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मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा, शिवराज सिंह चौहान या कोई और?
06-Dec-2023 7:15 PM
मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा, शिवराज सिंह चौहान या कोई और?

-मोहम्मद शाहिद
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों की जब सुगबुगाहट शुरू हुई तब से ही ऐसा माना जा रहा था कि इस बार बीजेपी के लिए ये चुनाव कड़ी चुनौती बनने जा रहा है।
इसकी पुष्टि तब हो गई जब बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रॉजेक्ट नहीं किया। ऐसा माना जा रहा था कि उन्हें लेकर एंटी-इनकम्बेंसी फ़ैक्टर होगा, क्योंकि वो 18 साल से मुख्यमंत्री हैं।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद जताई जा रही थी।
लेकिन जैसे जैसे चुनावों की तारीख़ नज़दीक आती गई, बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व और राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उतनी ही तेज़ी से चुनाव प्रचार में जुटे नजऱ आए।
एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य के चुनाव प्रचार का प्रमुख चेहरा थे और वो लगातार राज्य का दौरा कर रहे थे। वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ग्राउंड लेवल पर लोगों से मिल रहे थे जिसमें उनकी बार-बार महिलाओं से की जा रही अपील ख़ूब नजऱ आती रही।
कभी शिवराज सोशल मीडिया के चर्चित नामों के साथ नजऱ आए तो कभी महिलाओं को अपनी सरकार की ‘लाड़ली बहन योजना’ की याद दिलाते दिखे। कई बार महिलाओं के बीच में ऐसे संकेत देते भी दिखे कि ये उनकी आखऱिी पारी है।
लेकिन 3 दिसंबर के परिणाम के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। बीजेपी ने 230 में से 163 सीटें जीत ली हैं, जो पूर्ण बहुमत से 47 ज़्यादा हैं।
इस जीत का श्रेय जहां बीजेपी के नेता पीएम मोदी को दे रहे हैं, वहीं विश्लेषक इसका बड़ा श्रेय बीजेपी के चुनावी गणित और कुछ श्रेय शिवराज की मेहनत को दे रहे हैं।
इस बीच सवाल अब भी बरकऱार है कि मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा? बीजेपी के इतिहास में सबसे लंबे समय तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान इस पद पर बरकऱार रहेंगे या कोई नया शख़्स इस पद को संभालेगा?
बीजेपी ने मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात सांसदों को टिकट दिया था, जिसकी ख़ासी चर्चा रही। क्या इनमें से कोई इस कुर्सी पर बैठेगा?
शिवराज सिंह चौहान रहेंगे बरकऱार?
18 साल तक मुख्यमंत्री के पद पर रहने की वजह से शिवराज सिंह चौहान को फिर से मुख्यमंत्री पद का मज़बूत दावेदार माना जा रहा है। लेकिन चुनाव से पहले ही शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने हाशिए पर रख दिया था और उम्मीदवारों की लिस्ट में उनका नाम आखिरी सूची में आया था।
हालांकि, बीजेपी ने चुनाव प्रचार के दौरान पाया कि शिवराज सिंह चौहान की महिलाओं के बीच अच्छी पकड़ है और उनकी लाड़ली बहन योजना को लोग हाथों-हाथ ले रहे हैं।
मध्य प्रदेश चुनाव पर बारीकी से नजऱ रखे रहे बीबीसी संवाददाता सलमान रावी कहते हैं कि 'शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव के दौरान ये साबित कर दिया कि बीजेपी के लिए उन्हें नजऱअंदाज़ करना आसान नहीं है। राज्य में मास लीडर की छवि भी सिफऱ् शिवराज सिंह चौहान की ही थी। ये वक़्त ही बताएगा कि कौन मुख्यमंत्री होगा लेकिन गुटबाज़ी ज़ोरों पर है।'
