विचार / लेख
-शुमाइला जाफरी
गुरुवार को इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने तोशाखाना मामले में दोषी कऱार दिए गए इमरान ख़ान की सज़ा को निलंबित करने की याचिका को रद्द कर दिया। इसी के साथ पाकिस्तान-तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के संस्थापक और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की आगामी 8 फऱवरी को हो रहे चुनावों में दावेदारी पेश करनी की उम्मीदें भी टूट गईं। उनकी पार्टी पीटीआई को उम्मीद थी कि इमरान ख़ान जेल में होने के बावजूद चुनाव लड़ पाएंगे। हालांकि, अदालत के इस आदेश से अब इमरान ख़ान के चुनाव में उतरने की संभावनाओं को बड़ा झटका लगा है।
शुक्रवार को साइफऱ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इमरान ख़ान और शाह महमूद क़ुरैशी को ज़मानत दे दी है। हालांकि इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ कुछ और मामले कोर्ट में होने के कारण वो रिहा नहीं हो पाएंगे। दूसरी तरफ शुक्रवार को पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने आगामी चुनावों के लिए पार्टी के चुनाव चिह्न के इस्तेमाल से जुड़ी याचिका को भी खारिज कर दिया है। इसके बाद इमरान ख़ान और उनकी पार्टी की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
दूसरे मामलों को लेकर पार्टी अब सुप्रीम कोर्ट में है और उसका कहना है कि चुनाव बराबरी का होना चाहिए। इस्लामाबाद हाई कोर्ट के आदेश को भी सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई है। लेकिन पाकिस्तान के विश्लेषक मानते हैं कि इमरान ख़ान के चुनाव में खड़े होने की संभावनाएं अब लगभग ख़ारिज हो गई हैं।
पाकिस्तान के क़ानून के तहत, जेल में क़ैद राजनेता तब तक ही चुनाव लड़ सकते हैं जब तक वो किसी अपराध के दोषी ना कऱार दिए गए हों। इमरान ख़ान को ट्रायल कोर्ट ने 5 अगस्त को तोशाखाना मामले में दोषी कऱार दिया गया था। उन्हें तीन साल क़ैद की सज़ा दी गई है। इसी के नतीजे में, संसद की उनकी सदस्यता ख़त्म हो गई है और उन पर चुनाव लडऩे पर रोक है। हालांकि इस सज़ा के ऐलान के कुछ सप्ताह बाद ही पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने इस्लामाबाद हाई कोर्ट में सज़ा को चुनौती दे दी थी। हालांकि, उन्हें दी गई सज़ा बरकऱार रही।
उम्मीद टूटी पर सुप्रीम कोर्ट का रास्ता है
चुनावों से कुछ ही सप्ताह पहले, पीटीआई ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया और अदालत से उनके दोष को निलंबित कराने की कोशिश की ताकि इमरान ख़ान चुनाव लड़ सकें। लेकिन पार्टी की इस याचिका को भी ख़ारिज कर दिया गया है।
ख़ान के अधिवक्ता और प्रवक्ता नईम हैदर पंजुठा ने सोशल मीडिया पर बताया, ‘तोशाखाना मामले में अदालत के आदेश को रद्द कराने की इमरान ख़ान की याचिका को रद्द कर दिया है, ऐसे में उन्हें अयोग्य कऱार दिया जाना बरकऱार रहेगा।’
एक अन्य पोस्ट में नईम हैदर ने कहा पीटीआई ने हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इसी सप्ताह पीटीआई ने कहा था कि इमरान ख़ान लाहौर, इस्लामाबाद और मियांवाली की तीन नेशनल असेंबली सीटों से चुनाव लडऩे की योजना बना रहे हैं। पाकिस्तान में राजनेता आमतौर पर एक से अधिक सीटों से अधिक से चुनाव लड़ते हैं ताकि उनकी जीत की संभावना बढ़ जाए। लेकिन इस्लामाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद पीटीआई की ये सभी उम्मीदें टूट गई हैं।
तोशाखाना मामला
पीटीआई के नेता और अधिवक्ता सरदार लतीफ़ खोसा का कहना है कि पीटीआई ने अपना होमवर्क कर लिया है और उसके पास वैकल्पिक क़दम तैयार हैं। उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य से, ये सभी उसी पुरानी किताब से हैं। ये वही पुरानी पटकथा है। यही माइनस वन फॉर्मूला पाकिस्तान पीपुल्ज़ पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ पर लागू किया गया और बेनज़ीर भुट्टो और नवाज़ शरीफ़ को राजनीति और सत्ता से दूर रखा गया।’ ‘लेकिन इसने हमेशा बैकफ़ायर (उल्टा नुक़सान) ही किया है। अब इमरान ख़ान की बारी है। इस प्रक्रिया में उनके मूल अधिकारों का खुला उल्लंघन हो रहा है। हम ये उम्मीद करते हैं कि इस्लामाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट रद्द कर देगा।’ एकजुट हो रहे हैं बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए लड़ रहे संगठन, पाकिस्तान के लिए कितना ख़तरा?
