विचार / लेख

कहने लगी, मैं क्या जानूं अम्मा...
14-Dec-2023 4:33 PM
कहने लगी, मैं क्या जानूं अम्मा...

  रति सक्सेना

मुझे राजस्थान की संस्कृति पर शुरू से नाज था। मेरे बचपन में उम्रदार लोग भी बेटियों को सम्मान देते थे। पड़ोस की महिलाएं पूछा करती - बाई सा पधार गई क्या? वे उच्च मध्यम वर्ग की महिलाएं थीं। बेटियों की शादी में आसपड़ोस वाले आते और बारात जिमाने में मदद करते, लेकिन खा कर नहीं जाते। उनका कहना था कि बाई सा का ब्याह है, बेटी के बाप पर बोझा पड़ता है।

उन दिनों कम लोग रहते थे, गांव था, लेकिन गांव में मेहनत करता, दिखावा कुछ खास नहीं था। कुछ दिनों से देख रही हूं जयपुर, बदला बदला लग रहा है। कम एक सडक़ पर एम्बुलेंन्स जा रही थी, लगातार हार्न बज रहा था। लेकिन ठीक उस के सामने एक कार चल रही थी, दोपहर का वक्त था, सडक़ पर जगह थी, वह जरा साइड में हो सकती थी। मेरी केरल वाली आदत है, जहां एम्बुलेंस को जगह देना जरूरी माना जाता है। मैं परेशान हो गई कि गाड़ी साइड क्यों नहीं हो रही है। मुझे गुस्सा भी आया सोचा कि अच्छा हो कि एम्बुलेंस कार को टक्कर दे दे तो शायद वह समझे।

रोजाना अखबार देख रही हूं, भास्कर जिस पर लिखा है कि नो नेगेटिव न्यूज, लेकिन हर पेज पर बलात्कार की एक दो घटनाएं मिल जाती है। क्या लड़कियों महिलाओं का सम्मान बन्द हो गया?

सहायिका गांव से आई है, मुझ से बात करती है,,,, यार अम्मा.... मैं सोचती हूं कि क्या भाषा है। उसका आदमी शराब पीता है। वह पहले बेलदारी करती थी, अब कालोनी के कुछ घरों में काम करती है। एक बेटी साथ आती थी, बारह साल की होगी। मैंने पूछा पढ़ती है, तो गोल गोल जवाब। उसका उत्सुक स्वभाव देख कर मैंने कहा कि जब तक मां बर्तन साफ करे, तुम पढ़ लिया करो। मैंने देखा कि उसका दीमाग अच्छा है, लेकिन पढऩे की इच्छा निल है। वह घर आने में ही कतराने लगी। उसके लडक़े भी आये दिन घर पर रह जाते हैं, कहती है बालक है, नाना आये हैं तो स्कूल कैसे जाए? यानी मां के पास भी बहुत से बहाने हैं।

मैंने पूछा , तुम पढ़ी लिखी नहीं हो, लेकिन गिनती तो आती होगी न? नहीं तो कैसे हिसाब लगाती हो कि किस घर से कितने पैसे मिले। तो कहने लगी, मैं क्या जानूं अम्मा।

मैंने उससे कहा कि जब तुम काम कर के छुट्टी पाओ, बस दस मिनिट बैठ जाओ, थोड़ा हिसाब सीख जाओगी। मैंने पूछना शुरु किया, 2 + 1=3. 3+1+ 4. 4+1+5 ...दस तक नहीं पहुंची कि कहने लगी, अरे अम्मा मुझे चक्कर आ रहे हैं, मेरे दीमग पर जोर पड़े तो चक्कर आने लगे हैं। मैंने पूछा कि तुम कहती हो कि तुम्हारे बैंक में दस हजार है, तुमने कैसे गिना?

(सरकारी पैसा मिलने के कारण बैंक में अकाउंट तो सबका खुल गया है। ) तो बताने लगी। पांच सौ का एक नोट उसमें एक और जोड़ा तो हजार, फिर पांच सौ का एक नोट, उसमें एक जोड़ा तो हजार हजार दो हजार। इस तरह पांच सौ के नोट गिन लूं, अम्मा। यानी कि वह अपनी जरूरत भर का समझ सकती है, लेकिन उससे आगे सीखना नहीं चाहती।

कैसी औरत है, मुझे लगा, रोजाना तीस पचीसा करती रहती है, मेरे आदमी ने यूं कियो, मैय्यो ने यू कियो, चाहे मैं सुनू या न सुनू, उसका पुराण चलता रहता है।

मुझे आश्चर्य नहीं दुख हुआ, क्यो कि मैंने अपनी मां को देखा था, वे अपने घर में काम करने वालों को सिलेट बत्ती पर कुछ न कुछ लिखना पढऩा सिखा ही लेती थीं। दो बच्चों को उन्होंने पढ़ा कर मैट्रिक तक पहुंचाया था, जिन्हें सरकारी नौकरी भी मिल गई, वे जिन्दगी भर घर से जुड़े रहे।

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