वहीं ये भी कहा जा रहा है कि पार्टी के बड़े तबक़े का मानना है कि अगले लोकसभा चुनाव तक उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है क्योंकि अब चुनावों में छह महीने से भी कम समय बचा है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की रेस में शिवराज के साथ, प्रह्लाद सिंह पटेल, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय को बताया जा रहा है।
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सलमान रावी कहते हैं, ‘बीजेपी शानदार तरीक़े से जीतकर आई है, अगर ऐसे में वो शिवराज को हटाती है तो ये काउंटर प्रॉडक्टिव भी हो सकता है। विजयवर्गीय को ग्वालियर-चंबल संभाग क्षेत्र के लोग नहीं जानते, वहीं सिंधिया की महाकौशल की जनता पर पकड़ नहीं है। लेकिन शिवराज की पूरे एमपी पर अच्छी पकड़ है और वो पूरे प्रदेश के ‘मामा’ हैं, इसलिए लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें नजऱअंदाज़ करना मुश्किल होगा।’
वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल मध्य प्रदेश के चुनाव पर कहते हैं कि शिवराज की ‘लाड़ली बहन योजना’ ने महिलाओं का वोट ज़रूर बढ़ाया लेकिन एंटी इनकम्बेंसी की लहर थी, जिसे बीजेपी के आक्रामक चुनाव अभियान ने काबू किया।
वह कहते हैं, ‘शिवराज सिंह को बीजेपी कैसे मुख्यमंत्री बनाएगी क्योंकि पूरे चुनाव अभियान में पार्टी ने उन्हें हाशिए पर रखा हुआ था।’
‘बीजेपी ने संकल्प पत्र मतदान से तीन-चार दिन पहले जारी किया था और ताज्जुब की बात ये थी कि इस संकल्प पत्र में लाड़ली बहन योजना के संदर्भ में पैसे बढ़ाने की बात ग़ायब थी। अगर शिवराज को मुख्यमंत्री बनाते हैं तो ये वादा तो पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि संकल्प पत्र में वो बात ही नहीं है।’
प्रह्लाद पटेल बीजेपी की 
कितनी बड़ी पसंद?
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की रेस में प्रह्लाद सिंह पटेल का नाम भी आगे है। वो दामोह से सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं।
प्रह्लाद पटेल का नाम संघ को भी पसंद है क्योंकि उन्होंने छात्र राजनीति की शुरुआत एबीवीपी से की और वो संघ के भी कऱीब रहे हैं।
सलमान रावी कहते हैं कि बीजेपी ने महाकौशल-विंध्य पर पूरा ध्यान लगाते हुए वहां से प्रह्लाद पटेल को उतारा था और महाकौशल क्षेत्र हिंदुत्व की नई लैब है।
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार संजय सक्सेना कहते हैं कि मध्य प्रदेश में बीजेपी ओबीसी चेहरे पर ही दांव खेलेगी, क्योंकि उमा भारती, बाबूलाल गौर से लेकर शिवराज सिंह चौहान तक सब ओबीसी समुदाय से आते हैं।
कोट कार्ड
संजय सक्सेना कहते हैं, ‘शिवराज सिंह चौहान अगर मुख्यमंत्री नहीं बनते हैं तो प्रह्लाद सिंह पटेल की ही सबसे प्रबल दावेदारी है क्योंकि वो ओबीसी समुदाय से आते हैं।’
वहीं, राजेश बादल प्रह्लाद पटेल को भी मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं मानते। वो कहते हैं कि शिवराज को लेकर एंटी-इनकम्बेंसी का फ़ैक्टर था तो बीजेपी ने भ्रम पैदा किया और उसने चार अलग-अलग क्षेत्रों से बड़े-बड़े नाम खड़े किए।
वो कहते हैं कि महाकौशल-विंध्य से प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते जैसे केंद्र के नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा गया ताकि जनता को लगे कि उनके क्षेत्र का नेता मुख्यमंत्री हो सकता हैं, इसी तरह से बीजेपी ने अलग-अलग क्षेत्रों में भ्रम पैदा किया।
सिंधिया पर दांव लगाएगी बीजेपी?
