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बिहार में क्या बीजेपी राम और जेडीयू सीता के नाम पर लड़ेंगे चुनाव?
22-Dec-2023 7:03 PM
 बिहार में क्या बीजेपी राम और जेडीयू सीता के नाम पर लड़ेंगे चुनाव?

-चंदन कुमार जजवाड़े
बिहार के सीतामढ़ी जि़ले में राज्य सरकार की एक योजना इन दिनों चर्चा में है। सरकार ने सीतामढ़ी में मौजूद माँ जानकी जन्म स्थली ‘पुनौरा धाम’ में विकास का काम शुरू किया है। भारत की हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक़ भगवान राम की पत्नी सीता का जन्म यहीं हुआ था।

सीतामढ़ी में पिछले हफ़्ते बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विकास कार्य का शिलान्यास किया है। इसके तहत पुनौरा धाम को सुंदर और विकसित किया जाएगा। इसमें पुनौरा धाम में विशाल द्वार, परिक्रमा पथ, सीता वाटिका, लव कुश वाटिका, मंडप और पार्किंग जैसी कई सुविधाएं तैयार की जाएंगी। इसके अलावा पुनौरा धाम परिसर में सीता के जीवन काल पर आधारित झांकी भी दिखाई जाएगी। परिसर के अंदर दुकान, खान-पान के लिए सुरक्षित जगह, रूकने की व्यवस्था और टॉयलेट की सुविधा भी विकसित की जाएगी। इसके साथ ही राज्य सरकार ने हाल ही में बेगूसराय के सिमरिया धाम को विकसित करने की योजना भी शुरू की है। ये दावा किया गया है कि सिमरिया के गंगा घाट को हरिद्वार के हर की पौड़ी घाट से भी बेहतर बनाया जाएगा। इसके लिए सिमरिया धाम में सीढ़ी घाट बनवाया जा रहा है और इसका सौंदर्यीकरण किया जा रहा है।

रबर बांध भी बनवाया गया है ताकि यहां पूरे साल पानी उपलब्ध हो और पिंड दान करने को आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधा रहे। राज्य सरकार की योजना में पटना सिटी में बड़ी पटन देवी मंदिर का विकास कराना भी शामिल है।

नीतीश का ‘सॉफ़्ट हिन्दुत्व’
पुनौरा धाम बिहार के प्रमुख तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। ख़बरों के मुताबिक इसके विकास के लिए नीतीश सरकार ने 72 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। क्या ये योजनाएँ नीतीश कुमार के ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की तरफ इशारा करती हैं।

वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी के मुताबिक़, ‘भारत धर्म प्रधान देश है। विपक्ष को अल्पसंख्यकों का वोट मिलेगा ही। आजकल धार्मिक स्थानों पर लोग जितना जा रहे हैं, उतना पहले नहीं जाते थे। यह दिखाता है कि आपको हिन्दुओं का वोट भी चाहिए, तो यह सब करना होगा।’

एक तरफ बीजेपी और केंद्र सरकार अयोध्या के विकास के लिए बड़ी योजना पर काम कर रही है। इसके लिए 32 हज़ार करोड़ रुपये की योजना बनाई गई है। अयोध्या में अगले ही महीने राम मंदिर का शिलान्यास किया जाएगा।

दूसरी तरफ हिन्दू तीर्थ स्थलों को लेकर नीतीश सरकार की ताज़ा योजना पर अब बीजेपी पलटवार कर रही है। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा ने इसे जनता को भ्रम में डालने की कोशिश बताया है।

विजय कुमार सिन्हा कहते हैं, ‘माननीय मुख्यमंत्री जी अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए चुनावी नौटंकी कर रहे हैं। नीतीश कुमार और इनके बड़े भाई 33 साल से शासन में हैं। अब चला-चली की बेला में किसी तरह इज़्जत बचाने की कोशिश कर रहे हैं।’

‘सीता के साथ भेदभाव’
विजय कुमार सिन्हा का आरोप है कि प्रकाश पर्व के लिए नीतीश सरकार करोड़ों रुपये ख़र्च करती है, लेकिन हिन्दू और सनातनी व्यवस्था के लिए नहीं, यह उनकी छोटी सोच को दर्शाता है।

बिहार के पटना साहिब को सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह की जन्मस्थली के तौर पर जाना जाता है। यहां हर साल प्रकाश पर्व मनाया जाता है। बिहार में सिख धर्म को मानने वाले लोग बड़ी संख्या में पटना साहिब के दर्शन के लिए आते हैं।

जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता नीरज कुमार जवाब देते हैं, ‘नीतीश कुमार पर एक आरोप लगता है कि वो मुसलमानों के पक्षधर हैं, एक आरोप यह लगता है कि वो सॉफ़्ट हिन्दुत्व वाले हैं। नीतीश हर धर्म का सम्मान करते हैं। बिहार में केवल दस हज़ार सिखों की आबादी होने के बाद भी इतना बड़ा प्रकाश पर्व मनाते हैं।’