पीटीआई पर असर
हालांकि, अधिकतर विश्लेषक इतने सकारात्मक नहीं हैं। राजनीतिक टिप्पणीकार सुहैल वडाइच मानते हैं कि आगामी चुनावों में इमरान ख़ान संसद के बाहर ही रहेंगे। वडाइच कहते हैं, ‘ये आदर्श स्थिति नहीं है। ये ऐसा परिदृश्य नहीं है जब सभी राजनीतिक दलों को आम चुनावों में हिस्सा लेने के लिए समान अवसर मिलें। पीटीआई को पहले ही अलग कर दिया गया है और उसके सामने बहुत सी चुनौतियां हैं।’
‘एक राजनीतिक दल के रूप में पीटीआई का भविष्य ही स्पष्ट नहीं है। अधिकतर शीर्ष नेताओं को मजबूर करके पार्टी छुड़वा दी गई है। जो बचे हैं वो गिरफ़्तारियों से भाग रहे हैं। लेकिन मुझे ये भी लगता है कि चुनाव एक बहुत बड़ा मौक़ा है और अभी भी पीटीआई संसद में कुछ सीटें जीत सकती है।’
‘इमरान ख़ान और दूसरे बड़े नेताओं की ग़ैर मौजूदगी का असर पार्टी के प्रदर्शन पर ज़रूर पड़ेगा, लेकिन मेरा मानना है कि पार्टी को अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करनी चाहिए और समय के बदलने का इंतज़ार करना चाहिए।’ लेकिन ज़मीनी स्तर पर ये सकारात्मक सोच बनाये रखना पीटीआई के लिए काफ़ी जटिल और मुश्किल है। पीटीआई का टिकट लेने वाले की नेताओं का आरोप है कि उन्हें पर्चा भरने से ही रोका जा रहा है।
पीटीआई के शोएब शाहीन ने मीडिया से कहा, ‘हमें पंजाब प्रांत से सैकड़ों शिकायतें मिलीं हैं कि पुलिस और ख़ुफिय़ा एजेंसियां हमारे उम्मीदवारों को पर्चा भरने से रोकने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। लोगों को अग़वा किया गया है, गिरफ़्तार किया गया है और उनके नॉमिनेशन के पेपर तक छीन लिए गए हैं।’
सुप्रीम कोर्ट ने पीटीआई की बराबरी का अवसर मांगने की याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग से कहा है कि इस बारे में पीटीआई की समस्याओं का हल किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पीटीआई इस संबंध में चुनाव आयुक्त से मिल सकती है।
प्रचार अभियान से लेकर चुनाव चिह्न तक पर संकट
चुनाव अभियान और मीडिया से जुड़े प्रतिबंधों की वजह से पीटीआई अपनी आवाज़ उठाने और चिंताएं ज़ाहिर करने के लिए पूरी तरह से सोशल मीडिया पर निर्भर है। लेकिन कुछ दिन पहले ही, जब पीटीआई ने अपना पहला ऑनलाइन जलसा करने की कोशिश की, तो इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा।
पीटीआई ने आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए अपने नेता इमरान ख़ान का एक वीडियो संदेश भी तैयार किया है। इमरान ख़ान 5 अगस्त को गिरफ़्तारी के बाद से जेल में बंद हैं और उनकी मतदाताओं और समर्थकों तक कोई पहुंच नहीं है। इस एआई संदेश में, इमरान ख़ान ने अपने समर्थकों से अपील की है कि अगर वो हालात बदलना चाहते हैं तो मतदान ज़रूर करें। लेकिन इस रचनात्मकता के बावजूद इमरान ख़ान की मौजूदगी की कमी को पूरा नहीं किया जा सकता है।