कांग्रेस का दामन छोडक़र जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का दामन थामा तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार भी गिर गई क्योंकि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के उनके समर्थक विधायक भी बीजेपी के पाले में आ गए।
इस बार के चुनाव में ग्वालियर-चंबल संभाग में बीजेपी को 34 में से 18 सीटों पर जीत मिली है जबकि 2018 में महज़ सात सीटों पर जीत मिली थी। यानी इस बार बीजेपी को 11 सीटों का फ़ायदा हुआ है।
वहीं सिंधिया के कांग्रेस में रहते हुए 2018 के विधानसभा चुनाव में इन 34 में से 26 सीटों पर जीत मिली थी।
मध्य प्रदेश में बीजेपी के पास सिंधिया भी एक चेहरा हैं जिसकी प्रदेश में एक मास अपील है।
सलमान रावी कहते हैं कि सिंधिया जब पार्टी में आए तो उनकी बीजेपी से क्या डील हुई इसके बारे में अब तक साफ़ नहीं है लेकिन हाल में उनकी पीएम मोदी और अमित शाह से जिस तरह से नज़दीकी बढ़ी है, उससे उनके नाम की चर्चा काफ़ी है।
वो कहते हैं कि चुनाव के दौरान ग्वालियर के महल से बीजेपी के शीर्ष नेताओं की नज़दीकी रही, अमित शाह महल में खाना खाने गए और पीएम मोदी सिंधिया के स्कूल के कार्यक्रम में भी गए।
संजय सक्सेना ज्योतिरादित्य सिंधिया की जाति के सवाल पर कहते हैं कि वो ख़ुद को ओबीसी नेता बताते हैं हालांकि वो महाराज हैं। अगर ओबीसी कार्ड खेलना होगा तो बीजेपी सिंधिया के नाम पर भी खेल सकती है।
राजेश बादल कहते हैं कि सिंधिया अगर मुख्यमंत्री बनाए जाते हैं तो वो बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव में उलटे पड़ सकते हैं क्योंकि सिंधिया परिवार बीते 50 सालों से कांग्रेस में था और बीजेपी की तीन पीढिय़ां सिंधिया ख़ानदान से संघर्ष करती गुजऱी है।
‘उनके मुख्यमंत्री बनने से बीजेपी का पारंपरिक स्थानीय नेतृत्व नाख़ुश हो जाएगा और इससे ग्रास रूट लेवल तक ग़लत मैसेज जाएगा। लोकसभा का चुनाव भी वो हार चुके हैं तो उनका पक्ष कमज़ोर है।’
कैलाश विजयवर्गीय की भी चर्चा
बीजेपी के उम्मीदवारों की जब सूची जारी हुई तो उसमें केंद्र में मौजूद नेताओं के नामों को देखकर सबको हैरानी हुई। इस बात की हैरानी ख़ुद कैलाश विजयवर्गीय को भी हुई थी।
कैलाश विजयवर्गीय इंदौर से चुनाव जीत गए हैं और उन्हें भी मुख्यमंत्री की दौड़ में माना जा रहा है।
हालांकि, वो राज्य में जीत का श्रेय सिफऱ् शिवराज को नहीं देना चाहते हैं। उन्होंने इस जीत के बाद भारी जनादेश के पीछे मोदी के नेतृत्व को वजह बताया।
जब उनसे पूछा गया कि क्या लाड़ली बहना स्कीम बड़ी जीत का कारण बनी। इस सवाल के जवाब पर उन्होंने कहा ‘क्या लाड़ली बहना योजना छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी थी?’
