो वो ही मुझे इससे उबरने की शक्ति देंगे।’

हमले में उनका पूरा गांव तबाह हो गया, अब वो समुदाय की मदद से अपनी जिंदगी दोबारा खड़ी कर रहे हैं।

ग्लोरी बताती हैं कि दोनों समुदाय के लिए अलग प्रशासन ही एकमात्र उपाय है, ‘वही तरीका है सुरक्षित और शांतिपूर्वक तरीके से रहने का।’

ये विवादास्पद मांग कुकी समुदाय ने कई बार उठाई है और मैतेई समुदाय ने इसका विरोध किया है। दोनों के अपने तर्क हैं। राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह मैतेई हैं और मणिपुर के विभाजन के खिलाफ हैं।

भेदभाव और इंसाफ

इलस्ट्रेशन-ग्लोरी और मर्सी की आंखों के बीच में घास का पौधा

ग्लोरी और मर्सी को स्थानीय प्रशासन में यकीन नहीं है और उस पर कुकी समुदाय से भेदभाव करने का आरोप लगाती हैं।

ग्लोरी कहती हैं, ‘मणिपुर सरकार ने मेरे लिए कुछ नहीं किया। मुझे मुख्यमंत्री पर भरोसा नहीं है। उनके शासन में ही तो हमारे साथ ये सब हुआ।’

दोनों का आरोप है कि मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह ने अब तक जातीय हिंसा से प्रभावित कुकी-जोमी परिवारों से न बातचीत की है न मुलाकात।

विपक्षी पार्टियों ने बार-बार मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग की है पर राज्य सरकार ने भेदभाव के सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया है।

इन आरोपों को जब हमने मुख्यमंत्री एन। बीरेन सिंह के सामने रखने की कोशिश की तो उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया पर हाल में इंडियन एक्सप्रेस अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वो मैतेई समुदाय के परिवारों को भी मिलने नहीं गए हैं, और, ‘मेरे दिल या मेरे काम में कोई पक्षपात नहीं है।’

वीडियो का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को हिंसा में मारे गए सभी लोगों की पहचान कर उनके शव उनके परिवारों को वापस करने का इंतजाम करने के लिए कहा है।

ग्लोरी ने अपनी उम्मीद इसी पर टिकाई हुई है। वो इंसाफ में यकीन रखती हैं।

भविष्य में वो एक अन्य कॉलेज में पढ़ाई दोबारा शुरू कर पुलिस या सेना में अफसर बनने का सपना पूरा करना चाहती हैं। ग्लोरी कहती हैं, ‘ये हमेशा से मेरा सपना था पर हमले के बाद मेरा यकीन और पक्का हो गया है कि मुझे बिना भेदभाव के सभी लोगों के लिए काम करना है।’

‘मुझे हर कीमत पर इंसाफ चाहिए। इसीलिए आज बोल रही हूं ताकि फिर किसी औरत के साथ वो ना हो जो मैंने सहा।’

मर्सी नजऱ उठाकर मुझे देख कहती हैं, ‘हम आदिवासी औरतें बहुत मजबूत हैं, हम हार नहीं मानेंगे।’

मैं चलने के लिए उठ खड़ी होती हूं तो कहती हैं कि वो एक संदेश देना चाहती हैं, ‘मैं सभी समुदायों की माताओं से कहना चाहती हूं कि अपने बच्चों को सिखाएं कि चाहे जो हो जाए, कभी भी औरतों की बेइज्जती ना करें।’ (बीबीसी)

(दोनों औरतों के नाम बदल दिए गए हैं।)

(इलस्ट्रेशन्स-जिल्ला दस्तमाल्ची) (bbc.com/hindi)

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