नीरज कुमार के मुताबिक़ बिहार सरकार मंदिर के लिए ‘चारदीवारी योजना’ भी चलाती है। राज्य में न्यास बोर्ड अधीन आने वाले मंदिरों और इसके परिसर को अवैध कब्ज़े से बचाने के लिए राज्य सरकार उसके चारों तरफ पक्की दीवार का घेरा डलवाती है।

बीजेपी के विजय कुमार सिन्हा कहते हैं, ‘जब राम जन्मभूमि को लेकर इतना बड़ा आंदोलन चला और मोदी जी के आने के बाद भी वो अभियान चला। अब तक किसने नीतीश को रोक रखा था। अयोध्या के नाम से उत्तर प्रदेश जाना जाता है तो बिहार की जनता भी चाहती है कि माँ जानकी के नाम से बिहार को जाना जाए।’

केंद्र सरकार से मांग
हालांकि बिहार में अलग अलग राजनीतिक दल सीतामढ़ी और सीता जन्मस्थली के विकास को नजऱअंदाज़ करने का आरोप लगाते रहे हैं।

बिहार में सीता और सीतामढ़ी के साथ भेदभाव का आरोप बीजेपी के ऊपर भी लगता है। इस मामले में बिहार विधान परिषद के सभापति और सीतामढ़ी से ताल्लुक रखने वाले जेडीयू एमएलसी देवेश चंद्र ठाकुर लगातार आवाज़ उठाते रहे हैं।

देवेश चंद्र ठाकुर कहते हैं, ‘सीतामढ़ी पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। आज मैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का धन्यवाद करता हूं कि सीतामढ़ी के विकास की एक शुरुआत हुई है। हम केंद्र सरकार से मांग करते हैं कि सीतामढ़ी और अयोध्या के बीच एक ‘राम जानकी एक्सप्रेस’ ट्रेन ही दे दें।’

राजनीति में धर्म का कार्ड
देवेश चंद्र ठाकुर आरोप लगाते हैं, ‘भारत सरकार अयोध्या के विकास के लिए 32 हज़ार करोड़ देती है। उसका दस फ़ीसदी भी सीतामढ़ी को दे देते। सीता के साथ इतिहास में भी अन्याय हुआ है और आज भी हो रहा है। केंद्र सरकार थोड़ा सीतामढ़ी पर भी ध्यान देती।’

धार्मिक तौर पर बिहार बौद्ध और जैन धर्म का केंद्र रहा है। इसके अलावा पौराणिक ग्रंथ रामायण की रचना करने वाले वाल्मीकि का संबंध भी बिहार के पश्चिमी चंपारण जि़ले के वाल्मीकिनगर से रहा है। वहीं हर साल पितृ पक्ष के मौक़े पर पूर्वजों के पिंड दान के लिए देश-विदेश से लोग गया पहुँचते हैं।

ऐसे में अयोध्या में राम मंदिर और सीतामढ़ी में माँ जानकी मंदिर की ख़ास चर्चा क्या किसी नई राजनीति की तरफ इशारा करती है?

कन्हैया भेलारी कहते हैं, ‘आपको सबका वोट चाहिए और नीतीश इसी की कोशिश कर रहे हैं। यह बात भी है कि नीतीश कुमार राम का जवाब सीता से देने की तैयारी में हैं।’ एक तरफ बीजेपी खुलकर ‘हिन्दुत्व’ की राजनीति करती दिखती है, दूसरी तरफ वह अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर भी काफ़ी उत्साहित है। इस तरह से बीजेपी बहुसंख्यक वोट बैंक को साधने की कोशिश में दिखती है। हालांकि बीजेपी विरोधी दलों की भी इस मामले में अपनी रणनीति नजऱ आती है।

इस रणनीति को इसी साल हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी के ‘बजरंगबली के नाम पर खेले गए कार्ड’ के कामयाब नहीं होने का श्रेय दिया जाता है।

सीतामढ़ी का महत्व
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बीजेपी को बुरी तरह हराया था। इसके अलावा बीजेपी से मुक़ाबले में साल 2020 में दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल कई मंचों पर ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ करते हुए नजऱ आए थे। इसी सिलसिले में अब जेडीयू सीता और सीतामढ़ी के मुद्दे पर सक्रिय दिखती है।

जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार आरोप लगाते हैं, ‘सीतामढ़ी को केंद्र सरकार ने रामायण सर्किट में भी जगह नहीं दी है, जबकि वह इतना महत्वपूर्ण है। केंद्र अयोध्या में राम मंदिर के लिए 32 हज़ार करोड़ रुपये देता है, लेकिन सीतामढ़ी को क्या दिया?’ हालांकि सीता की जन्मस्थली को लेकर कुछ विवाद भी रहे हैं। इसी साल आई फि़ल्म ‘आदिपुरुष’ में सीता को ‘भारत की बेटी’ बताया गया था। नेपाल की राजधानी काठमांडू के मेयर ने इस डायलॉग पर आपत्ति जताई थी और इसे फि़ल्म से हटाने की मांग की थी।

नेपाल का दावा रहा है कि पौराणिक किरदार सीता का जन्म नेपाल के जनकपुर में हुआ था। इसी वजह से नेपाल में फि़ल्म के इस डायलॉग पर विवाद खड़ा हुआ था। ‘धर्मायण’ पत्रिका के संपादक और इतिहासकार भवनाथ झा ने इस विषय पर काफ़ी अध्ययन किया है। उन्होंने अपने लेख ‘मिथिला एक खोज’ में भी इसका जि़क्र किया है। उनका मानना है कि पहले नेपाल भी इस बात पर सहमत था कि सीता का जन्म आज के सीतामढ़ी में हुआ था और विवाह इत्यादि संस्कार आज के नेपाल के इलाक़े में।

कहां हुआ सीता का जन्म?
भवनाथ झा कहते हैं, ‘आज भले ही लोग कोसी से लेकर गंडक तक मिथिला मानते हैं। लेकिन राम, सीता और जनक के संदर्भ में मिथिला विदेह की राजधानी थी। वाल्मीकि के रामायण में सीता की जन्मस्थली अभी कहाँ हैं, इसकी ठोस सूचना नहीं मिलती है, जिससे बताया जा सके कि यह नगरी कहाँ थी।’

ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में जहाँ जनक की राजधानी बताई गई है वह सीतामढ़ी या जनकपुर दोनों में से कोई भी हो सकता है। वहीं मैथिली कवि विद्यापति की रचना ‘भूपरिक्रमणम’ में दो नाम आए हैं। एक है गिरिजा स्थान और एक है गिरिजा ग्राम।

भवनाथ झा के मुताबिक़ गिरिजाग्राम का मतलब आज का सीतामढ़ी है। गिरिजा स्थान जो फुलहर के नाम से जाना जाता है, उसका संबंध फूलों के बाग से हो सकता है। जबकि आइन-ए-अकबरी के तिरहुत खंड में 74 परगना की सूची है। इसमें एक परगना का नाम है ‘महला’, यही मिहिला परगना है। चौदहवीं शताब्दी के जैन साहित्य में ‘मिथिला’ के लिए प्राकृत भाषा में ‘मिहिला’ लिखा गया है। मौजूदा जनकपुर जिस परगना में आता है उसका नाम आइन-ए-अकबरी में अबुल फज़ल ने कोरडी दिया है, यानी यह अलग परगना है।

परगना का नामकरण दिल्ली सल्तनत के काल में तेरहवीं- चौदहवीं शताब्दी में हुआ था। यानी दिल्ली सल्तनत के काल में भी मिथिला एक क्षेत्र के रूप में जाना जाता था। आज भी राजस्व के रिकार्ड में सीतामढ़ी मिथिला परगना में आता है।

जहां हुआ लव कुश का जन्म
भवनाथ झा के मुताबिक़, ‘साल 1740 में नेपाल के शासकों ने अयोध्या से आए साधुओं को नेपाल में बसाया और वहाँ का विकास शुरू हुआ। उसके बाद साल 1816 में ब्रिटिश भारत और नेपाल के बीच सुगौली की संधि के बाद जनकपुर का ज़्यादा विकास हुआ और ग्रंथों में जि़क्र होने के बाद भी लोग सीतामढ़ी को भूलते गए।’

देवेश चंद्र ठाकुर दावा करते हैं, ‘सुगौली की संधि में भारत की सीमा का एक बड़ा इलाक़ा नेपाल को दे दिया गया। वहां आज भी दो कुटिया हैं, जो खंडहर बन चुकी हैं। माना जाता है कि एक कुटिया में वाल्मीकि रहते थे और दूसरे में सीता ने लव-कुश को जन्म दिया था।’ उन्होंने इसे वापस लेने के लिए कऱीब छह महीने पहले प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी थी। हालांकि उन्हें चिट्ठी का जवाब नहीं मिला है लेकिन वो कहते हैं कि प्रधानमंत्री नेपाल से बात कर वह इलाक़ा वापस लेने की पहल करें और इसके बदले नेपाल को दूसरा इलाक़ा दे दें।

यानी साल 2024 के लोकसभा चुनावों तक राम और सीता को लेकर अभी कई मुद्दों पर बहस जारी रह सकती है। हालाँकि यह बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ केंद्र सरकार और बीजेपी के ख़िलाफ़ किन मुद्दों को लेकर जनता के पास जाती है। (bbc.com/hindi)

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