विचार / लेख
-देवयानी भारद्वाज
कल जब सारा देश चार राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजों को लेकर सांसत में फंसा था, मैंने सुबह के रुझान देख लेने के बाद 1954 में बनी संभवत: अपने समय की सबसे शुरुआती फेमिनिस्ट फिल्म Salt of The Earth को देखते हुए दिन बिताना चुना। अपने शुरुआती दौर में अमरीका में प्रतिबंधित इस फिल्म को अब अमरीकी सिनेमा के इतिहास में क्लासिक फिल्मों में शुमार किया जाता है। फिल्म निर्देशक Herbert J. Biberman और लेखक Michael Wilson भी उस दौर में हॉलीवुड के दस ब्लैक लिस्ट किए गए फि़ल्मकारों में शामिल थे।
फिल्म मैक्सिको की एंपायर जि़ंक माइन में 1950 में शुरू हुई खनिकों की ऐतिहासिक हड़ताल और उसकी सफलता में स्त्रियों की भागीदारी पर केंद्रित है। यह फिल्म उस दौर में एक नारीवादी पहल के रूप में सामने आती है, जब फेमिनिज़्म या नारिवाद जैसे शब्दों का चलन शुरू नहीं हुआ था। खनिक जो कंपनी के ही कब्जे वाली जमीन पर रहते हैं वे कंपनी में मजदूरों के लिए बराबरी की मांग करते हैं लेकिन घरेलू सुविधाओं के लिए औरतों की मांग को अहमियत नहीं देते। वहीं एक समय ऐसा आता है जब महिलाओं को हड़ताल पर बैठे पुरुषों की जगह लेनी पड़ती है और पुरुषों को घर संभालना पड़ता है तो पुरुषों को वे सारी जरूरतें समझ आने लगती हैं जिनकी मांग औरतें कर रही थीं। फिल्म उस दौर की है जब दुनियाभर में कामगार संगठित हो रहे थे और आज फिर प्रासंगिक हो जाती है जब यूनियनों को लगभग खत्म कर दिया गया है।
मैं इसे देख रही थी और मुझे उत्तराखंड की खदान में पंद्रह दिन तक फंसे रहे खान मजदूर याद आ रहे थे। यह फिल्म लगभग 75 साल पहले दुनिया के एक हिस्से में संगठित श्रमिक आंदोलन की बात करती है। आज पचहत्तर साल बाद हम उत्तराखंड में खदान से बाहर आए मजदूर का मालिकों के प्रति आभार का वीडियो देखते हैं तो समझ आता है कि हमने कितनी पीढिय़ों के संघर्ष को ज़ाया किया है।
इतिहास जब रचा जा रहा होता है, क्या उसे रचने वालों को भी ठीक उस समय इस बात का भान होता होगा कि आने वाला समय उसे किस तरह याद करेगा, कहा नहीं जा सकता। लेकिन यह फिल्म अपने बनने में जाने कितनी तरह से इतिहास रच रही थी। इसके निर्माताओं के पास बहुत संसाधन नहीं थे और वे एक वास्तविक घटना पर आधारित फीचर फिल्म बना रहे थे, इसके लिए तीन पेशेवर कलाकारों के अलावा उन्होंने अन्य सारे कलाकारों के तौर पर पेशावर अभिनेताओं को नहीं बल्कि उन लोगों को लिया जो खुद उस हड़ताल में शामिल खान मजदूर और उनके परिवार थे।
अमरीकी सरकार ने फिल्म को बनाने से रोकने के लिए इसमें केंद्रीय भूमिका निभा रही अभिनेत्री Rosaura Revueltas को गिरफ्तार कर फिर से मेक्सिको डिपोर्ट कर दिया, लेकिन फिर भी इस फिल्म को बनाने के इरादे को नहीं तोड़ पाई।
यदि न देखी हो तो ज़रूर देखनी चाहिए। कितनी बार इसे देखते हुए खुशी से सिहरन होती है, गला रुंध जाता है। औरतों की उस पीढ़ी पर नाज़ होता है। थोड़ा और जिम्मेदारी का अहसास होता है। यदि एनिमल देखने जा रहे हैं तो पहले यूट्यूब पर धरती के इस नमक को देख कर जाइए।