सलमान रावी इस बयान पर कहते हैं कि बीजेपी के महासचिव ये बात कह रहे हैं, इसका मतलब है कि बीजेपी ये मान रही है कि सिफऱ् शिवराज की योजना फ़ैक्टर नहीं थी बल्कि मोदी का चेहरा भी एक बड़ी वजह थी।
‘वो (विजयवर्गीय) मास लीडर नहीं हैं, दूसरा वो ओबीसी समुदाय से नहीं आते हैं। कांग्रेस के जातिगत जनगणना के आंकड़े के वादे को काउंडर करने के लिए कैलाश विजयवर्गीय सही चेहरा बीजेपी के लिए नहीं होंगे।’
संजय सक्सेना कहते हैं, ‘संगठन के लिहाज़ से उन पर बीजेपी दांव खेल सकती है। मुझे लगता है कि उन्हें संगठन की जि़म्मेदारी दी जाएगी।’
नरेंद्र सिंह तोमर या फग्गन सिंह कुलस्ते
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के चुनाव लडऩे की जब घोषणा हुई तब ये माना जाने लगा था कि वो मुख्यमंत्री के पद की रेस में सबसे आगे हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान उनके बेटे देवेंद्र सिंह का एक कथित वीडियो वायरल हुआ जिसमें वो पैसे के लिए डील कर रहे थे। चर्चा है कि इस वीडियो के सामने आने के बाद बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का जोखिम नहीं उठाना चाह रही है।
वहीं, आदिवासी समुदाय से आने वाले केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के नाम की भी चर्चा चल रही थी लेकिन वो चुनाव हार गए। वहीं, विश्लेषक मानते हैं कि उनकी राजनीतिक पारी अब समाप्ति की ओर है और उन्हें महाकौशल से एक चेहरे के तौर पर वोट बटोरने के लिए उतारा गया था।
कोई छिपा नाम आएगा सामने?
बीजेपी मध्य प्रदेश प्रमुख वीडी शर्मा और मंत्री राजेंद्र शुक्ला के नामों की भी चर्चा चल रही थी और दोनों ही ब्राह्मण समुदाय से आते हैं।
सलमान रावी कहते हैं कि ब्राह्मण समुदाय से होने के नाते इनके नामों पर बात आगे बढ़ती नहीं दिख रही क्योंकि बीजेपी ओबीसी की ही राजनीति करना चाहती है।
वहीं संजय सक्सेना कहते हैं कि ‘ओबीसी के अलावा किसी नाम पर विचार होगा तो वो एससी-एसटी समुदाय से होगा। मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण कोई नेता मुख्यमंत्री होगा। पिछली बार नरोत्तम मिश्रा के नाम की चर्चा थी लेकिन उन पर बीजेपी ने दांव नहीं लगाया और इस बार वो चुनाव हार गए।’
‘महिला ओबीसी के नाम की भी चर्चा चल रही है लेकिन इस पर भी सवाल उठता है कि वो लोकसभा चुनाव के लिहाज़ से कितना कारगर साबित होगा। महिला ओबीसी में भोपाल से सिफऱ् कृष्णा गौर का चेहरा नजऱ आता है जो एक लाख छह हज़ार वोटों से चुनाव जीती हैं।’
सलमान रावी कहते हैं कि इस सबके बावजूद बीजेपी को ये महारत हासिल है कि वो अचानक मनोहर लाल खट्टर और देवेंद्र फडणवीस जैसे नामों को खड़ा कर देती है, मध्य प्रदेश में ऐसा भी नाम हो सकता है जिसकी कोई चर्चा न हो।
वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल अतीत के उदाहरणों का हवाला देते हुए कहते हैं कि बीजेपी ने जिन राज्यों में जीत हासिल की वहां कभी भी विधायकों ने मुख्यमंत्री नहीं चुना, पीएम मोदी ने अचानक कोई नया नाम निकालकर चौंका दिया, ऐसा गुजरात, झारखंड, उत्तराखंड, हरियाणा में देखा जा चुका है।
वह कहते हैं, ‘पीएम मोदी की जो शैली है उसमें वो दो तीन चेहरों को चर्चा में बनाए रखते हैं और एक नए नाम को ले आते हैं। जैसे कि सिंधिया लगातार बड़े नेताओं के साथ डिनर कर रहे हैं, प्रह्लाद पटेल अमित शाह से मिल रहे हैं तो ऐसा लगता है कि इनमें से कोई मुख्यमंत्री बने।’
राजेश बादल कहते हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के जातिगत जनगणना के मुद्दे से निपटने के लिए बीजेपी ओबीसी के नए चेहरे पर ही दांव खेलेगी। (bbc.com/hindi)

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