विचार / लेख

कोई एक योजना गेम चेंजर नहीं, गेम डिजाइनर ‘मोदी’ हैं, गेम चेंजर भी मोदी ही हैं
05-Dec-2023 4:15 PM
कोई एक योजना गेम चेंजर नहीं, गेम डिजाइनर ‘मोदी’ हैं, गेम चेंजर भी मोदी ही हैं

 देवेन्द्र वर्मा

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक विश्लेषकों, चुनावी पंडितों, एग्जिट पोल के नाम से पोस्टमार्टम करने वाली एजेंसियों और भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों के अनुमानों को सिरे से खारिज कर दिया। चुनाव परिणामों के आने के पूर्व भाजपा के नेता परिणामों को लेकर सशंकित थे, एकतरफ़ा परिणामों से उन सबकी बाँछे खिली हुई है, यद्यपि इस जीत का सेहरा तो सब मोदी, शाह, और नड्डा के सिर पर बांध रहें हैं, लेकिन जीत के कारण उनकी योजनाओं विशेषकर मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना योजना को ‘गेम चेंजर’ बताने में या जीत में स्वयं के योगदान का उल्लेख करने में भी राज्य के नेता पीछे नहीं हैं।

प्रश्न यह है कि क्या तीन तीन राज्यो में इतनी बड़ी जीत के लिए किसी एक योजना को गेम चेंजर माना जा सकता है ?

वर्ष 2018/19 के विधान सभाओं और लोकसभा चुनाव में भी के सिलिंडर पर सब्सिडी, किसानों को आर्थिक अनुदान, बिजली बिल्स माफ़ जैसी अनेक योजनाओ के रहते हुए विगत चुनावों में (2018/19) विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के मताधिकार का ट्रेंड अलग अलग रहा, अर्थात राज्य विधानसभा के चुनाव में मतदाताओं ने भिन्न भिन्न राजनीतिक दलों के स्थानीय राज्य नेतृत्व की तुलना करते हुए मतदान किया तो परिणाम भाजपा के केद्रीय नेतृत्व की आशानुकूल नहीं आये, राज्यों में भाजपा को सरकार बनाने लायक़ बहुमत भी नहीं मिल पाया फलस्वरूप कई राज्यो में कांग्रेस अथवा अन्य दलों की सरकारें बनी ।

राज्यों में तो भाजपा को सरकार बनाने लायक़ बहुमत नहीं मिला, (यद्यपि पश्चात भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से प्रभावित होकर भाजपा में सम्मिलित होकर भाजपा की सरकारे बनी) लेकिन अल्पावधि के अंतर में संसद के निर्वाचन के लिए मतदाताओं ने मोदी के नेतृत्व में भरपूर भरोसा प्रदर्शित किया, नतीजा 2014 में 282 सीट्स से 2019 में भाजपा को 303 सीट्स पर विजय श्री प्राप्त हुई।

हाल ही के 5 राज्यो के चुनाव के लगभग एक वर्ष पहले हिमाचल और कर्नाटक के चुनाव भाजपा ने एक बार फिर राज्य नेतृत्व को महत्व देते हुए चुनाव में जाने का निर्णय किया लेकिन विपक्षी दलों के नेतृत्व की तुलना में भाजपा के राज्यो के नेतृत्व को लगभग ख़ारिज कर दिया।

2023 हाल के पाँच राज्यो के चुनाव 2024 में लोकसभा के चुनाव पूर्व होने वाले ऐसे चुनाव थे, जिनके परिणाम जनता की पहचानने के लिए महत्वपूर्ण हैं, साथ ही हिमाचल और कर्नाटक में कांग्रेस को सत्ता की कुर्सी प्राप्त होने के और भाजपा की शिकस्त पश्चात (बाकी पेज 8 पर)

 2024 के चुनावों के मद्दे नजऱ भाजपा के लिए उत्तर भारत के प्रमुख हिन्दी भाषी राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और राजस्थान के चुनाव जीतना एक चुनौती था, और चुनाव में इस चुनौती को अपने अकल करना भी।

इन चुनावों में केंद्र की योजनाओं, स्वयं की लोकप्रियता के आधार पर जाने का जोखिम लिया, और संगठन के केंद्रीय नेतृत्व नड्डा ने अमित शाह के मार्ग दर्शन में चुनावों का संपूर्ण संच अपने हाथ में ले लिया।

शिवराज सिंह, वसुंधरा राजे और रमन सिंह पूर्व मुख्य मंत्रियों को विशेष महत्व नहीं देकर यह संदेश देना कि सत्ता में आने मुख्यमंत्री का निर्णय पश्चात होगा, और सबसे महत्वपूर्ण प्रधानमंत्री की लोकप्रियता को सामने रखते हुए मोदी के नाम पर मतदाताओं से वोट देने की अपील करना, चुनाव घोषणा पत्र को मोदी की गारंटी जोडऩा ।

पूर्ण मोदी की शतक से अधिक सभायें और रोड शो, अमित शाह और नड्डा के संगठन को सक्रिय करने की जीतोड़ मेहनत और बूथ लेवल तक कार्यकर्ताओं को जि़म्मेदारी सौंपने से मोदी की चुनाव लडऩे की डिज़ाइन (अभिकल्पना) ने भाजपा की जीत की संभावनाओं को साकार कर दिया।

चुनाव में केंद्र की लोक कल्याणकारी योजनाओं और चुनावों की रणनीति की अभिकल्पना ( डिज़ाइन) का आरंभ पूर्व स्थापित प्रक्रियाओं को तिलांजलि देते हुए हुए, पहली बार चुनावों की घोषणा होने के पूर्व हाई कमांड द्वारा अपने सूत्रों से जानकारी प्राप्त कर, प्राप्त जानकारी के आधार पर प्रत्याशियों के नामों की घोषणा, अनेक केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को चुनाव में उतारना, चुनाव संचालन का संपूर्ण नियंत्रण केंद्रीय नेतृत्व द्वारा अपने पास रखना, एंटी इनकम्बैंसी की धार को बोथरा करने के लिए सामूहिक नेतृत्व में चुनाव में जाना, इन योजनाओं से आये परिवर्तन को बार बार दोहराया गया।

मोदी ने इन चुनावों के लिये जो डिज़ाइन तैयार की है, उसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को सीएम पदके लिये प्रोजेक्ट नहीं किया, मोदी सामान्यत: अपने निर्णयों में परिवर्तन नहीं करते हैं, ऐसी स्थिति में नहीं राज्यों में सीएम के लिये नये नाम सामने आयें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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