विश्लेषक मुजीब उर्रहमान शमी कहते हैं कि ये पीटीआई के लिए एक बहुत बड़ी बाधा है और इससे पूरी चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल हैं। शुक्रवार को पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने पीटीआई के संगठनात्मक चुनाव और 8 फरवरी को होने वाले चुनावों में पीटीआई के चुनाव चिह्न 'क्रिकेट के बल्ले' के इस्तेमाल की याचिका को खारिज कर दिया है।
मुजीब उर्रहमान शमी कहते हैं, ‘बल्ले को चुनाव निशान के रूप में नामंज़ूर करने के पीटीआई के लिए गंभीर परिणाम होंगे। इसका मतलब ये होगा कि पीटीआई एक पार्टी के रूप में चुनाव नहीं लड़ पाएगी। ऐसी स्थिति में या तो पीटीआई के उम्मीदवारों को स्वतंत्र रूप से चुनाव लडऩा होगा या फिर चुनाव निशान के लिए उन्हें किसी छोटी पार्टी से समझौता करना होगा।’ ‘इससे पीटीआई के मतदाताओं के लिए बहुत असमंजस की स्थिति पैदा होगी और इसका पीटीआई के वोट बैंक पर भी व्यापक असर पड़ेगा।’
वरिष्ठ पत्रकार सलीम बुखारी ने अपने विश्लेषण में कहा है कि पीटीआई इस समय अक्षम है, वह सुप्रीम कोर्ट से तो बराबरी के मौक़े की मांग कर रही है लेकिन उसके ऊपर 9 मई की घटनाओं का बहुत भारी बोझ भी है। और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अभी पार्टी का मुश्किल वक़्त और लंबा खिंचेगा। 9 मई के प्रदर्शनों ने पार्टी को लगभग नष्ट कर दिया है और जो बचा भी है वो पूरी तरह से अव्यवस्थित है।
9 मई को इस्लामाबाद हाई कोर्ट से इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद पूरे पाकिस्तान में दंगे भडक़ गए थे। इन दंगों में अधिकतर सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया था। पार्टी के अधिकतर नेता चुनाव लड़ नहीं सकते हैं। ऐसे में पीटीआई अब अपनी अधिवक्ता ईकाई पर दांव लगा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि अधिकतर वकीलों को टिकट दिए जाएंगे।’
सलीम बुख़ारी कहते हैं कि पार्टी की समस्या ये है कि इनमें से अधिकतर वकील सीधे जनता से जुड़े हुए नहीं हैं। ऐसे में पीटीआई इस चुनौती से कैसे उभरती है, ये अभी देखना बाकी है।
बुख़ारी कहते हैं, ‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है, ये भविष्य की बात है।’ वहीं टिप्पणीकार महमत सरफऱाज़ मानते हैं कि इमरान ख़ान का अधिकतर वोट ऐसे लोगों का है जो उनके व्यक्तित्व की प्रसंशा करते हैं। लेकिन अब जब वो ही रेस से बाहर हो जाएंगे, तो इससे पीटीआई के जीतने की संभावनाएं कमज़ोर होंगी और उसकी सत्ता में वापसी की संभावना भी कम हो जाएगी।
वो कहते हैं, ‘असल समस्या ये है कि पाकिस्तान में बैलट बॉक्स ये तय नहीं करता है कि सत्ता किसकी होगी बल्कि शक्तियां ( सुरक्षा प्रतिष्ठान) ही ये तय करते हैं।’ ‘सभी राजनीतिक दल इन शक्तियों से डरे हुए हैं, इसलिए ही वो ख़ामोश हैं, दुर्भाग्यवश, सभी दलों ने समझौता कर लिया है, या फिर ये ही कहा जा सकता है कि समूची राजनीतिक व्यवस्था ही कमज़ोर है। ’ (bbc.com/hindi)